Study Material : भोलाराम का जीव कहानी का सारांश व समीक्षा IGNOU MHD- 3 | भोलाराम का जीव
कहानी का परिचय (Story Introduction)
भोलाराम का जीव कहानी हरिशंकर परसाई द्वारा लिखी गई है। भोलाराम को जीते-जीते उसका अधिकार नहीं मिलता वह पांच साल तक दफ़्तर के चक्कर काटता है, उसके बाद भी उसे पेंशन नहीं मिलती। परिणाम स्वरूप यह कहानी भ्रष्टाचार पर आधारित है।
भोलाराम का जीव कहानी का सारांश | Summary of Bholaram’s Jeev Story
धर्मराज लाखों साल से लोगों की मृत्यु के बाद उन्हें नर्क या स्वर्ग अलाट कर रहें हैं, लेकिन आज चौकाने वाला कृत सामने आया है, जहाँ धर्मराज परेशान हैं, वहीं चित्रगुप्त बार-बार राजिस्टर चेक कर रहे हैं। रजिस्टर में लिखी जानकारी के मुताबिक मृत्यु के बाद भोलाराम को पाँच दिन पहले ही आ जाना था, लेकिन आज पाँच दिन बाद भी वह यमलोक नहीं पहुँचा है।
जिस दूत ने भोलाराम का जीव (आत्मा) लिया था, वह यमदूत बदहवास यमलोक आया और उसने बताया कि भोलाराम का जीव वह ला रहा था और रास्ते में ही वह जीव गायब हो गया और भोलाराम का जीव उसे चकमा दे गया।
चित्रगुप्त ने यमदूत का साथ देते हुए कहा – आजकल पृथ्वी लोक पर लोग समान अपने दोस्तों के लिए भेजते हैं, लेकिन रास्ते में ही रेलवेवाले उड़ा लेते हैं। अर्थात चित्रगुप्त यह कहना चाहते हैं, जिस प्रकार लोग समान उड़ा लेते हैं, उसी प्रकार किसी ने भोलाराम के जीव को भी उड़ा लिया होगा।
धर्मराज ने व्यंग्य पूर्ण अंदाज में चित्रगुप्त से कहा – तुम्हारी भी रिटायर्ड होने की उम्र हो गई है।
धर्मराज परेशान ही थे कि तभी वहाँ नारद मुनि आ गए। नारद मुनि के पूछने पर धर्मराज ने भोलाराम का सारा किस्सा कह सुनाया। यह सुनकर नारद मुनि ने कहा – उस पर इनकम टैक्स तो नहीं बकाया था? शायद उन लोगों ने रोक लिया हो। चित्रगुप्त ने बताया भुखमरा था, अर्थात भोलाराम पर इनकम टैक्स नहीं हो सकता।
नारद ने चित्रगुप्त से भोलाराम की जानकारी निकाली जिससे वे पृथ्वी पर आकर भोलाराम की खोज कर सकें। परिणाम स्वरूप चित्रगुप्त ने बताया भोलाराम रिटार्यड था, उसके घर में उसकी पत्नी, दो बेटे और एक बेटी है। टूटे फूटे मकान में रहता था, एक साल से उसने मकान का किराया नहीं दिया था, सम्भव है मरने के बाद मकान मलिक ने उसके परिवार को घर से निकाल दिया हो।
माँ-बेटी के रोने की आवाज़ से नारद भोलाराम का घर पहचान गए, परिणाम स्वरूप वह उसके घर गए। भोलाराम की पत्नी से पूछा भोलाराम को क्या बीमारी थी? पत्नी ने बताया पाँच साल पहले रिटार्यड हुए थे, और तब से लेकर आज तक पेंशन नहीं मिली। लगभग पन्द्रह दिन में अपनी पेंशन के लिए दरख़ास्त देते लेकिन हर बार जवाब आता कि आपकी पेंशन पर विचार हो रहा है। भोलाराम की पत्नी के अनुसार पहले उसके सारे गहने फिर घर के बर्तन बेंच कर जीवन गुज़ारते रहे और अब फांके पड़ने लगे थे परिणाम स्वरूप भोलाराम की चिंता और भुखमरी से मृत्यु हो गई है।
भोलाराम की पत्नी ने भोलाराम की रूकी हुई पेंशन दिलवाने के लिए साधू यानी नारद से निवेदन किया। नारद को दया आ गई परिणाम स्वरूप नारद ने कहा – मैं सरकारी दफ़्तर जाकर कोशिश करूँगा।
नारद सरकारी दफ़्तर पहुँचे तो दफ़्तर के कार्यकताओं से पता चला भोलाराम ने अर्ज़ी तो दी थी, लेकिन उस पर वज़न (रिश्वत) नहीं रखा था, इसलिए उसका काम नहीं हुआ। नारद वज़न का अर्थ सिर्फ वज़न ही समझे परिणाम स्वरूप उन्होंने समान्य पेपर भोलाराम की अर्ज़ी पर रखने की बात कही। साधू (नारद) दफ़्तर के लगभग तीस अफ़सरों से मिल लिए लेकिन उनका काम नहीं हुआ। अंत में चपरासी ने कहा – बड़े साहब से मिल लिजीए, अगर आपने उन्हें राज़ी कर लिया तो आपका काम हो जाएगा।
साधू (नारद) बड़े साहब के पास गए तो उन्होंने भी कहा भोलाराम की अर्ज़िया उड़ रही हैं, उन पर वज़न रखिए। साधू इस बार भी वज़न का मतलब नहीं समझें, परिणाम स्वरूप साहब ने कहा – आपके पास जो वीणा है, इसका वज़न भी रखा जा सकता है, मेरी बेंटी संगीत सिखती है यह मैं उसे दे दूँगा। पहले सो नारद घबरा गए फिर उन्होंने ने अपनी वीणा टेबल पर रखते हुए कहा – यह लीजिए और काम करवा दिजिए।
साबह ने चपरासी से भोला राम की फाइल मँगवाई, और पूँछा क्या नाम है, साधू (नारद) ने कहा – ज़ोर से कहा भोलाराम। यह सुनते ही फाइल से भोलाराम की अवाज़ आई, कौन पुकार रहा है मुझे? क्या पोस्टमैन आया है? पेन्शन का ऑर्डर आ गया।
बड़े साहब यह अवाज़ सुनते ही कुर्सी से लुढ़क गए, लेकिन नारद तुरन्त समझ गए और पूछा – क्या तुम भोलाराम का जीव हो? भोलाराम ने कहा – हाँ। नारद ने भोलाराम को अपने साथ स्वर्ग चलने के लिए कहा। भोलाराम ने मना करते हुए कहा – मुझे नहीं जाना। मैं तो पेन्शन की दरख़्वास्तों में अटका हूँ। यही मेरा मन लगा है। मैं अपनी दरख़्वासतें छोड़कर नहीं जा सकता।
यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
भोलाराम का जीव कहानी की समीक्षा (Bholaram ka Jeev Story Review)
यह कहानी सिर्फ कहानी के नायक भोलाराम की नहीं है। जैसा की हम जानते हैं साहित्य समाज का दर्पण हैं, उसी प्रकार इस कहानी में समाज का ऐसा दर्पण दिखाई दे रहा है, जिसमें व्यक्ति अपने अधिकार पाने के लिए जीवन भर संघर्ष करता रहता है, लेकिन उसे अधिकार नहीं मिलता है। एक दिन संघर्ष करते-करते उसकी मृत्यु हो जाती है। उसके साथ अन्याय इतना अधिक हो चुका होता है कि मृत्यु के बाद भी उसे मुक्ति नहीं मिलती जैसा की भोलाराम के जीव के साथ हुआ। मृत्यु के बाद जिस जीव को स्वर्ग जाना था, वह अपनी ही अर्ज़ियों की फाइल में जा बैठा।
न्याय या अधिकार न मिलने का कारण सिर्फ और सिर्फ लालच है, जिसका पता सरकारी दफ़्तर के कार्यकर्ताओं द्वारा बार-बार वज़न रखने की बात से पता चलता है। वे लोग स्पष्ट रूप से रिश्वत नहीं माँग रहे थे बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से वज़ रखने की बात कह कर रिश्वत माँग रहे थे। उनके अनुसार अगर पाँच साल पहले ही भोलाराम ने रिश्वत देकर अपना काम करवाने का प्रयास किया होता तो आज तक उसे पेंशन के लिए भटकना न पड़ता।
यह कहानी भोलाराम के माध्यम से भ्रष्टाचार पर रोशनी डालने का प्रयास कर रही है। यह कहानी है परिणाम स्वरूप यह तो नहीं कहा जा सकता कि भोलाराम समाज में हैं, लेकिन समाज का दर्पण होने के परिणाम स्वरूप यह ज़रूर कहा जा सकता है कि भोलाराम जैसे कई लोग होंगे जिन्हें न्याय या अधिकार इसलिए नहीं मिला क्योंकि उनके पास वज़न रखने के लिए वज़नदार वस्तु या धन नहीं है।
कहानीकार ने इस कहानी के माध्यम से समाज में अपनी जड़े मजबूत कर रहे भ्रष्टाचार पर व्यंग्य किया है। अर्थात व्यंग्य के माध्यम से भ्रष्टाचार पर प्रहार किया है।
भोलाराम का जीव क्या है?
भोलाराम का जीव भोलाराम की आत्मा है, जो भोलाराम के मरने के बाद यमदूत के साथ यमलोक जा रही थी, लेकिन रास्ते में यमदूत को चकमा देकर भाग गई।
भोलाराम का जीव कहानी का उद्देश्य क्या है?
भोलाराम कहानी का मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार पर रोशनी डालना था, साथ ही समाज को इस बात से अवगत कराना था कि भ्रष्टाचार के परिणाम स्वरूप जब किसी समान्य नगरिक को अधिकार या न्याय नहीं मिलता तो क्या होता है।
भोलाराम का जीव कहाँ अटका हुआ था?
भोलाराम का जीव उस फाइल में अटका था, जिसमें भोलाराम द्वारा दी गई दरख़्वास्त (एपलिकेशन) थी।
भोलाराम का जीव कहाँ और क्यों गायब?
भोलाराम का जीव यमदूत के साथ यमलोक जाते समय गायब हुआ था, भोलाराम का जीव इसलिए गायब हुआ था, क्योंकि उसकी एक इच्छा अधूरी रह गई थी। भोलाराम की इच्छा थी कि उसे पेंशन मिले जिसके लिए वह पिछले पांच साल से प्रयास कर रहा था, लेकिन अफ़सर उसका काम इसलिए नहीं कर रहे थे क्योंकि उसने अपनी दरख़्वास्त के साथ रिश्वत नहीं दी थी।
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