कर्मभूमि प्रेमचन्द (कर्मभूमि भाग – 1 अध्याय 13 व अध्याय 14) Study Material | (Karmabhumi Part – 1 Chapter 13 and Chapter 14) ग्यारह
कर्मभूमि (भाग -1) अध्याय तेरह का सारांश | Karmabhoomi (Part – 1) Summary of Chapter Thirteen
मुन्नी के बरी होने की खबर पूरे शहर में फैल गई। किसी ने कहा – जज की पत्नी ने यह फैसला जज से करवाया है। किसी ने कहा – सरकार ने जज को कहकर यह फैसला करवाया है, क्योंकि मुन्नी को सज़ा होने से पूरे शहर में दंगा होने की उम्मीद थी।
अमरकान्त ने मुन्नी के बरी होने का श्रेय खुद लेना चाहा, उसने रेणुका और आसपास को लोगों से कहा – मैं कहता था मुन्नी को बरी कराकर ही दम लूँगा, और वही किया। अमरकान्त का कहना था इसके लिए उसने बहुत मेहनत कि है।
अमरकान्त का कहना था, अगर वह फैसले के दिन वहाँ होता तो मुन्नी हरिद्वार नहीं जाती, वह उसे रोक लेता।
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पोता होने की खुशी में लाला समरकान्त ने दावत आदि में बहुत खर्चा किया। अमरकान्त ने समरकान्त द्वारा किए अनावश्यक खर्चे का विरोध नहीं किया, वह भी यही सोचता अभी खर्च नहीं करेंगे तो कब करेंगे। परिणाम सवरूप अमरकान्त अब घर से घनिष्ट रूप से जुड़ गया था। अब विद्यालय जाता था लेकिन जलसो और शभाओं में नहीं जाता था। सुबह शाम दुकान पर भी बैठता था। अमरकान्त की संतान के साथ सुख के दिन गुज़र रहे थे, इस प्रकार तीन महीने बीत गए।
एक दिन पठानिन आई, उसने बच्चे को देखा और उसे बच्चे की तबीयत खराब देखकर उसे तावीज़ देने कि बात कही। सुखदा ने बताया कभी ठीक नहीं रहता अक्सर बीमार ही रहता है। यह सुनकर पठानिन ने कहा जब ज़रूरत हो बुला लिया करो मैं आ जाऊँगी। पठानिन ने बच्चे के लिए रेशमी कुर्ता और एक टोपी उपहार में दी। तावीज़ भेजवाने के लिए वह अमरकान्त को अपने साथ ले गई।
बुढ़िया पठानिन ने सकीना की शादी के लिए लड़का खोजने के लिए अमर से कहा था, आज रास्ते में अमरकान्त को याद दिलाया। अमरकान्त यह बात भूल गया था। सकीना ने कुछ रूमाल और टोपियाँ बनाई थीं, अमरकान्त ने उसे बेचवाने का वायदा भी बुढिया से किया था, परिणाम स्वरूप पठानिन ने आज उसका भी ज़िक्र कर दिया। अमरकान्त को घर के बाहर खड़ा रखा और अन्दर से लाकर पठानिन ने तावीज़ दे दिया।
घर पहुँचकर अमरकान्त ने तावीज़ बच्चे के गले में बाँध दिया। वह बच्चे के साथ खेल ही रहा होता है, तभी सलीम आ जाता है। अमरकान्त सलीम के लेकर अलग कमरे में चला गया, वहाँ सलीम ने रात को लिखी गज़ल सुनाई। गज़ल सुनने के बाद अमरकान्त ने पठानिन के लाए रूमाल सलीम को दिखाए और उसे कहा अगर चाहो तो खरीद लो। सलीम के पूछने पर अमरकान्त ने बताया यह रूमाल पठानिन की पोती सकीना ने बनाई है। सलीम ने रूमाल खरीदने की शर्त रखी और कहा तुम्हें सकीना का घर दिखाना होगा। अमर ने यह शर्त स्वीकार कर ली, साथ ही चेतावनी देते हुए कहा खबरदार कोई शरारत की। अमरकान्त ने इसी दौरान सकीना कि शादी का भी ज़िक्र कर दिया, उसने चाहा सलीम उससे शादी कर ले, लेकिन सलीम ने कहा जैसी पत्नी का विचार उसने किया है, सकीना वैसी नहीं है। अगर सलीम कि नज़र में कोई हुआ तो बताएगा।
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सलीम रूमाल खरीदकर जो रूपए अमरकान्त को दे गया था। वह रूपए लेकर वह सकीना को देने चला गया। सकीना के यहाँ गया तो देखा अँधेरा है, बातचीत से पता चला सकीना के पास एक ही जोड़ी कपड़े हैं और वह गीले हैं, इसलिए उसने दिया बुझा दिया है। यह सुनते ही अमरकान्त वहाँ से चला गया।
उसने सोचा वह सकीना के लिए कपड़े खऱीद ले, लेकिन बज़ार बन्द हो चुका था। इसलिए वह घर जाकर सुखदा के कपड़े सकीना के लिए ले आया। सकीना ने अमरकान्त की अवाज़ सुनकर दरवाज़ा खोल दिया, जब तक अमरकान्त आया सकीना ने अपने कपड़े सुखाकर पहन लिए थे। अमर जो साड़िया सकीना के लिए लाया था, सकीना ने उसे लेने से मना कर दिया, क्योंकि उसके साड़िया लेने से सकीना की दादी पठानिन उस पर और अमरकान्त पर शक करेगी। साथ ही सकीना ने अमरकान्त को ज़्यादा अपने घर आने से भी मना कर दिया। उसे भय था कि लोग उसे और अमरकान्त को बदनाम करेंगे। सकीना की बात सुनकर अमरकान्त ने महसूस किया सुखदा के सामने वह दास है और सकीना के सामने स्वामी है।
अमरकान्त ने साड़ियाँ उठा ली और सकीना से कहा अगर तुम नहीं चाहती मैं यहाँ आऊँ तो नहीं आऊँगा, लेकिन अगर सिर्फ लोगों की बात है तो मैं उनकी परवाह नहीं करता हूँ। सकीना ने इसका उत्तर इस प्रकार दिया “ बाबूजी, मैं आपसे हाथ जोड़ती हूँ, ऐसी बात मुँह से न निकालिए। जब से आप आने-जाने लगे हैं, मेरे लिए दुनिया कुछ और ही हो गई है। मैं अपने दिल में एक ऐसी ताक़त, ऐसी उमंग पाती हूँ, जिसे एक तरह का नशा कह सकती हूँ, लेकिन बदगोई से तो डरना ही पड़ता है”।
सकीना चाहती थी, कि वह साड़ियाँ उठा ले, लेकिन संकोच के कारण ऐसा कर न सकी। अमरकान्त उठा और साड़िया लेकर चला गया।
कर्मभूमि (भाग -1) अध्याय चौदह का सारांश | Karmabhoomi (Part – 1) Summary of Chapter Fourteen
अमरकान्त इस बार जब सकीना से मिलकर आया तो, उसका मन नहीं लगता था। उसकी आँखों अब सकीना बस गई थी, सकीना कि यह बात “मेरे लिए दुनिया कुछ और हो गई है” अमरकान्त को मनोवैज्ञानिक रूप से सकीना कि तरफ खींच रही थी, परिणाम स्वरूप अमर का मन दुकान से फिर हटने लगा। अब सुखदा की प्रतिभा और गरिमा उसे बोझ लगते थे। अंतिम मुलाकात में अमर सकीना की गरीबी देखकर बहुत दुखी हो गया था। एक बार फिर से धर्म के नाम पर अंधविश्वास, छूआछूत और भेदभाव उसे बुरे लगने लगे। सकीना के बनाएँ रूमालों की पोटलियाँ बुढ़िया (पठानिन) लाकर अमरकान्त को देती और अमर उसे मुँह मांगे दाम दे देता, रेणुका अमर को जेब खर्च के लिए जो भी रूपए देती वह सब अमरकान्त सकीना की दादी को दे देता।
सकीना को सलीम के घर से भी सिलाई का काम मिलने लगा। बुढ़िया का रेणुका से परिचय के परिणाम स्वरूप चिकन की साड़ियाँ और चादरें बनाने का काम भी सकीना को मिलने लगा। जिस दिन सकीना ने कहा – आप यहाँ मत आया कीजिए, उस दिन से अमरकान्त सकीना के घर नहीं गया था।
विद्यालय में एक बार धर्म पर वाद-विवाद हुआ, परिणाम स्वरूप धर्म पर अमरकान्त ने ऐसा सकारात्मक भाषण दिया की सारे शहर में इसकी चर्चा होने लगी। यह भाषण अमरकान्त के हृदय में सकीना के होने का ही परिणाम था।
एक दिन सकीना की दादी सुखदा की साड़ियाँ लाई और आते ही उसने अमरकान्त को सकीना की शादी तय होने की खबर सुनाई, यह खबर सुनकर अमरकान्त खुश नहीं हुआ। परिणाम स्वरूप उसने सकीना की दादी से सकारात्मक व्यवहार नहीं किया। दादी को वहीं छोड़कर अमरकान्त सलीम के पास पहुँच गया।
जैसे ही अमर सलीम के पास पहुँचा सलीम ने उसे आते ही अपनी गज़ल सुनानी शुरू कर दी, पहले कुछ शेर उसे पसंद नहीं आए, लेकिन जैसे ही सलीम ने कहा – “कुछ मेरी नज़र ने उठ के कहा कुछ उनकी नज़र ने झुक के कहा, झगड़ा जो न बरसों में चुकता, तय हो गया बातों-बातों में” यह सुनकर अमर ने सलीम की तारीफ़ की।
अपने शेर सुनाने के बाद सलीम ने अमर को छोड़ते हुए पूछा – एक महीने से सकीना ने कोई रूमाल नहीं भेजा क्या। अमर गम्भीर होकर सकीना की शादी तय होने की बात बताई। अमर ने कहा अपनी बातों से सकीना के लिए प्रेम का इज़हार सलीम के सामने कर दिया। सलीम ने धर्म का सहारा लेते हुए कहा – तुम उससे शादी तो नहीं कर सकते। अमर ने कहा – मैं मज़हब की हक़ीक़त नहीं समझता कुछ भी नहीं। सलीम ने कहा – तुम्हारे विचार में तुम्हारे भाषण में सुन चुका हूँ, अख़बार में पढ़ चुका हूँ। सलीन ने कह भाषण एक बात है, और उस पर अमल दूसरी बात है।
सलीम ने पूछा – क्या तुमने सकीना से शादी के लिए पूछा? अमर सकीना से पूछने की ज़रूरत नहीं समझता और कहता है, वह राज़ी ही है। यह सुनकर सलीम ने अमरकान्त को सकीना से शादी करने के दुष्परिणाम बताने का नकाम प्रयास किया। अमर को इन परिणामों की ज़रा भी परवाह नहीं है। नतीजा कुछ भी हो अमर उसके लिए तैयार है, ऐसा उसने सलीम से कहा। सलीम ने अमरकान्त को चेतावनी देते हुए कहा – अगर सकीना को तुमसे मुहब्बत है तो वह यह कभी मंजूर नहीं करेगी। अमरकान्त ने यह भी सोच लिया अगर सकीना ने कहा – तुम मुसलमान बन जाओ, तो अमर मुसलमान भी बन जाएगा। सलीम ने फिर कहा – सकीना को ज़रा भी अक़्ल है, तो वह एक खानदान को भी तबाह न करेगी।
सलीम ले लगातार प्रयास करने पर भी जब अमरकान्त सलीम की बात नहीं समझा तो उसने पूछा – डॉक्टर शान्तिकुमार से भी इसका ज़िक्र किया है? अमर ने कहा – इसकी ज़रूरत नहीं है। अमर ने सलीम से कहा – “मैं अभी सकीना के पास जा रहा हूँ, उसने मंजूर कर लिया तो लौटकर यहीं आऊँगा, और मायूस किया तो तुम मेरी सूरत नहीं देखोगे”।
अमर सकीना से अकेले में बात करना चाहता है, इसी विचार के साथ वह सकीना के घर पहुँच गया। अमर जब सकीना से मिला तो सकीना ने बताया अम्मा (दादी) आपके यहाँ ही गई हैं। अमर ने कहा – हाँ मुझे मिली थीं। अमर ने कहा – जो खबर मुझे उन्होंने दी, उसने मुझे दीवाना बना दिया है। अमर ने सकीना से कहा – वह अपनी भवनाएँ कुछ दिन और छुपाए रहना चाहता था, लेकिन इस खबर ने उसके सब्र का बाँध तोड़ दिया। परिणाम स्वरूप अमरकान्त ने अपने प्रेम का इज़हार सकीना से कर दिया। सकीना ने यह बात सुनकर खुद को भाग्यशाली माना लेकिन साथ ही उसने अमर से कह दिया – “मेरे कारण आपकी रूसवाई हो, उससे पहले मैं जान दे दूँगी। मैं आपकी ज़िन्दगी में दाग़ न लगाऊँगी”। सकीना ने कहा – मैं सिर्फ तुम्हारी पूजा करना चाहती हूँ। अर्थात सकीना ने भी अमर के प्रति प्रेम से पूर्ण भवनाओं को स्वीकार कर लिया।
अमर ने सकीना से कहा – “लेकिन तुम्हारी शादी होने जा रही है”। यह सुनकर सकीना ने कहा – “मैं अब इन्कार कर दूँगी”। इतने में अचानक पठानिन ने दरवाज़ा खोला, अमर ने बात सभालते हुए कहा मुझे तो लगा था, तुम घर पहुँच गई होगी, बुढ़िया ने अमरकान्त से उसके आज के नकारात्मक व्यवहार के लिए नराज़गी जताई। अमर ने कहा – दादा से बात-चीत हो गई थी, उसी का गुस्सा था, और अपनी गलती के लिए माफ़ी माँगी।
अमर के जाते ही सकीना ने अपनी दादी से शादी करने के लिए मना कर दिया। उसने कहा –“अगर ज़िद करोगी तो मैं ज़हर खा लूँगी। शादी के ख़्याल से मेरी रूह फ़ना हो जाती है”।
By Sunaina
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