IGNOU MHD- 3 | कुत्ते की पूँछ
कुत्ते की पूँछ कहानी का परिचय (Itroduction to the Kutte kee Poonchh)
कुत्ते की पूँछ कहानी यशपाल द्वारा लिखी गई है। यह कहानी नई कहानी के अंतर्गत आती है। इस कहानी में एक समृद्ध महिला एक अनाथ बच्चे को अपने घर लाती है, शुरूआत में उस बच्चे की तारीफ़ करते नहीं थकती लेकिन कहानी के अंत तक वह खुद उस बच्चे (हरीश) से परेशान हो जाती है। महिला को हरीश को अपने घर लाने पर पछतावा होता है।
कुत्ते की पूँछ कहानी का सारांश (Summary of kutte kee poonchh)
लेखक के अनुसार श्रीमती जी कई दिनों से कह रही थीं फिल्म देखने के लिए, लेकिन लेखक बार-बार टाल रहे थे, एक दिन उन्हें अपनी पत्नी के साथ ‘उल्टी बयार’ फिल्म देखने जाना पड़ा।
जब वे फिल्म देखकर वापस लौट रहे थे तो रास्ते में एक बच्चा आधी रात को हलवाई की दुकान पर एक बच्चा बर्तन माँज रहा था और दुकान का मालिक एक किनारे सो रहा था। संभवत: वह कढ़ाई माँज रहा होगा और माँजते माँजते कढ़ाई में सो गया था। यह देखते ही श्रीमती जी ने कहा – “देखते हो जुल्म! क्यो तो बच्चे की उम्र है और रात के एक बजे तक यह कढ़ाई, जिसे वह हिला नहीं सकता, उससे मँजाई जा रही है”।
मालिक के लिए भला-बुरा बोलते हुए श्रीमती जी ने बच्चे को प्यार से उठाया और उसे अपने साथ ले जाने लगी। लेखक ने श्रीमती जी को समझाया साथ ही बिना माता-पिता की मर्ज़ी के उसे अपने साथ ले जाने के लिए मना किया। दुकान के मालिक को लगा कोई अफ़सर होगा, यह सोच कर उसने रोकने की कोशिश नहीं की। परिणाम स्वरूप श्रीमती बच्चे को अपने साथ ले गई।
बच्चे से पूछा तो पता चला उसके माता-पिता का देहांत हो गया है, उसका कोई रिश्तेदार उसे हलवाई के पास काम करने के लिए छोड गया है। दूसरे दिन दुकान का मालिक लेखक के घर पहुँच गया, और कहा उसके पिता को उसने साठ रूपये दिए थे, जिसे लौटाए बिना ही उसकी मृत्यु हो गई। मालिक के अनुसार बच्चा थोड़ा बहुत चीज़ इधर-उधर कर देता है, काम नहीं करता। लेखक ने हलवाई को क्रुएल्टी टू चिल्डन (बच्चों के निर्दयता) के जुर्म में गिरफ्तार करवाने की धमकी दी। जिसे सुनकर मालिक वहाँ से चला गया।
बच्चे का नाम हरीश है, हरीश श्रीमती जी ने हरीश के लिए हर तरह की सुविधाएँ प्रदान की, जो वह अपने बेटे बिशू के लिए करती हैं। हरीश यदि कोई भी अच्छा काम कर देता है, तो श्रीमती लेखक को खुश होकर बताती हैं। कभी-कभी बिशू हरीश को मार देता या उस पर बहुत गुस्सा करता जो श्रीमती जी को अच्छा नहीं लगता और वह निरंतर बिशू को ऐसा करने से रोकती हैं। साथ ही हरीश को किसी से कम न समझने का उपदेश देती हैं। श्रीमती जी लेखक से शिकायत करती हैं कि लेखक के मन में हरीश के लिए वैसा प्रेम क्यों नहीं है जैसा श्रीमती जी के मन में है।
कुछ ही दिनों में लेखक को केदारपुर जाना पड़ा। केदारपुर जाकर लेखक को घर की याद अत्याधिक आने लगी। केदारपुर जाकर लेखक की आमदनी बढ़ गई थी, जिसे देखकर लेखक वहाँ रहने की सारी असुविधाओं को नज़रअंदाज़ कर दिया।
लेखक को उनकी पत्नी द्वारा ख़त लिखे गए, परिणाम स्वरूप लेखक को घर की सारी जानकारी श्रीमती जी के ख़त के माध्यम से मिलती रही। शुरूआत के ख़त में श्रीमती जी ने हरीश की तारीफ़ की, लेकिन कुछ ही दिनों बाद वह हरीश की शिकायतें करने लगीं। उनका कहना है, हरीश ठीक से पढ़ता लिखता नहीं है, गली के लड़को के साथ खेलता है, सारा दिन सिर्फ खाना खाना चाहता है आदि।
जिस दिन लेखक केदारपुर से वापस आए, उस दिन भी श्रीमती ने सबसे पहले शिकायतें करनी शुरू कर दी, उनके अनुसार वह हरीश से जिस भी काम के लिए कहतीं हैं वह काम हरीश नहीं करता या ठीक से नहीं करता है। उनके अनुसार हरीश बिशू के खाने पर नज़र रखता है, जो बिशू को दो वहीं हरीश को भी दो।
एक दिन हरीश ने सुबह कपड़े सुखाए थे, और शाम को वह कपड़े उड़ गए परिणाम स्वरूप श्रीमती जी ने लेखक से कुछ ऐसी बाते कहीं जो उन बातों के बिलकुल विपरीत हैं, जिन्हें वह हरीश को घर लाने की लिए कह रही थीं। तब वह लेखक को यह बोलती की वे हरीश से प्रेम क्यों नहीं करते और अब कहती हैं कि तुमने ही इसे बिगाड़ रखा है। आज उन्होंने हलवाई द्वारा माँगे जा रहे साठ रूपये का ज़िक्र किया। समभवतः वह हरीश को अपने घर लाने पर पछता रही थीं। लेखक के अनुसार इसी प्रकार रोज़ झगड़ा बना रहेगा। इसी के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।
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कुत्ते की पूँछ कहानी की समीक्षा (Kutte Kee Poonchh Story Review)
इस कहानी में श्रीमती द्वारा हरीश को घर लाया जाता है, साथ ही वह हरीश को हर एक सुविधा प्रदान करने का प्रयास करती हैं। वह खुद यह चाहती हैं की हरीश खुद को बिशू श्रीमती के बेटे से कम न समझे। जब वह अपने इस प्रयास में सफल हो जाती हैं, जब हरीश खुद को बिशू के समान समझने लगता है, तो श्रीमती जी को यह अच्छा नहीं लगता। श्रीमती जी चाहती हैं, हरीश उनके पास तो रहे लेकिन उसे यह हमेशा याद रहे कि श्रीमती जी ने उसे अपने घर में रखकर एहसान किया है। जैसा कोई एहसान में दबा व्यक्ति व्यवहार करता है, वैसा ही वह भी व्यवहार करे।
उदाहरण के लिए मेज़ पर रखी नमकीन तो हरीश खाए लेकिन तब तक न खाए या खाने की इच्छा जताएँ जब तक श्रीमती जी उसे खाने को न दें।
लेखक ने इन बातों को अपने शब्दों में इस प्रकार कहा है – “जानवर को आदमी बनाना बहुत कठिन है। उसे पुचकार कर पास बुलाने में अच्छा लगता है। उसके प्रति दया का संतोष होता है परन्तु जब जानवर स्वयं ही पंजे गोद में रख मुँह चाटने का यत्न करे तो खींझ आती है।
Sunaina
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