UGC Net JRF Hindi :  आकाशदीप कहानी की घटना संवाद और सारांश | Akashdeep Story Incident Dialogue And Summary

UGC Net JRF Hindi : study material आकाशदीप कहानी की घटना संवाद और सारांश | Akashdeep Story Incident Dialogue And Summary

आकाशदीप कहानी संग्रह में 19 कहानियाँ संकलित हैं-

रूप की छाया, चूड़ीवाला, हमालय का पथिक, बिसाती, देवदासी, समुड संतरण, वैरागी, अपराधी, प्रणय चिन्ह, आकाशदीप, ममता, स्वर्ग के खंडहर, भिखारिन, प्रतिध्वनि, कला, सुनहला सॉप, रमला ज्योतिमती।

अकाशदीप कहानी का परिचय (Introduction To Akashdeep Story)

यह कहानी आकाशदीप कहानी संग्रह में प्रकाशित है। कहानी के लेखक जयशंकर प्रसाद हैं, जिनकी अधिकतर कहानियों की पृष्ठभूमि ऐसिहासिक होती है।

जिसमें 19 कहानियाँ हैं, और यह 1928 में प्रकाशित हुई थी।

इस कहानी में प्रेम और कर्तव्य के बीच द्वन्द है।

समाजिक नैतिकता और व्यक्तिगत भावना का द्वन्द है।

कहानी में ऐतिहासिकता और काल्पनिकता का समावेश है।

कहानी मे समाज सेवा का संदेश है।

स्त्री गौरव का बोध है।

देश के प्रति प्रेम भाव है।

आकाशदीप कहानी का संक्षिप्त सारांश (Brief Summary Of The Story)

कहानी की शुरूआत में ही चम्पा और बुधगुप्त बन्दी बने हुए हैं। वे समुन्द्र पर एक नाव पर बन्दी बनाएँ गए हैं। बुधगुप्त जो कहानी का नायक है, वह एक जलदस्यु है। चम्पा के पिता समुन्द्र में ही जीवन व्यतीत करते हैं, उनकी नौकरी ही समुन्द्र पर लगातार चलने वाले नाव पर रहने की है। चम्पा की माता की मृत्यु हो चुकी है, इस कारण वह भी अपने पिता के साथ कई सालों से समुन्द्र में जीवन बिता रही है।

एक दिन बुधगुप्त के आक्रमण के दौरान सात दस्युओं को मारने के बाद चम्पा के पिता की भी मृत्यु हो जाती है। पिता की मृत्यू के कारण चम्पा को मणिभद्र अपने अनैतिक कार्यों का निशाना बनाना चाहता था, चम्पा के सहमत न होने पर उसने उसे बन्दी बना लिया था।

अब चम्पा और बुधगुप्त छूट गए हैं, उन्होंने मणिभद्र और नायक को हरा कर खुद नौका का स्वामी बन गया।

इसके बाद बुधगुप्त और चम्पा एक द्वीप पर पहुँचते हैं, जिसे बुधगुप्त ने चंपा द्वीप नाम दिया है। पाँच साल बीत जाने के बाद बुधगुप्त चम्पा से विवाह करना चाहता है, लेकिन चम्पा को लगता है, बुधगुप्त ने ही उसके पिता की हत्या की है, जिसे बुधगुप्त पूर्ण रूप से नकार देता है, चम्पा बुधगुप्त से प्रेम तो करती है, लेकिन उससे विवाह नहीं करती है।

एक दिन बुधगुप्त चम्पा द्वीप छोड़कर भारत के लिए चला जाता है, उन्हें जाता देख चम्पा की आँखें बहुत नम होती है, उसके बाद वह उसी द्वीप पर रहकर वहाँ के लोगों के प्रति खुद को समर्पित करत देती है, और एक दिन उसे भी काल के कठोर हाथों ने अपनी चंचलता से गिरा दिया। अर्थात उसकी मृत्यु हो गई।

आकाशदीप कहानी की घटना व संवाद (Incident and dialogue of Akashdeep story)

कहानी की शुरूआत “बन्दी” शब्द से हुई है।

मुक्त होना चाहते हो?

धीरे बोलो, इस नाव पर केवल दस नाविक और प्रहरी हैं।

पोत से संबद्ध रज्जु (रस्सी) काट सकोगे?

मुक्ति की आशा-स्नेह का असम्भावित आलिंगन। दोनों ही अन्धकार में मुक्त हो गए।

चंपा का कथन – क्या स्त्री होना कोई पाप है?

मतवाला नाविक नायक को कहा गया है।

आपत्ति-सूचक तूर्य (वाद्य यंत्र) बजने लगा।

समुद्र गरजने लगा। भीषण आँधी, पिशाचिनी के समान नाव को अपने हाथों में लेकर कंदुक-क्रूड़ा और अट्टहास करने लगी।

बुधगुप्त का कथन – पोताध्यक्ष मणिभद्र अतल जल में होगा नायाक! इस नौका का स्वामी मैं हूँ।

जलदस्यु बुधगुप्त को कहा गया है।

नायक और बुधगुप्त के बीच युद्ध होता है, जिसमें बुधगुप्त विजयी होता है।

नायक ने कहा – मैं अनुचर हूँ, वरुणदेव की शपथ। मैं विश्वासघात नहीं करूँगा।

बाली द्वीप का ज़िक्र किया गया है। जहाँ सिंहल के वणिकों का प्राधान्य है। जहाँ दो दिन में पहुँचने की सम्भावना है।

बुधगुप्त के सुगठित शरीर पर रक्त-बिन्दु विजय-तिलक कर रहे थे।

बुधगुप्त ने पूछा – हम लोग कहाँ होंगे?

नायक ने बताया – यहाँ एक जलमग्न शैलखंड है। जिस कारण नायक स्वयं पतवार पकड़कर बैट गया।

समुन्द्र मे ही बुधगुप्त और चंपा के बीच संवाद होता है, जिसमें दोनों अपने जीवन की बीती बातें एक-दूसरे को बताते हैं।

चंपा ने बताया – वणिक् मणिभद्र की पाप-वासना ने उसे बन्दी बना दिया था।

चंपा ने बताया – जाहनवी के तट पर। (अपना घर बताया) चम्पा नगरी की एक क्षत्रिय बालिका हूँ। पिता इसी मणिभद्र के यहाँ प्रहरी का काम करते थे।

पिछले आठ बरस से समुद्र ही चंपा का घर है। एक मास से नील नभ के नीचे, नील जलनिधी के ऊपर चम्पा निस्सहाय और अनाथ है।

बुधगुप्त का कथन – मैं भी ताम्रलिप्ति का एक क्षत्रिय हूँ, चम्पा। परन्तु दुर्भाग्य से जलदस्यु बनकर जीवन बिताता हूँ।

मैं अपने अदृष्ट को अनिर्दिष्ट ही रहने दूँगी।

तरुण बालिका! वह विस्मय से अपने हृदय को टटोलने लगा। उसे एक नई वस्तु का पता चला। वह थी – कोमलता।

बुधगुप्त ने कहा – जब इसका कोई नाम नहीं है, तो हम लोग इसे चम्पा द्वीप कहेंगे।

पाँच बरस बाद

जया चम्पा द्वीप की निवासी और चम्पा की सेविका है। “एक श्यामा युवती” लेखक ने जया को कहा है।

बुधगुप्त की आज्ञा से जया चम्पा को रानी कहती है।

चम्पा का कथन – क्षीरनिधिशायी अनन्त की प्रसन्नता के लिए क्य दासियों से आकाशदीप जलवाऊँ?

चम्पा बुधगुप्त को कहती है – तुमने दस्युवृत्ति छोड़ दी है, दिल वैसा ही है- अकरुण, सतृष्ण और ज्वलनशील।

चम्पा कहती है- जब मैं छोटी थी, पिता नौकरी पर समुद्र में जाते थे- मेरी माता, मिट्टी का दीपक बाँस की पिटारी में भागीरथी के तट पर बाँस के साथ ऊँचे टाँग देती थी।

चम्पा का कथन – आह नाविक! यह उसी की पुण्य-स्मृति है। मेरे पिता, वीर पिता की मृत्यु के निष्ठुर कारण, जलदस्यु! हट जाओ।

चम्पा का कथन – अच्छा होता, बुधगुप्त! जल मे बन्दी होना कठोर प्राचीरों से तो अच्छा है।

चम्पा का कथन – जब मैं अपने हृदय पर विश्वास नहीं कर सकी, उसी ने धोखा दिया, तब मैं कैसे कहूँ? मैं तुम्हें घृणा करती हूँ, फिर भी तुम्हारे लिए मर सकती हूँ। अंधेर है जलदस्यु। तुम्हें प्यार करती हूँ।

बुधगुप्त का कथन – इस जीवन की पुण्यतम घड़ी की स्मृति में एक प्रकाश-गृह बनाऊँगा, चम्पा। यहीं उस पहाड़ी पर। सम्भव है कि मेरे जीवन की धुँधली सन्ध्या उससे आलोकपूर्ण हो जाए।

बुधगुप्त का कथन – हम लोग जन्मभूमि-भारतवर्ष से कितनी दूर इन निरीह प्राणियों में इन्द्र और शची के समान पूजित हैं। स्मरण होता है, वह दार्शनिकों का देश। वह महिमा की प्रतिमा, मुझे वह स्मृति नित्य आकर्षित करती है।

बुधगुप्त का कथन – मैं ईश्वर को नहीं मानता, मैं पाप को नहीं मानता, मैं दया को नहीं समझ सकता, मै उस लोक में विश्वास नहीं करता। पर मुझे अपने हृदय के एक दुर्बल अंश पर श्रद्धा हो चली है। तुम न जाने कैसे ए, बहकी हुई तारिका के समान मेरे शून्य में उदित हो गई हो।

बुधगुप्त। मेरे लिए सब मिट्टी है, सब जल तरल है, सब पवन शीतल है। कोई विशेष आकांक्षा हृदय में अग्नि के समान प्रज्वलित नहीं। सब मिलाकर मेरे लिए एक शून्य है। प्रिय नाविक। तुम स्वदेश लौट जाओ।

एक दिन स्वर्ण-रहस्य के प्रभात में चम्पा ने अपने दीप-स्तम्भ पर से देखा-सामुद्रिक नावों की एक श्रेणी चम्पा का उपकूल छोड़कर पश्चिम-उत्तर की ओर महाजल-व्याल के समान सन्तरण कर रही है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।

चम्पा आजीवन उस दीप-स्तम्भ में आलोक जलाती रही।

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