UGC Net JRF Hindi :  अमृतसर आ गया कहानी का सारांश व संवाद | Summary And Dialogue Of The Story Amritsar Aa Gaya

UGC Net JRF Hindi : Study Material  अमृतसर आ गया कहानी का सारांश व संवाद | Summary And Dialogue Of The Story Amritsar

कहानी का परिचय (Introduction To The Story)

अमृतसर आ गया कहानी भीष्म साहनी द्वारा लिखी गई है, विभाजन का लोगों की मनोवृत्ति पर किस प्रकार प्रभाव पड़ रहा है, इस कहानी की पृष्ठभूमि है।

यह कहानी भारत-पाक विभाजन के परिदृश्य को प्रस्तुत करती है।

कहानी के पात्र – कथावाचक, बाबू, सरदार, पठान, बुढ़िया।

गौड़ पात्र – स्त्री, मुस्लिम व्यक्ति, हलवाई।

यह कहानी पटरियां कहानी संग्रह में संकलित है, इसमें कुल 14 कहानियाँ संकलित हैं। इसका प्रकाशन सन 1973 में हुआ है। कहानी मैं शैली में लिखी गई है।

अमृतसर आ गया कहानी का संक्षिप्त सारांश (Brief Summary of The Story Amritsar Aa Gaya)

यह कहानी विभाजन के दौरान हो रहे मानसिक बदलाव की कहानी है। पूरी कहानी में ट्रेन यात्रा का चित्रण है। ट्रेन यात्रा के दौरान कथावाचक, बाबू, सरदार, पठान, बुढ़िया का संवाद दिखाई देता है। यही लोग इस कहानी को आगे बढ़ाते हैं।

ट्रेन में पहले भीड़ कम होती है, लेकिन धीरे-धीरे भीड़ बढ़ने लगती है। ट्रने के अन्दर का मुसाफ़िर चाहता है, कि बाहर का कोई नया यात्री अन्दर न आए। हर स्टेशन पर बाहर से आने वाले मुसाफिरों को रोकने की कोशिश की जाती है, लेकिन जब वह जैसे-तैसे अन्दर आ जाता है, तो कुछ ही देर में वह भी डिब्बे के अन्दर वाले मुसाफ़िरों के साथ घुल-मिल जाता है। जो मुसाफ़िर पीछले स्टेशन पर ट्रेन में चढ़ने के लिए परेशान होता है, वही मुसाफ़िर अगले स्टेशन पर नए यात्री को चढ़ने से रोकता है।

एक मुसाफ़िर अपनी पत्नी और बेटी के साथ ट्रने में चढ़ना चाहता है, लेकिन अन्दर बैठे मुसाफ़िर उसे चढ़ने देने में मुश्किल पैदा कर रहे हैं। ऊपर की बर्थ पर बैठा पठान आदमी को एक लाट मारता है, लेकिन वह लात उसकी पत्नी की छाती पर लग जाती है। उसे इतना दर्द होता है कि हाय-हाय करते वह बैठ जाती है। दूसरे पठान ने आदमी का संदूक ट्रेन से बाहर फैंक दिया परिणाम स्वरूप आदमी उसकी पत्नी, और बेटी को भी ट्रने से उतरना पड़ा। एक बुढ़िया जो चाहती थी कि वह साथ में जैसे-तैसे सफर कर लें।

बाबू एक दुबला-पतला पुरूष है, जिसका पठान मज़ाक उड़ाते हैं। बाबू को पठान द्वारा औरत के साथ किया व्यवहार अच्छा नहीं लगा। जैसे ही अमृतसर आया बाबू ज़ोर से चिल्लाय अमृतसर आ गया। उसके बाद वह पठान को गाली देने लगा, जैसे ही उन्हें मारने के लिए शायद छड़ लेने गया, पीछे से सारे तीनो पठान ट्रेन से उतर कर दूसरे डब्बे में चले गए।

बाबू आया उन्हें न पाकर डिब्बे के बाकी मुसाफ़िरों को बुज़दिल कहने लगा क्योंकि उन्होंने पठान न कुछ कहा, न रोका। इसके बाद कथावाचक सो गया, उसकी आँख खुली तो ट्रेन किसी और स्टेशन से निकल रही थी, एक मुस्लिम परिवार लगातार ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहा था, बाबू ने पहले तो दरवाज़ा बन्द रखा, फिर दरवाज़ा खोल कर उस व्यक्ति के सर पर छड़ से मार दिया। उसका खून बहने लगा, उसके हाथ से ट्रेन का डंडा छूट गया और वह गिर गया। साथ-साथ उसकी पत्नी भाग रही थी, उसने भी भागना छोड़ दिया।

बाबू वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया। दिन हो गया सरदार जी बाबू से फिर से हँसी मज़ाक करने लगा। कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है।

अमृतसर आ गया कहानी की घटना व संवाद (Amritsar Aa Gaya Incident And Dialogue Of The Story)

गाड़ी के डिब्बे में शुरू में बहुत मुसाफ़िर नहीं थे।

सरदारजी कथावाचक को लाम के क़िस्से सुना रहे थे, वे बर्मा की लड़ाई में भाग ले चुके थे।

ट्रेन के डिब्बे में तीन पठान व्यापारी थे। वह दुबले-से बाबू के साथ मज़ाक़ कर रहे थे।

वह दुबला बाबू पेशावर का रहने वाला जान पड़ता है।

कथावाचक दिल्ली में होने वाला स्वतंत्रता दिवस समारोह देखने जा रहा था।

पाकिस्तान के बनाए जाने का ऐलान किया गया था।

सरदारजी बार-बार पूछ रहे थे पाकिस्तान बनने के बाद जिन्ना साहब बंबई में ही रहेंगे या पाकिस्तान में?

जेहलम (झेलम) स्टेशन का ज़िक्र है।

पठान ने बाबू को कहा तू दाल खाता है इसलिए दुबला है।

बाबू ने पश्तो में कुछ जवाब दिया।

पठान बोला- ओ खंजीर के तुख़्म, इधर तुमें कोन देखता ए? हम तेरी बीवी को नई बोलेगा। ओ तु अमारे साथ बोटी तोड़। हम तेरे साथ दाल पिएँगा…

बाबू कभी-कभी दो शब्द पश्तो में ङी कह देता है।

वज़ीराबाद स्टेशन का ज़िक्र है।

भागते व्यक्ति, खटाक से बंद होते दरवाज़े, घरों की छतों पर खड़े लोग, चुप्पी और सन्नाटा, सभी दंगों के चिह्न थे।

डिब्बे में कोई चढ़ना चाहता है, तो डिब्बे के अन्दर वाले लोग विरोध करते हैं, लेकिन जब वह अन्दर आ जाते हैं तो कुछ देर में सब शान्त हो जाते हैं, नए लोग डिब्बे के निवासी बन जाते हैं।

मैले-कुचैले कपड़ों व लटकती मूँछों वाला आदमी अन्दर ट्रेन के अन्दर आकर काले रंग का संदूक़ घसीटने लगा। उसकी पतली सूखी औरत और साँवली-सी लड़की थी, जिसे अन्दर लाता है।

लोगों के विरोध करने पर आदमी कहता है- टिकट है जी मेरे पास मैं बेटिकट नहीं हूँ। शहर में दंगा हो गया है।

पठान ने मुसाफ़िर को लात मारने की कोशिश की लेकिन वह लात उसकी पत्नी को लग गई। मुसाफ़िर की पत्नी हाय-हाय करती बैठ गई।

दूसरे पठान ने संदूक़ दरवाज़े में से नीचे धकेल दिया जहाँ लाल वर्दी वाला एक कुली खड़ा सामान अंदर पहुँचा रहा था।

बुढ़िया ने कहा – ऐ नेकबख़्तो, बैठने दो, आ जा बेटी, तू मेरे पास आ जा। जैसे-तैसे सफ़र काट लेंगे। छोड़ो, बे ज़ालिमों, बैठने दो…

परिस्थिति से हार कर मुसाफ़िर उसकी पत्नी, और बेटी नीचे उतर गए।

बुढ़िया ने कहा – तुम्हारे दिल में दर्द मर गया है। छोटी सी बच्ची उनके साथ थी, बेरहमो, तुमने बहुत बुरा किया है धक्के देकर उतार दिया है।

पठान बाबू को कहता है- ऐसे आदमी को अम डिब्बे में बैठने नई देगा। औ बाबू, तुम अगले स्टेशन पर उतर जाओ और जनाना डिब्बे में बैठो।

बाबू उठकर ट्रेन के फ़र्श पर लेट गया था, शायद उसे डर था कि शहर से गाड़ी पर पथराव होगा या गोली चलेगी, शायद इसी कारण खिड़कियों के पल्ले चढ़ाए जा रहे थे।

ऊपर की बर्थ वाले पठान ने काले मणकों की तसबीह निकाल ली और उसे धीरे-धीरे हाथ में चलाने लगा।

सहसा बाबू ने कहा- हरबंसपुरा निकल गया है।

तसबीह वाला पठान हँसने लगा, कथावाचक कहता है- वह हरबंसपुरा की स्थिति से अथवा उसके नाम से अनभिज्ञ था।

बाबू एक-आध बार पठान को देखकर खिड़की से बाहर झाँकने लगा।

बाबू ऊँची आवाज़ में चिल्लाया- अमृतसर आ गया है, पठान से कहने लगा- “ओ बे पठान के बच्चे, नीचे उतर, तेरी माँ की… नीचे उतर, तेरी उस पठान बनाने वाले की मैं…”

“नीचे उतर, तेरी माँ… हिन्दु औरत को लात मारता है, हरामज़ादे, तेरी उस…”

पठान और बाबू के बीच बहस होने लगी…

बुढ़िया ने कहा- वे जीण जोगयो, अराम नाल बैठो। ये रब्ब दियो बंदयो, कुछ होश करो।

बाबू इधर-उधर चला गया तो, इतनी देर में पठान डिब्बे से उतर कर किसी और डिब्बे में चले गए।

बाबू आय तो कहा- निकलगए हरामी, मादर… सबके सब निकल गए। फिर वह सिटपिटाकर उठ खड़ा हुआ और चिल्लाकर बोला – “तुमने उन्हें जाने क्यों दिया? तुम सब नामर्द हो, बुज़दिल!

बाबू बार-बार कथावाचक से पूछता है कि डिब्बे से निकलकर किस ओर गए हैं?

कथावाचक की नींद टूटी तो, डिब्बे मे अँधेरा था। गाडी किसी स्टेशन से निकली थी… अभी तक धीमी थी, रफ़्तार नहीं पकड़ी थी।

कोई व्यक्ति कहकर कथावाचक ने उसे संबोधित किया है, जिसे बाबू ने पठान के प्रति गुस्से के कारण सर पर छड़ से मारा है।

व्यक्ति के कंधे पर एक गठरी झूल रही थी और हाथ में लाठी थी और उसने बदरंग से कपड़े पहन रखे थए और उसके दाढ़ी थी। व्यक्ति के पीछे एक औरत भी आ रही थी जिसने दो गठरियाँ उठा रखी थीं। व्यक्ति डिब्बे के पायदान पर चढ़ गया था।

वह दरवाज़ा खोलने के लिए विनती करने लगा – बाबू ने दरवाज़े पर जाकर बोला यहाँ जगह नहीं है।

बाबू ने दरवाज़ा खोला और जो छड़ वह पठान को मारने के लिए लाया था, उससे उसने उस व्यक्ति के सर पार मार दिया। उसकी गठरी गिर गई और ख़ून बहने लगा। साथ मे भागती औरत कोसे जा रही थी, लेकिन अभी यह मालून नहीं हुआ कि व्यक्ति को चोट लग गई है। कुछ ही क्षण में आदमी ने ट्रेन डंडहरे को छोड दिया और गिर गया।

बाबू दबे पाँव चलता हुआ आया और कथावाटक की बग़ल वाली सीट पर बैठ गया।

सरदार ने बाबू से कहा- बड़े जीवट वाले हो बाबू, दुबले-पतले हो, पर बड़े गुर्दे वाले हो। बड़ी हिम्मत दिखाई है। तुमसे डरकर ही वे पठान डिब्बे में से निकल गए, यहाँ बने रहते तो एक न एक की खोपड़ी तुम ज़रूर दुरुस्त कर देते…और सरदारजी हँसने लगे।

बाबू जवाब में मुस्कुराया, एक वीभत्स-सी मुसकान और देर तक सरदार के चेहरे की ओर देखता रहा।

तीन रेलवेस्टेशन का ज़िक्र है- जेहलम (झेलम), वजीराबाद, हरिवंशपुरा, अमृतसर।


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