Study Material : बहादुर कहानी का सारांश व समीक्षा | Summary and Review Story Bahadur | Nios Hindi study material
बहादुर कहानी विषय (Subject)
जीवन में अभाव तो होता है, लेकिन उस अभाव में अगर परिवार का साथ न हो तो ज़िन्दगी के संघर्ष और बढ़ जाते हैं। परिवार के साथ रहने से ज़्यादा जरूरी है, उनका मनोवैज्ञानिक रूप से साथ रहना। हर व्यक्ति ऐसा साथ और सहयोग अपनी माँ में सबसे पहले तलाशता है, लेकिन जब का सहयोग भी नहीं मिलता तो व्यक्ति निराश हो जाता है, और वह ज़िन्दगी से भागने लगता है, आज हम ऐसी ही कहानी की बात कर रहे हैं, कहानी का नाम है- बहादुर।
यह कहानी अमरकांत द्वारा लिखी गई है, वर्तमान में यह विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम में भी लगाई गई है।
कहानी के पात्र – कथावाचक, किशोर, बहादुर, पडोसन, निर्मला हैं।
बहादुर कहानी का सारांश (Summary and Review Story Bahadur)
यह कहानी एक बारह-तेरह साल के बच्चे की है, जिसका नाम बहादुर है। बहादुर नेपाल और बिहार के सीमा पर पड़ने वाले गाँव का रहने वाला है। कहानी कथावाचक के द्वारा बहादुर के रेखाचित्र स्वरूप वर्णन से होती है। बहादुर के पिता सेना में थे, लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के बाद घर की सारी ज़िम्मेदारी उसकी माँ पर आ गई, जिस कारण वह बहादुर को ज़िम्मेदार जल्द से जल्द बना देना चाहती है।
बहादुर को ज़िम्मेदार बनाने की कोशिश में बहादुर की माँ उसके साथ अनुचित व्यवहार करती है, उस पर हाथ उठाती है। जिसका बहादुर की मनोवृत्ति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। माँ उसे कई बार पीटती है, जिसके कारण वह घर से भाग जाता है।
बहादुर को कथावाचक का साला नौकरी पर रखने के लिए लाता है, कथावाचक का मध्यमवर्गीय परिवार है। इस परिवार में निर्मला नौकर को एक दिखावे की चीज समझती है, इसलिए वह इसका अप्रत्यक्ष रूप से प्रदर्शन भी करती है।
कथावाचक का एक बेटा है, जिसका नाम किशोर है। किशोर लगभग बहादुर की ही उम्र का है। बहादुर इस परिवार में आकर खुद को बहुत सुखी समझता है, लेकिन निर्मला के व्यवहार के कारण उसे बाद में परेशानी उठानी पड़ती है।
निर्मला शुरू-शुरू में बहादुर को स्नेह करती है, उसे प्यार से अपने पास रखती है, जिस कारण बहादुर भी घर का सारा काम भाग-भाग कर करता है। किशोर का काम भी बहादुर करता है, क्योंकि किशोर बिगडेल लड़का है। किशोर बहादुर को मारता भी है, लेकिन कथावाचक या निर्मला कोई किशोर को कुछ नहीं करते हैं।
एक दिन निर्मला की पड़ोसन ने कहा – नौकरों का खाना नहीं बनाना चाहिए क्योंकि नौकर बिगड़ जाते हैं। निर्मला पड़ोसन की बातों में आ जाती है और बहादुर खा खाना बनाना बन्द कर देती है। अपना खाना बनाने के बाद वह बहादुर को कहती है, वह अपना खाना खुद बना ले। बहादुर की माँ भी उसे अपना खाना खुद बनाने के लिए कहती थी, आज निर्मला ने भी यह बात कहीं, बहादुर इस बात से इतना आहत होता है कि बिना खाए ही सो जाता है।
एक दिन कथावाचक के यहाँ कुछ मेहमान आते हैं, मेहमान कहते हैं उनके रूपए खो गए हैं, बहादुर शकल से ही चोर लगता है। पक्का उसी ने हमारे रूपए चुराए होंगे। कथावाचक और निर्मला उनकी बात पर यकीन कर लेते हैं, और बहादुर को पीटते हैं।
शाम को कथावाचक जब लौटकर आता है, तो देखता है घर का सारा काम पड़ा है, अँगीठी अभी जली नहीं थी, आँगन गंदा पड़ा था, बर्तन बिना मले रखे हुए थे।
निर्मला कथावाचक से कहती है, बहादुर भाग गया है। बहादुर अपना सारा समान वहीं छोड़कर चला जाता है, अपनी टोपी, खेलने के कंचे, कुछ पैसे जो बहादुर को काम करने के बदले कथावाचक ने दिए थे, वह सब वह वहीं छोड़कर चला जाता है, कुछ भी नहीं लेकर जाता।
यह सब देखकर कथावाचक, निर्मला और किशोर को अपनी गलतियों का एहसास होता है, लेकिन अब वक्त गुज़र चुका है। बहादुर जा चुका है, वह अपने किए गए व्यवहार को नहीं बदल सकते हैं।
बहादुर कहानी की समीक्षा (Bahadur Story Review)
इस कहानी में बहादुर के माध्यम से कई प्रकार की समस्याओं का चित्रण किया गया है। बहादुर की माँ जो अब विधवा है, उसके ऊपर घर की सारी ज़िम्मेदारी है, वह बहादुर को ज़िम्मेदार बनाना चाहती है, बहादुर ही एकमात्र उसका सहारा है, लेकिन इस काम को करने के लिए जो तरीका वह अपनाती है, उससे बहादुर के बालमन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, वह बहुत आहत होता है। कहानी के इस केन्द्र पर बाल मनोवेज्ञानिक चित्रण देखने को मिलता है।
दूसरी तरफ जब बहादुर कथावाचक के यहाँ नौकरी करता है तो बाल मज़दूरी का चित्रण देखने को मिलता है। वर्तमान में भारत बाल श्रम गैर कानूनी है, लेकिन विचार करने वाली बात है, क्या बाल श्रम पूर्ण रूप से ख़तम हो पाया है?
साहित्य समाज का दर्पण है, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि समाज में बाल श्रम पूर्ण रूप से ख़तम हो गया है। अभावों में मजबूरी में आज भी हमें आते-जाते कहीं न कहीं बच्चें पढ़ाई के स्थान पर श्रम करते नज़र आ ही जाते हैं।
इस कहानी में मलिक द्वारा नौकर के साथ किए अनैतिक व्यवहार का भी चित्रण देखने को मिलता है।
इस कहानी में तीन समस्याएँ मुख्य रूप से देखने को मिलती हैं-
1) बाल मनोविज्ञान पर पड़ा नकारात्मक प्रभाव।
2) बाल श्रम देखने को मिलता है।
3) मलिकों द्वारा नौकर का शोषण करने का चित्रण भी देखने को मिलता है।
कहानी का निष्कर्ष (Conclusion Of The Story)
निषकर्ष समभवत: वही होता है, जो कहानी के बाद पाठक को सीखने को मिलता है, इस कहानी में दो चीजे सीखने को मिलती है- चाहे कितना भी अभाव हो कितनी भी मजबूरी हो माता-पिता को अपने बच्चे को प्यार से कोई भी चीज सीखानी चाहिए, अपनी बाल अवस्था के कारण चाहें भले माता-पिता द्वारा पीटे जाने का विरोध बच्चें न कर सकें, लेकिन मन ही मन वह अपने ही माता-पिता के विरोधी हो जाएँगे।
आत्मसम्मान सब का होता है, चाहे कोई अमीर व्यक्ति हो या गरीब। बड़ा हो या छोटा। बहादुर का भी आत्मसम्मान था, बहादुर को पहले भी निर्मला और किशोर ने मारा था, लेकिन उसने घर नहीं छोड़ा। जब उस पर चोरी का झूठा इल्ज़ाम लगाया गया, तब उसने अपने आत्मसम्मान के लिए कथावाचक का घर छोड़ दिया।
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