UGC Net JRF Hindi :  लाल पान की बेगम कहानी की घटना व संवाद | Incident And Dialogue Of The Story Lal Pan Ki Begum

UGC Net JRF Hindi । Study Material  :  लाल पान की बेगम कहानी की घटना व संवाद | Incident And Dialogue Of The Story Lal Pan Ki Begum

कहानी का परिचय (Introduction to the story)

लाल पान की बेगम फणीश्वर नाथ रेणु द्वारा लिखी गई है। लाला पान की बेगम का शब्दिक अर्थ है- अपनी विशेष महत्ता रखने वाली।

यह कहानी ‘कहानी पत्रिका’ में 1957 में प्रकाशित हुई थी। बाद मे इसे ठुमरी में संकलित कर दिया गया।

यह कहानी आंचलिक विशेषता से युक्त है।

कहानी मे लोकभाषा और कुछ अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग है।

स्त्री सशक्तिकरण का चित्रण है।

ग्रामीण सामाजिक स्थिति का वर्णन है।

धान की फसल का ज़िक्र है, साथ ही फसल के प्रति किसान के प्रेम का ज़िक्र है।

बलराम पुर का नाच देखने जाने पर ही कहानी केन्द्रित है।

लाल पान की बेगम ठुमरी कहानी में संकलित कहानियों में आठवें नम्बर की कहानी है।

कहानी का विषय – बलरामपुर के मेले का नाच देखने जाने की घटना के केन्द्र में बिरजू की माँ का चरित्र चित्रण किया गया है।

यह कहानी ठुमरी संग्रह में 1959 में संकलित हुई, लेकिन 1956 में लिखी गई थी।

पुंज प्रकाश ने इस कहानी का नाट्य रूपान्तरण किया है। 2017 में शारदा सिंह के निर्देशन में पटना के कालिदास रंगालय में मंचित किया गया।

बिरजू की माँ स्त्री सशक्तिकरण का उदाहरण है।

कहानी के पात्र

स्त्री पात्र – विरजू की मां, चंपिया, जंगी की पतोहू, लरेना की बीवी, राधे की बेटी, मखनी फुआ, सुनरी, सिद्धु की बहु

लाल पान की बेगम कहानी का संक्षिप्त सारांश (Brief summary of the story Lal Pan Ki Begum)

यह कहानी बिरजू की माँ के स्वाभिमान की है, बिरजू की माँ कई दिनों से पूरे गाँव में कहती आ रही है, कि बलराम पुर का मेला देखने के लिए बैलगाडी पर बैठकर हम जाएँगे। लेकिन जब मेले का दिन आता है, तो पूरे टोले में कहीं गाडी नहीं मिलती जिस कारण उसे मेले में जाने कि लिए देर हो जाती है, जिसका गुस्सा वह बच्चों पर हाथ उठाकर निकालती है।

पडोसिन मखनी फुआ के पुछने पर कि मेला नहीं गई, वह उन्हें भी कड़वे शब्दों से उत्तर देती है। जंगी की पतोहू उसे इन्हीं कारणों से लाल पान की बेगम कहती है। कुछ साल पहले भाग-दौड़ करके पाँच बीघा ज़मीन मिल गई, जिस कारण गाँव के लोग बिरजू के परिवार से जलते हैं। बिरजू की माँ जो सामने बातें कह देती है, लेकिन किसी के लिए मन में द्वेष भावना नहीं रखती है।

शाम को बिरजू के पापा टूसरे टोले (मोहल्ले) से गाडी ले आते हैं, तो बिरजू की माँ जंगी की पतोहू को भी अपने साथ ले जाती है, जबकि कुछ समय पहले ही उसने सबके सामने उसे ताना देते हुए उसका मज़ाक उड़ाया था। मखनी फुआ को भी वह मना लेती है। बलराम पुर का मेला देखने जाने के लिए तैयारी से लेकर मेले के लिए निकलते तक की कहानी का चित्रण “लाल पान की बेगम” कहानी में किया गया है।

कहानी की घटना व संवाद (story events and dialogues)

क्यों बिरजू की माँ, नाच देखने नहीं जाएगी क्या? (मखनी फूआ ने पूछा)

सात साल का लड़का बिरजू शकरकन्द के बदले तमाचे खाकर आँगन में लोट-लोटकर सारी देह में मिट्टी मल रहा था।

बिरजू की माँ ने कहा – आगे नाथ और पीछे पगहिया न हो तब न फुआ।

जंगी की पतोहू बिरजू की माँ से नहीं डरती। वह तेज से कहती है- फुआ- आ। सरबे सित्तलमिंटी (सर्वे सेटलमेंट) के हाकिम के बासा पर फूलछाप किनारीवाली साड़ी पहनके यदि तू भी भटा की भेंटी चढ़ाती तो तुम्हारे नाम से भी दु-तीन बीघा धनहर ज़मीन का पर्चा कट जाता।

जंगी की पतोहू मुँहजोर है। रेलवे स्टेशन के पासकी लड़की है, तीन महीने गौने को हुए हैं, सारे कुर्माटोली की सभी झगड़ालू सासों से एकाध मोरचा ले चुकी है। ससुर जंगी दागी चोर है, की-किलासी है। खसम (पति) कुर्माटोली का नामी लठैत है। लेखक कहता है, इसलिए हमेशा सींग खुजाती फिरती है जंगी की पतोहू।

बिरजू की माँ ने चंपिया को अवाज़ दी- “अरी चम्पिया-या-या, आज लौटे तो तेरी मूड़ी मरोड़कर चूल्हे में झोंकती हूँ। दिन-दिन बेचाल होती जाती है”। चम्पिया के लिए कहती है- कहीं बैठके “बाजे न मुरलिया” गीत सीख रही होगी।

जंगी की पतोहू ने कहा- “चल दिदिया, चल! इस मुहल्ले में लाल पान की बेगम बसती है। नहीं जानती, दोपहर दिन और चौपहर-रात बिजली की बत्ती भक्-भक् कर जलती है।

सबसे पहले बिरजू की माँ को लाल पान की बेगम जंगी की पतोहू ने कहा।

भक्-भक् बिजली-बत्ती की बात सुनकर न जाने क्यों सभी खिलखिलाकर हँस पड़ीं।

मखनी फुआ ने जंगी की पतोहू को प्यार से शैतान की नानी कहा।

तीन साल पहले सर्वे कैम्प के बाद गाँव के लोग बिरजू के परिवार से जलने लगे हैं।

चम्पिया की माँ के आँगन में चाँदी जैसे पाट सूखते देखकर जलनेवाली सब औरतें खलिहान पर सोनाली धान के बोझों को देखकर बैंगन का भुर्ता हो जाएँगी।

बिरजू की माँ अपनी बेटी चंपिया को हरजाई हुए कहती है, कभी बाजे न मुरलिया गीत सीखने पर क्रोधित होती है।

बिरजू ने कहा- “ऐ मैया, एक अंगुली गुड़ दे दे। बिरजू ने तलहठी फेलाई- दे ना मैया, एक रत्ती भर”!

बलराम पुर का मेला देखने जाने के लिए मीठी रोटी बनने वाली थी, लेकिन समय पर बैलगाड़ी ना आने पर बिरजू की माँ सारा गुस्सा बच्चों पर उतार देती है।

चम्पिया दस साल की है।

सिद्धू की बहू एक घंटे के लिए कड़ाही माँगकर ले गई थी, जिसे उसने समय पर नहीं लौटाया जिस कारण बिरजू की माँ इस पर भी क्रोधित हो रही है।

चम्पिया ने बताया – कोयरीटोले में किसी ने गाड़ी नहीं दी मैया!  बप्पा बोले, माँ से कहना सब ठीक-ठाक करके तैयार रहें। मलदहियाटोली के मियाँजान की गाड़ी लाने जा रहा हूँ।

बिरजू छोटी कड़ाही सिर पर औंधा कर वापस आया- चम्पिया से कहता है, देख दिदिया मलेटरी टोपी। दस लाठी मारने से भी कुछ नहीं होता।

एक महीना पहले से ही मैया कहती थी, बलरामपुर के नाच के दिन मीठी रोटी बनेगी, चम्पिया छींट की साड़ी पहनेगी, बिरजू पैंट पहनेगा बैलगाड़ी पर चढ़कर…

चम्पिया की भीगी पलकों पर एक बूँद आँसू आ गया।

बिरजू की माँ सोचती है- चोरी-चमारी करनेवाले की बेटी-पतोहू जलेगी नहीं। पाँच बीघा ज़मीन क्या हासिल की है बिरजू के बप्पा ने, गाँव की भाईखौकियों की आँखों में किरकिरी पड़ गई है।

बिरजू के बप्पा ने एक-एक आदमी को समझा के कहा था- “जिन्दगी भर मज़दूरी करते रह जाओगे। सर्वे का समय आ रहा है, लाठी कड़ी करो तो दो-चार बीघे ज़मीन हासिल कर सकते हो।

गाँव की किसी पुतखौकी का भतार सर्वे के समय बाबूसाहेब के खिलाफ खाँसा भी नहीं।

बाबूसाहेब का बड़ा बेटा बिरजू के बप्पा को घर में आग लगाने की धमकी देकर गया।

बाबूसाहेब का छोटा लड़का बिरजू की माँ को मौसी कहके पुकारा- “यह ज़मीन बाबूजी ने मेरे नाम से खरीदी थी। मेरी पढ़ाई-लिखाई उसी ज़मीन की उपज से चलती है। बिरजू की माँ सोचती है, वह खूब मोहना (मोहित करना) जानता है।

बिरजू की माँ का भाग ही खराब है, जो ऐसा गोबरगनेश घरवाला उसे मिला।

बिरजू का नाम बिरजमोहन है।

बिरजू के बप्पा गाड़ी लेकर आए तो माँ गुस्से से बोली – नहीं देखना नाच। लौटा दो गाड़ी।

बिरजू के बप्पा धान की पँचसीसी अर्थात धान की बालियाँ लेकर आए थे।

ढिबरी की रोशनी में धान की बालियों का रंग देखते ही बिरजू की माँ के मन का सब मैल दूर हो गया। धानी रंग उसकी आँखों से उतरकर रोम-रोम में घुल गया।

मीठी रोटी बनाने के लिए बिरजू की माँ अब मखनी फुआ को बुलाती है- लेकिन वह जवाब नहीं देती और बड़बड़ाती है- सारे टोले में बस एक फुआ ही तो बिना नाथ- पगहियावाली है।

बिरजू की माँ ने हँसकर फुआ को मना लिया।

चम्पिया ने छींट की साड़ी पहनी। बिरजू की माँ ने असली रूपा का माँगटिक्का पहना पहली बार। गाड़ी पर बैठते ही बिरजू की माँ को अजीब सी गुदगुदी होने लगी।

लरेना खवास की बहू भी नहीं गई है, गिलट का झुनकी कड़ा पहनकर झमकती आ रही है। उसे भी बिरजू की माँ ने गाड़ी में बैठा लिया।

राधे की बेटी सुनरी, जंगी की पतोहू, लरेना की बीवी तीनों बिरजू के परिवार के साथ बैलगाडी में बैठकर मेला देखने गईं।

तीन मीठी रोटियाँ निकालकर बिरजू की माँ ने खाने को दिया और कहा सिमराहा के सरकारी कूप में पानी पी लेना।

चम्पिया, सुनरी, लरेना की बीवी और जंगी की पतोहू ये चारों ही गाँव में बैसकोप का गीत गाना जनती हैं।

चम्पिया ने धीमे-से चन्दा की चाँदनी गीत गाना शुरू किया। बिरजू की माँ ने भी साथ में गीत गया।

गौने की साड़ी से एक खास किस्म की गन्ध निकलती है, जंगी की पतोहू ने गौने की साड़ी पहनी है।


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