UGC Net JRF Hindi : Study Material उसने कहा था कहानी की घटना संवाद व सारांश | Usne Kaha Tha Incident Dialogue And Summary Of The Story
कहानी का परिचय
उसने कहा था – कहानी चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी ने लिखा है। यह कहानी 1915 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
विषय – कहानी का विषय उदात्त प्रेम, बलिदान, वचन बद्धता है।
राजेंद्र यादव ने इसे हिंदी की पहली कहानी माना।
यह कहानी फ्लैश बैक में लिखी गई है।
लहनासिंह का बचपन अमृतसर में बिता है। सिपाही बनकर जर्मनी से युवावस्था मे युद्ध किया और वहीं उसकी मृत्यु हो गई। इस कहानी में 25 वर्षों के घटनाक्रम को समेटा है।
कहानी के पात्र – लहनासिंह, सूबेदारनी होरा, सुबेदार हजारासिंह, सूबेदार का बेटा बोधासिंह, वजीरासिंह, कीरतसिंह, लपटन साहब।
कहानी पाँच खण्डों में विभाजित है।
आचार्य शुक्ल ने कहा-
संस्कृत के प्रकांड प्रतिभाशाली विद्वान हिंदी के अनन्य आराधक श्री चंद्रधर शर्मा गुलेरी की अद्वितीय कहानी उसने कहा था, संवत 1972 अर्थात सन् 1915 में सरस्वती में छपी थी। पक्के यथार्थवाद के बीच, सुरुचि चरम मर्यादा भावुकता अत्यंत निपुणता के साथ संपुटित है।
प्रेम का एक स्वर्गीय स्वरूप झाँक रहा है।
निर्लज्जता के साथ पुकार या कराह नहीं रहा है।
इसकी घटनाएँ ही बोल रही हैं, पात्रों के बोलने की अपेक्षा नहीं।
उसने कहा था कहानी का सक्षिप्त सारांश (Summary Of The Story Usane Kaha Tha)
यह कहानी लहनासिंह की है, इस कहानी में फ्लैशबैक शैली अपनाई गई है। कहानी के वर्तमान में लहनासिंह फ्रांस में जर्मन से युद्ध करता है। वह एक सिपाही है, जिसके साथ मुख्य रूप से सुबेदार हजारा सिंह, बोधसिंह, वजीरासिंह हैं।
लपटन साहब के रूप में एक दिन जर्मन का एक सैनिक इनके कैम्प में घुस आता है, और आठ लोगों के अलावा सबको गलत जगह लड़ाई के लिए भेज देता है, लेकिन कुछ ही देर में लहनासिंह जर्मन सैनिक को पहचान लेता है, और वजीरासिंह से कहकर सबको वापस बुलाता है, जर्मन सैनिक और सिक्खों के बीच युद्ध होता है, जिसमें जिर्मन लोगों के साथ पन्द्रह सिख भी मारे जाते हैं।
लहनासिंह को भी चोट आती है, लेकिन वह किसी को बताता नहीं है, उसका घाव कितना बड़ा है। चिकित्सा के लिए अपनी जगह वह सूबेदार हजारा सिंह और बोधासिंह को भेज देता है, खुद वहीं रह जाता है।
मृत्यु के नज़दीक होने पर वह सूबेदार की पत्नी सूबेदारनी को याद करता है, वह उससे पंजाब में पहली बार तब मिला था, जब वह खुद बारह साल का था और सूबेदरनी आठ साल की थी।
सूबेदारनी कि सगाई होने के बाद वह उससे पच्चीस साल बाद मिलता है, जब वह लाम के लिए हजारासिंह और बोधासिंह के साथ आ रहा होता है। सूबेदारनी भिक्षा के रूप में अपने पति और बेटे की रक्षा करने के लिए कहती है, परिणाम स्वरूप लहनासिंह उनकी रक्षा करने के लिए खुद अस्पताल नहीं जाता वहीं रह जाता है। अंतत: लहनासिंह की मृत्यु हो जाती है।
कहानी की घटना व संवाद (Story Events And Dialogues)
भाग – 1
बड़े-बड़े शहरों के इक्के गाड़ी वालों की जबान के कोड़ों से जिनकी पीठ छिल गई है और कान पक गए हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि अमृतसर के बम्बूकार्टवालों की बोली का मरहम लगावें। जब बड़े-बड़े शहरों की चौड़ी सड़कों पर घोड़े की पीठ को चाबुक से धुनते हुए, इक्के वाले कभी घोड़े की नानी से अपना निकट सम्बन्ध स्थिर करते हैं, कभी राह चलते पैदलों की आँखों के न होने पर तरस खाते हैं, कभी उनके पैरों की उँगलियों के पोरों को चीथकर अपने ही को सताया हुआ बताते हैं।
क्या मजाल है कि ‘जी’ और ‘साहब’ बिना सुने किसी को हटना पड़े।
जीभ चलती है, पर मीठी छुरी की तरह महीन मार करती हुई।
बुढ़िया को हटाने के लिए बम्बूकार्टवालों कहते हैं-
हज जा, जीणे जोगिए, हट जा करमावालिए, हज जा पुताँ प्यारिए, बच जा, लम्बी उमराँवालिए, समष्टि में इनके अर्थ हैं कि तू जीने योग्य है, तू भाग्यों वाली है, पुत्रों को प्यारी है, लम्बी उमर तेरे सामने है, तू क्यों मेरे पहिए के नीचे आना चाहती है?…बच जा।…
बम्बूकार्टवालों के बीच से निकल कर एक लड़का और लड़की चौक की एक दुकान पर मिले। दोनों सिक्ख हैं।
लड़की बड़ियाँ लेने आई थी, लड़का दही लेने आया था।
एक का घर मगरे में था, एक का घर माँझे में। अतरसिंह की बैठक में लड़की के मामा हैं। गुरू बाजार की में लड़के के मामा हैं।
लड़के ने पूछा- तेरी कुड़माई (सगाई) हो गई?
लड़की ने जबाव में धत् कहा।
लगभग महीना भर दोनो एक-दूसरे से मिलते रहे, लड़का पूछता रहा कुड़माई हो गई या नहीं?
एक दिन लड़के ने जब चिढ़ाने के लिए फिर यही सवाल पूछा तो लड़की ने कहा – हाँ, हो गई। कल, देखते नहीं यह रेशम से कढ़ा हुआ सालू(ओढ़नी।
लड़की के जाने के बाद लड़का घर की तरफ गया, रास्ते में लड़के ने यह काम किए-
लड़के को मोरी में धकेल दिया।
छाबड़ी वाले की दिन भर की कमाई खराब की।
कुत्ते को पत्थर मारा
गोभी वाले के ठेले में दूध उँडेल दिया।
आती हुई वेष्णवी से टकराकर अन्धे की उपाधी पाई।
भाग – 2
लहना सिंह ने ठन्ड की तुलना लुधियान से की है। जलजला की तुलना नगरकोट से की है।
परसो रिलीफ आ जाएगी फिर सात दिन की छुट्टी है।
फिरंगी (फ्रांस की) के बाग में मखमल की-सी हरी घास है। फल और दूध की वर्षा कर देती है। दाम नहीं लेती कहती है- तुम राजा हो, मेरे मुल्क को बचाने आए हो।
बिना फेरे घोड़ा बिगड़ता है और बिना लड़े सिपाही।
वजीरासिंह पलटन का विदूषक था। बोला- मैं पांधा बन गया हूँ। करो जर्मनी के बादशाह का तर्पण।
लहनासिंह ने कहा – अपनी बाड़ी के खरबूजों में पानी दो। ऐसा खाद का पानी पंजाब भर में नहीं मिलेगा।
वजीरा सिंह ने कहा – देश क्या है, स्वर्ग है। मैं तो लड़ाई के बाद सरकार से दस घुमाव (बीघा) जमीन यहीं माँग लूँगा और फलों के बूटे लगाऊँगा।
हजारा सिंह का कथन – जैसे में जानता ही न होऊँ। रात-भर तुम अपने दोनों कम्बल उसे उढ़ाते हो और आप सिगड़ी के सहारे गुजर करते हो। आप कीचड़ में पड़े रहते हो। कहीं तुम न माँदे पड़ जाना। जाड़ा क्या है- मौत है, और निमोनिया से मरने वालों को मुरब्बे नहीं मिला करते।
वजीरासिंह ने कहा- क्या मरने-मराने की बात लगाई है? मरे जर्मन और तुरक। हाँ भाइयो, कुछ गाओ।
गीत-
दिल्ली शहर तें पिशोर नुं जांदिए,
कर लेणा लौंगां दा बपार मडिए,
कर लेणा नादेड़ा सौदा अड़िए-
ओय लाणा चटाका कदुए मुँ।
क बणाया वे मज़ेदार गोरिये,
हुण लाणा चटाका कदुए मुँ।
भाग – 3
बोधासिंह खाली बिसकुटों के तीन टिनों पर अपने दोनों कम्बल बिछा कर और लहनासिंह के दो कम्बल और एक बरानकोट ओढ़ कर सो रहा है।
बोधा बोला – कंपनी छुट रही है। रोम-रोम में तार दौड़ रहे हैं। दाँत बज रहे हैं।
लहनासिंह ने अपनी जरसी बोधसिंह को अपनी जर्सी देने के लिए झूठ बोलता है, कि मेरे लिए दूसरी गरम जरसी आई है, जो मेमें बुन-बुनकर भेज रही हैं।
लपटन साहब लेफ्टिनेंट हैं। कोई जर्मन व्यक्ति लपटन साहब के रूप में आकर सभी सिपाहियों को नुकसान पहुँचाना चाहता है।
लहनासिंह को शक हुआ कि वह लपटन साहब नहीं है। लपटन साहब पाँच वर्ष से उसकी रेजिमेंट में थे, इसलिए वह उन्हें इतना जानता था कि बातचीत करके उन्हें पहचान सके।
लहनासिंह ने पूछ – हमलोग हिन्दुस्तान कब जाएँगे?
नकली लपटन ने कहा – क्या यह देश पसन्द नहीं?
लहनासिंह – नहीं साहब, शिकार के वे मजे यहाँ कहाँ? याह है, पारसाल नकली लड़ाई के पीछे हम आप जगाधरी जिले में शिकार करने गए थे-
वहीं जब आप खोते (गधा) पर सवार थे और आपका खानसामा अब्दुल्ला रास्ते के एक मन्दिर में जल चढ़ाने को रह गया था?
नील गया का ज़िक्र किया।
आपकी एक गोली कन्धे मे लगी और पूढे (जँघा) में निकली।
नकली लपटन लहनासिंह को सिगरेट पीने को देता है।
लहनासिंह – कयामत आई और लपटन साहब की वर्दी पहन कर आई है।
असली लपटन या तो मारे गए या कैद हो गए हैं।
सोहरा साफ उर्दू बोलता है, पर किताबी उर्दू और मुझे पीने को सिगरेट दिया है।
जमादार लहनासिंह है।
लहनसिंह का कथन – आठ नहीं, दस लाख। एक-एक अकालिया सिख सवा लाख के बराबर होता है। चले जाओ।
नकली लपटन ने जेब से बेल के बराबर तीन गोले निकाले।
लहनासिंह ने एक कुन्दा नकली लपटन साहब की गर्दन पर मारा और साहब ‘आँख मीन गौट्ट’ कहते हुए चित्त हो गए।
लहनासिंह ने नकली लपटन की जेब से तीन-चार लिफ़ाफ़े और एक डायरी निकाल कर उन्हें अपनी जेब के हवाले किया।
लहनासिंह कहता गया, “चालाक तो बड़े हो पर माँझे का लहना इतने बरस लपटन साहब के साथ रहा है। उसे चकमा देने के लिए चार आँखें चाहिए। तीन महिने हुए एक तुरकी मौलवी मेरे गाँव आया था। औरतों को बच्चे होने के ताबीज़ बाँटता था और बच्चों को दवाई देता था। चौधरी के बड़ के नीचे मंजा बिछा कर हुक्का पीता रहता था और कहता था कि जर्मनीवाले बड़े पंडित हैं। वेद पढ़-पढ़ कर उसमें से विमान चलाने की विद्या जान गए हैं। गौ को नहीं मारते। हिन्दुस्तान में आ जाएँगे तो गोहत्या बन्द कर देंगे। मंडी के बनियों को बहकाता कि डाकखाने से रुपया निकाल लो। सरकार का राज्य जानेवाला है। डाक-बाबू पोल्हूराम भी डर गया था। मैंने मुल्ला जी की दाढ़ी मूड़ दी थी। और गाँव से बाहर निकाल कर कहा था कि जो मेरे गाँव में अब पैर रक्खा तो…”
नकली लपटन ने पिस्तौल चला दी लहना की जाँघ में गोली लग गई।
लहना की हैनरी मार्टिन के दो फायरों ने साहब की कपाल क्रिया कर दी। अर्थात लपटन की मृत्यु हो गई।
बोधासिंह के पूछने पर लहना ने कहा – एक हड़का हुआ कुत्ता आया था, मार दा और, औरों से सब हाल कर दिया।
सत्तर जर्मन की फौज ने लहनासिंह के कैंप पर आक्रमण कर दिया, लहनासिंह की टीम के सिर्फ आठ सिपाही यहाँ थे।
लहनासिंह ने सुबेदार को वापस बुलवा लिया था तो 70 जर्मन सुबेदार हजारासिंह और लहनासिंह के बीच फंस गए और उनकी हार हुई।
तिरसेठ जर्मन और 15 सिक्खों की मृत्यु हो गई।
लहनासिंह की पसली में एक गोली लगी। किसी को खबर नहीं हुई कि उसका दूसरा घाव इतना बड़ा घाव है।
हवा (सर्दी) ऐसी चल रही थी जैसी वाणभट्ट की भाषा में दन्तवीणोपदेशाचार्य कहलाती है।
गाड़ी के जाते लहना लेट गया। वजीरा पानी पिलादे, और मेरा कमरबन्द खोल दे। तर हो रहा है।
मृत्यु के कुछ समय पहले स्मृति बहुत साफ़ हो जाती है। जन्म-भर की घटनायें एक-एक करके सामने आती हैं। सारे दृश्यों के रंग साफ़ होते हैं। समय की धुन्ध बिल्कुल उन पर से हट जाती है।
कहानी फ्लैशबैक में-
लहनासिंह बारह वर्ष का है।
लड़की की आयु आठ वर्ष है।
रेशम के फूलोवाला सालू सुनते ही लहनासिंह को दुख हुआ। क्रोध हुआ। क्यों हुआ?
पचीस वर्ष बीत गए। अब लहनासिंह नं 77 रैफल्स में जमादार हो गया है।
सात दिन की छुट्टी लेकर ज़मीन के मुकदमें की पैरवी करने लहनासिंह अपने घर गया था।
रेजिमेंट के अफसर की चिट्ठी मिली कि फौज लाम पर जाती है, फौरन चले आओ। सुबेदार की चिट्ठी भी मिली कि मैं और बोधासिंह भी लाम पर जाते हैं। लौटते हुए हमारे घर होते जाना। साथ ही चलेंगे।
सुबेदार के यहाँ पहुँचने पर सुबेदार ने कहा – लहना सूबेदारनी तुमको जानती हैं, बुलाती हैं। जा मिल आ।
लहना ने सूबेदारनी को नहीं पहचाना- सूबेदारनी ने लहना को पहचान लिया था।
सूबेदारनी ने कहा – मैंने तेरे को आते ही पहचान लिया। एक काम कहती हूँ। मेरे तो भाग फूट गए। सरकार ने बहादुरी का खिताब दिया है, लायलपुर में ज़मीन दी है, आज नमक हलाली का मौका आया है। पर सरकार ने हम तीमियों की एक घंघरिया पल्टन क्यों न बना दी, जो मैं भी सूबेदार जी के साथ चली जाती? एक बेटा है। फौज में भर्ती हुए उसे एक ही बरस हुआ। उसके पीछे चार और हुए पर एक भी न जिया। तुम्हें याद है, एक दिन टाँगेवाले का घोड़ा दहीवाले की दुकान के पास बिगड़ गया था। तुमने उस दिन मेरे प्राण बचाये थे, आप घोड़े की लातों में चले गए थे, और मुझे उठा कर दुकान के तख्ते पर खड़ा कर दिया था। ऐसे ही इन दोनों (पति और बेटा) को बचाना। यह मेरी भिक्षा है। तुम्हारे आगे आँचल पसारती हूँ।
वर्तमान में लहना का सिर अपनी गोद में रक्खे वजीरासिंह बैठा है। जब माँगता है, तब पानी पिला देता है। आध घण्टे तक लहना चुप रहा, फिर बोला कौन। कीरतसिंह?
वजीरासिंह मे लहना को अपना भाई कीरतसिंह नज़र आता है, अंतिम समय में।
हाँ, अब ठीक है। पानी पिला दे। बस, अब के हाड़ में यह आम खूब फलेगा। चाचा-भतीजा दोनों यहीं बैठ कर आम खाना। जितना बड़ा तेरा भतीजा है, उतना ही यह आम है। जिस महीने उसका जन्म हुआ था, उसी महीने में मैंने इसे लगाया था।
कुछ दिन पीछे (बाद) लोगों ने अखबारों में पढ़ा… फ्रान्स और बेलजियम 68 वीं सूची… मैदान में घावों से मरा…नं77 सिख राइफल्स जमादार लहनासिंह।
कहानी का अंत दुखांत है।
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