रेडियो नाटक Study Material Class 12 – अभिव्यक्ति और माध्यम | Expression and Media (kaise banata hai rediyo naatak)
रेडियो नाटक का परिचय (Introduction to Radio Drama)
जब टी.वी हर घर में नहीं होती थी। तब घर में बैठे मनोरंजन का जो सबसे सस्ता और सहजता से प्राप्त साधन रेडियो था। रेडियों पर घबरें व ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आते थे, खेलों का हाल भी रेडियो पर ही प्रसारित होता था। गीत-संगीत भी रेडियो पर प्रसारित होते थे। रेडियो पर नाटक भी प्रसारित होते थे।
हिन्दी साहित्य के तमाम बड़े नाम साहित्य रचना के साथ-साथ रेडियो स्टेशनों के लिए नाटक भी लिखते थे। हिन्दी व अन्य भारतीय भाषाओं के नाट्य आंदोलन के विकास में रेडियो नाटक की अहम भूमिका रही है। हिन्दी के कई नाटक जो बाद में मंच पर भी बेहद कामयाब रहें हैं, मूलतः रेडियो के लिए लिखे गए थे। इसके श्रेष्ट उदाहरण “धर्मवीर भारती” कृत “अंधा युग” और “मौहन राकेश” का नाटक – “आषाढ़ का एक दिन” है।
रेडियो नाटक का स्वरूप (Radio Drama Format)
सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में भी चरित्र होते हैं और इन्हीं संवादों के ज़रिये कहानी आगे बढ़ती है। सिनेमा और रंगमंच की तरह रेडियो नाटक में विजुअल्स अर्थात दृश्य नहीं होते हैं।
रेडियो पूरी तरह से श्रव्य माध्यम है इसलिए रेडियो नाटक का लेखन सिनेमा व रंगमंच के लेखन में थोड़ा भिन्न भी है और थोड़ा मुश्किल भी है।
कहानी का प्रत्येक अंश संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से संप्रेषित करना होता है। रेडियो में मंच सज्जा, वस्त्र सज्जा नहीं है। साथ ही अभिनेता के चेहरे की भाव-भंगिमाएँ भी नहीं है। इसके अतरिक्त रेडियो नाटक जैसा ही है। रेडियो की कहानी का वही ढाँचा है – शुरूआत-मध्य-अंत, अर्थात परिचय-द्वंद-समाधान। यह सब प्रदर्शित करने का माध्यम सिर्फ आवाज़ है।
रेडियो नाटक की कहानी के आवश्यक तत्व (Essential Elements of a Radio Drama Story)
– कहानी ऐसी न हो जो पूरी तरह से एक्शन अर्थात हरकत पर निर्भर करती हो। क्योंकि रेडियो पर बहुत ज्यादा एक्शन सुनाना उबाऊ हो सकता है।
– आमतौर पर रेडियो नाटक की अवधि 15 मिनट से 30 मिनट होती है। क्योंकि श्रव्य नाटक या वर्ता जैसे कार्यक्रमों के लिए मनुष्य की एकाग्रता की अवधि 15 से 30 मिनट ही होती है, इससे ज़्यादा नहीं।
– टी.वी. या रेडियो में आ रहे कार्यक्रम इंसान अपने घर में अपनी मरज़ी से इन यंत्रों पर आ रहे कार्यक्रमों को देखता-सुनता है। जबकि सिनेमाघर या नाट्यगृह में बैठा दर्शक थोड़ा बोर हो जाएगा, तब भी आसानी से उठ कर नहीं जाएगा।
– घर पर बैठ कर रेडियो सुननेवाला श्रोता मन उचटते ही किसी और स्टेशन के लिए सुई घुमा देगा या संभव है उसका ध्यान भटक सकता है।
– रेडियो पर निश्चित समय पर निश्चित कार्यक्रम आते हैं, इसलिए उनकी अवधि भी निश्चित होती है- 15 मिनट, 30 मिनट, 45 मिनट, 60 मिनट आदि समय।
– अवधि सीमित होने के परिणाम स्वरूप पात्रों की संख्या भी सीमित हो जाती है।
– श्रोता सिर्फ अवाज़ के सहारे चरित्रों को याद रख पाता है।
– रेडियो नाटक लिखने या चुनाव करते समय मुख्य रूप से तीन बातों का ख्याल रखना है – 1) कहानी सिर्फ घटना प्रधान न हो 2) उसकी अवधि बहुत ज़्यादा नहो 3) पात्रों की संख्या सीमित हो।
– फिल्म की पटकथा और रेडियो के नाट्यलेखन में काफ़ी समानता है लेकिन सबसे बड़ा अंतर यह है कि रेडियो में दृश्य नहीं होते हैं।
– फिल्मों में नाटक की स्थिति का उपरी स्वरूप दृश्य के माध्यम से पता चल जाता है। लेकिन रेडियो में नाटक का स्थान व समय सब संवादो के माध्यम से ही पता चलता है।
रेडियो नाटक का लेखन कुछ इस प्रकार होगा- (The writing of the radio drama will be something like this-)
राम – श्याम, मुझे बड़ा डर लग रहा है, कितना भयानक जंगल है।
श्याम – डर तो मुझे भी लग रहा है राम। इत्ती रात हो गई घर में अम्मा-बाबू सब परेशान होंगे।
राम – यह सब इस नालायक मोहन की वजह से हुआ। (मोहन की नकल करते हुए) जंगल से चलते हैं, मुझे एक छोटा रास्ता मालूम है…
श्याम – (चौंककर) अरे। मोहन कहाँ रह गया? अभी तो यहीं था। (आवाज़ लगाकर) मोहन! मोहन!
राम – (लगभग रोते हुए) हम कभी घर नहीं पहुँच पाएँगे…
श्याम – चुप करो! (आवाज़ लगाते हुए) मोहन! अरे मोहन हो!
मोहन – (दूर से नज़दीक आती आवाज़) आ रहा हूँ, वहीं रूकना पैर में काँटा चुभ गया था। (नज़दीक ही कोई पक्षी पंख फड़फड़ाता भयानक स्वर करता उड़ जाता है) (राम चीख पड़ता है)
राम – श्याम, बचाओ।
मोहन – (नज़दीक आ चुका है) डरपोक कहीं का।
राम – (डरे स्वर में) वो… वो… क्या था?
मोहन – कोई चिड़िया थी। हम लोगों की आवाज़ों से वो खुद डर गई थी। एक नंबर के डरपोक हो तुम दोनों।
श्याम – मोहन रास्ता भटका दिया, अब बहादुरी दिखा रहा है…
रेडियो नाटक के लिखित लेख में रात हो गई है, और यह तीनों दोस्त जंगल में है। यह दृश्य के माध्यम से नहीं बल्कि “राम – श्याम, मुझे बड़ा डर लग रहा है, कितना भयानक जंगल है” और “श्याम – इत्ती रात हो गई घर में अम्मा-बाबू सब परेशान होंगे” के संवाद से पता चलता है।
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