प्रेमचंद की कहानी ज़ेबर का डिब्बा : कहानी परिचय, सारांश, समीक्षा, एवम् निष्कर्ष

Story of Premchand “Zebar Ka Dibba”: Story Introduction, Summary, Review, and Conclusion

Story of Premchand Zebar Ka Dibba

कहानी का परिचय (Introduction)

अपराध की भी अपनी अलग-अलग श्रेणी है। कुछ अपराध माफ़ करने योग्य होते हैं, कुछ दंड देने योग्य होते हैं, तो कुछ भरपाई करने योग्य होते हैं। इंसान कभी-कभी किसी का बुरा इसलिए नहीं करता क्योंकि वह उस व्यक्ति का बुरा करना चाहता है, बल्कि ऐसी गलती इसलिए कर देता है क्योंकि वह अपना भला चाहता है।

माफ़ करने योग्य, दंण्ड देने योग्य या भरपाई करने योग्य चोरी कैसा अपराध है? मुमकिन है इसका उत्तर इस बात से तय होगा कि जिस चीज की चोरी की गई है उसकी चोरी होने से उसका कितना और क्या नुकसान हुआ है जिसका वह समान था। चोरी करने के अनेक कारण हो सकते हैं जैसे – जलन, नफरत, आवश्यकता, अभाव, आदि।

हम बात कर रहें हैं “प्रेमचंद” जी की लिखी कहानी “ज़ेबर का डिब्बा” की जिसका नायक चन्द्रप्रकाश है।

Story of Premchand Zebar Ka Dibba

ज़ेबर का डिब्बा कहानी का सारांश (Summary of the Story Zebar Ka Dibba”)

चन्द्रप्रकाश बी.ए पास करने के बाद ट्यूशन पढाने लगा। प्रकाश के पिता एक अच्छे ओहदे पर थे, प्रकाश को पुरी उम्मीद थी कि उसे भी कोई अच्छी नौकरी मिल जायेगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। चन्द्रप्रकाश के माता-पिता दोनों का स्वर्गवास बहुत पहले ही हो गया था।

चन्द्रप्रकाश ठाकुर साहब के बेटे को पढ़ाता था। ट्यूशन से 30 रूपये की आमदनी प्रकाश को हो जाती थी। ठाकुर साहब ने अपना मकान चन्द्रप्रकाश को किराए पर दे दिया। ठाकुर और ठाकुराइन दोनों प्रकाश को अपना समझते थे परिणाम स्वरूप घर के किसी भी विषय पर प्रकाश से सलाह जरूर लेते थे।

वीरेंद्र जिसे प्रकाश पढ़ाता है। उसकी शादी के लिए भी ठाकुराइन ने पहले प्रकाश से सलाह ली, उसके बाद विवाह का निर्णय लिया। ठाकुर साहब की आयु 60 वर्ष हो चुकी थी तब भी उन्हें अपने अनुभव से ज्यादा प्रकाश की पढ़ाई-लिखाई पर भरोसा था परिणाम स्वरूप विवाह से जुड़ी सभी तैयारियों कि जिम्मेदारी उन्होंने प्रकाश को सौप दी। दस-बारह हजार कि जिम्मेदारी प्रकाश के हाथों में थी। उसने भी सारी ज़िम्मेदारी ठीक से निभाई। एक रोज़ जब प्रकाश ने 5 हजार के गहने देखे तो उसके मन लालच आ गया। वह अपनी पत्नी के लिए गहने बनवाना चाहता था, लेकिन तीस रूपये की आमदनी में यह मुमकिन नहीं था कि प्रकाश अपनी पत्नी के लिए गहने खरीदे।

एक रोज रात में प्रकाश ने ज़ेवर का डिब्बा चोरी करने की योजना बनाई और यह सोच लिया कि यादि सुबह कुछ बात हुई तो सारा दोष नौकरो पर लगा देगा, परिणाम स्वरूप वह गहने चुरा लाया।

जब सुबह गहने की चर्चा शुरू हुई तो योजना अनुसार प्रकाश ने गहनों की चोरी का दोष नौकरो पर लगाना चाहा लेकिन ठाकुराइन ने याकीन नहीं किया। अपनी रक्षा के लिए प्रकाश ने ठाकुर साहब का घर यह कह कर खाली कर दिया कि चोर मेरे घर कि तरफ़ से आया था, इसलिए मैं ही इसका दोषी हूँ।

प्रकाश ने अपनी पत्नी से कहा की मुझे किसी के यहाँ 50 रूपये की नौकरी मिल गई है जो पैसे वहीं जमा रहेंगे। वह रूयये को सिर्फ ज़ेबर खरीदने में खर्च किया जायेगा। प्रकाश ने ठाकुर साहब के यहाँ से चुराए हुए सारे रूपये एक संदूक में रख दिए जिसकी चाबी उसने अपनी पत्नी को नहीं दी।

एक दिन प्रकाश की पत्नी चम्पा ने संदूक की दूसरी चाबी बनवा कर संदूक खोल लिया और संदूक खोलते ही समझ गई कि यह वही गहने हैं जो ठाकुर साहब के यहाँ से चोरी हुये थे। चम्पा ने अपने आप से ही सवाल किया कि मैंने तो अपने पति से कभी गहनो की मांग नहीं की, कभी किसी चीज के लिए ज़िद नहीं की और यदि मैं ऐसा करती तो क्या यह गहने चुरा कर मेरे लिए ले आते? स्थिति अनुसार चम्पा निराश होकर उस दिन से उदास रहने लगी और अपने पति से तंज भरे अल्फाज़ो में बात करती लेकिन कभी प्रकाश से यह नहीं कहा कि मुझे पता है गहने तुमने चुराए हैं।

शहर में एक असिस्टेंट मैनेजर की जगह खाली थी। प्रकाश ने भी अकाउटेंट की परीक्षा पास की हुई थी इसलिये नौकरी मिलने में उसे मुश्किल नहीं थी। नौकरी लगने की शर्त थी कि दस हजार रूपये ज़मानत देनी होगी। दस हजार यकीनन प्रकाश के पास नहीं थे उसने इसकी चर्चा ठाकुर साहब से परिणाम स्वरूप ठाकुर साहब ने प्रकाश को दस हजार रूपये दे दिए। प्रकाश की नौकरी लग गई लेकिन प्रकाश को पछतावा होने लगा कि उसने एक नेक दिल इंसान के यहाँ चोरी की, जिसका ताना अब चम्पा अप्रत्यक्ष रूप से देती रहती थी।

एक दिन प्रकाश ने ठाकुर साहब और उनके परिवार की दावत अपने घर की और रात को उन्हें उनके घर जाने नहीं दिया। जब रात सब गहरी नींद में सो रहे थे तब प्रकाश ने ज़ेवर का डिब्बा उठाया और ठाकुर साहब के यहाँ जाकर रख दिया। अगले दिन जब ठाकुर साहब और उनका परिवार उनके घर पहुँचा तो उन्हें अपने गहनों का डिब्बा मिल गया। जिसकी सूचना पाने के लिए प्रकाश खुद ठाकुर साहब के यहाँ पहुँच गया। गहने मिलने की सुचना के साथ ही अब ठाकुर साहब ने प्रकाश को अपने घर की दावत दी।

अपने घर लौटकर जब प्रकाश ने यह सुचना अपनी पत्नी चम्पा को दी तो चम्पा अत्यधिक खुश हुई। उसे ऐसा महसूस हुआ कि उसका नेक दिल पति उसे वापस मिल गया है।

कहानी की समीक्षा (Review of Zebar Ka Dibba)

कहनी के अनुसार लालच में आकर चन्द्रप्रकाश ने चोरी की लेकिन उसकी मंशा यह नहीं थी कि वह ठाकुर साहब को हानि पहुचाएँ। चोरी करने के बाद जब ठाकुर साहब ने दस हजार देकर चन्द्रप्रकाश की मदद की तो प्रकास का ज़मीर उसे धीक्कारने लगा। उसे अपनी इस कार्य पर पछतावा हुआ। जब उसे अपनी इस गलती का एहसास हुआ तो उसने उसका सुधार भी किया जो प्रकाश को इस कहानी का नायक सिद्ध करती है।

ऐसा अकसर देखा जाता है कि गलती होने के बाद गलती को छुपाने के लिए भी गलती की जाती है। प्रकाश ने अपनी चोरी को छुपाने के लिए चोरी का दोष नौकरो पर मढ़ना चाहा, सफल ना होने पर उसने उसी दिन ठाकुर साहब का घर छोड़ दिया।

इस कहानी में यह तो नहीं दर्शाया गया है कि ठाकुर साहब को प्रत्यक्ष रूप से पता चला हो कि चोरी किसने की है, लेकिन सम्भव है की शक की निगाह एक बार तो प्रकाश की तरफ गई ही थी। जिसे भांप कर उसने उसी दिन घर खाली कर दिया। इसका प्रत्यक्ष उजागर कहानीकार ने कहानी में नहीं किया।

यदि ठाकुर साहब को स्पष्ट रूप से पता चल जाता की चोरी किसने की है और वह प्रकाश को दण्ड देते तो यह मुमकिन नहीं था कि प्रकाश को खुद अपनी गलती का पछतावा होता और वह खुद उसे सुधारता। यदि गलती माफ करने योग्य हो तो अपराधी को माफ़ करने गलती सुधारने का मौका अवश्य देना चाहिए। मुमकिन है कि अपराधी का हृदय परिवर्तन वैसा ही हो जैसा प्रकाश का हुआ है।

प्रकाश की पत्नी चम्पा अभाव में अपना जीवन व्यतीत कर रही थी लेकिन उसे किसी अन्य से जलन नहीं थी, लालच नहीं था। इसका पता इससे चलता है कि अपने पति द्वारा की हुई चोरी की जानकारी पाने के बाद भी उसने गहनों का अपना समझने के स्थान पर पति द्वारा किए इस कार्य से अप्रसन्न रहने लगी।

चम्पा अपने पति का सम्मान भी करती थी। यही वजह है कि चोरी की जानकारी होने के बाद वह दुखी हुई अंदर ही अंदर नराज़ हुई लेकिन ना ही इसका पता अपने पति को चलने दिया ना ही ठाकुर साहब को जाकर बताया कि चोरी किसने की है। वह कितनी नेक दिल स्त्री है यह तब स्पष्ट हो जाता है, जब उसे पता चलता है कि उसके पति ने ठाकुर के गहने लौटा दिए हैं। चम्पा यह खबर सुनकर एक हजार भूखो को खाना खिलाने की बात करती है।

जे़बर का डिब्बा” कहानी का निष्कर्ष (Conclusion of the Story Zebar Ka Dibba”)

एक साल पढ़ने के बाद हम जो लिखित परीक्षा देते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हमारे हाथ में डिग्री या रिपोर्ट कार्ड आता है। हम सिर्फ उसी को परीक्षा मानते हैं। सच तो यह है कि एक इम्तिहान वह भी जब हमारा इम्तिहान लिया जाता है हमें ही नहीं पता होता है। जिसे ज़िन्दगी का इम्तिहान कहते हैं। इसके अलग-अलग रूप हो सकते हैं, जिसका एक रूप इस कहानी में प्रकाश द्वारा दिखाया गया। प्रकाश ना चाहते हुए भी उस परीक्षा में असफल हो गया जिस परीक्षा का नाम ईमानदारी था।

कहानी से शिक्षा लेते हुए यह हमें तय करना है कि हम ज़िन्दगी के इम्तिहान में सफल होना चाहते हैं या असफल।

By Sunaina

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