UGC Net JRF Hindi : मारे गए गुलफाम उर्फ तीसरी कसम कहानी की घटना संवाद और सारांश | Incident Dialogue And Summary Of The Story Mare Gye Gulfam ou Tisree kasam
कहानी का परिचय (Introduction To The Story)
यह कहानी 1956 में प्रकाशित हुई है। इसके लेखक फणीश्वरनाथ रेणु जी हैं।
यह कहानी ठुमरी कहानी संग्रह में संकलित है। यह मानवीय संवेदना व प्यार की उत्कृष्ट कहानी है।
इस कहानी पर तीसरी कसम नाम से ही फिल्म बनी है। जिसमें राजकपूर और वहीदा रहमान ने मुख्य भूमिका निभाई है। बासु भट्टाचार्य जी ने इसे निर्देशित किया था।
कहानी के पात्र – गाड़ीवान हिरामन, हीराबाई (कंपनी की औरत), पलटदास, लालमोहर, लालमोहर का नौकर, लहसनवां, धुन्नीराम।
ठुमरी कहानी संग्रह में कुल 9 कहानियाँ संकलित हैं-
तीन बिंदिया, रसप्रिया, तिर्थोदिक, ठेस, नित्यलीला, पंचलाईट, सिर पंचमी का सगुन, तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम, लालपान की बेगम।
तीसरी कसम कहानी का संक्षिप्त सारांश (Brief Summary Of The Story Teesri Kasam)
इस कहानी का नायक बैलगाड़ी चलाने वाला हीरामन है, और नायिका नौटंकी करने वाली हीराबाई है। इस कहानी में हीरामन तीन कसम खाता है। वह अपनी गाड़ी में चोरी का माल लादकर इधर-उधर ले जाया करता है, एक दिन पकड़ा, जाता है, तब वह खद को और अपने बैलों को बचाने के लिए बैलों को साथ लेकर भाग जाता है, उसके बाद पहली कसम खाता है, कि चोरी के माल की लदनी नहीं करेगा।
उसके बाद वह बाँस की लदनी करता था, लेकिन बाँस गाड़ी से बाहर निकल आता था, जिस कारण एक दिन बघ्घी वाले से झगड़ा हो गया, उसके बाद हीरामन दूसरी कसम खाता है कि वह बाँस की लदनी नहीं करेगा।
हीरामन लगभग चालीस साल का है, उसका बाल विवाह हुआ था, लेकिन गौने से पहले ही उसकी पत्नी का देहांत हो जाता है। हीरामन की भाभी ने ज़िद पकड़ रखी है कि वह हीरामन का विवाह किसी कुवाँरी लड़की से करेगी, कुवाँरी मतलब 5 या 6 साल की लड़की से करेगी। परिणाम स्वरूप भाभी की एक ज़िद के कारण हीरामन का विवाह नहीं हो पाता है।
हीरामन हीराबाई को अपनी बैलगाड़ी में बैठाकर फारबिस गंज के मेले में ले जा रहा है। रास्ते में दोनों का मन एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होता है, लेकिन शब्दों में दोनों में से कोई भी एक बयां नहीं करता।
हीराबाई नौटंकी कंपनी में काम करती है, मथुरामोहन कंपनी में काम करने के कारण उससे छुपकर फारबिंसगंज के मेले में नौटकी करने जा रही है। इसलिए वह हीरामन की गाड़ी में बैठकर जाती है।
मेले में पहुँचकर हीराबाई नौटंकी देखने आने के लिए हीरामन को कहती है, हीरामन पूरा दिन सवारियाँ ढोने का काम करता है, रात को जाकर नौटंकी देखता है। हीराबाई जब नाचती है, तो अन्य लोगों की निगाहें उसके प्रति अच्छी नहीं होती, यह जानकर हीरामन को बहुत बुरा लगात है। वह हीराबाई को नौटकी कम्पनी में काम करने से मना करना चाहता है।
एक दिन हीराबाई ट्रेन से मथुरामोहन कंपनी में काम करने के लिए वापस चली जाती है, जाते-जाते हीरामन का मन समझकर उसे दुखी होते हुए कहती है। मन छोटा मत करो… जैसे महुआ को सौदागर ने खरीद लिया था, वैसे ही मैं भी बिक चुकी हूँ।
हीराबाई के जाने के बाद हीरामन कसम खाता है, कि अब से नौटंकी कम्पनी की औरत की लदनी नहीं करेगा। यह उसकी तीसरी और अंतिम कसम होती है।
तीसरी कसम कहानी की घटना व संवाद (Incident And Dialogue Of Teesri Kasam Story)
हिरामन गाड़ीवन की पीठ में गुदगुदी लगती है…
एक बार चार खेप सीमेंट और कपड़े की गाँठों से भरी गाड़ी, जोगबनी में विराटनगर पहुँचने के बाद हिरामन का कलेजा पोख्ता हो गया था।
फारबिसगंज का हर चोर-व्यापारी उसको पक्का गाड़ीवान मानता। उसके बैलों की बड़ाई बड़ी गद्दी के बड़े सेठ जी खुद करते, अपनी भाषा में।
बीसों गाडियाँ एक साथ कचकचाकर रुक गई। हिरामन ने पहले ही कहा था, यह बीस विषावेगा।
बहुत पुरानी अखज-अदाबत होगी दारोगा साहब और मुनीम जी में। नहीं तो उतना रूपया कबूलने पर भी पुलिस-दरोगा का मन न डोले भला।
गाड़ीवान और गाड़ियों पर पाँच-पाँच बंदूकवाले सिपाहियों का पहरा। हिरामन समझ गया, इस बार निस्तार नहीं। जेल?
बैल? न जाने कितने दिनों तक बिना चारा-पानी के सरकारी फाटक में पडे रहेंगे-भूखे प्यासेष फिर नीलाम हो जाएँगे।
उसने धीरे-से अपने बैलों के गले की रस्सियाँ खोल लीं। बैल समझ गए उन्हें क्या करना है।
एक-दो-ती। नौ-दो-ग्यारह- इस तरह हिरामन अपने बैलों के साथ वहाँ से भाग गया।
दो कसमें खाई हैं उसने। एक चोरबाजारी का माल नहीं लादेंगे। दूसरी बाँस की लदनी नहीं करेगा।
हीरामन ने सरकस कंपनी के बाघ की लदनी भी की है।
सौ रुपया भाड़ा मिला बाघ की लदनी के लिए।
हीरामन बैलो से कहता है- अपनी गाड़ी बनवाने का यही मोका है, नहीं तो फिर आधेदारी। अरे पिंजडे में बंद बाघ का क्या डर? मोरंग की तराई में दहाड़ते हुइ बाघों को देख चुके हो। फिर पीठ पर मैं तो हूँ।
जनानी सवारी जब से बैठी है, गाड़ी मह-मह महक रही है।
हीराबाई का पहला कथन- अहा मारो मत।
मथुरामोहन नौटंकी कंपनी में लैला बननेवाली हीराबाई का नाम किसीने नहीं सुना होगा भला। लेकिन हिरामन की बात निराली है। उसने सात साल तक लगातार मेलों की लदनी लादी है, कभी नौटंकी-थियेटर या बायस्कोप सिनेमा नहीं देखा।
बक्सा ढोनेवाले नौकर से गाड़ी-भाड़ा में मोल-मोलाई करने की कोशिश की थी, हीरामन ने।
हिरामन को मेले में तंबाकू बेचनेवाली बूढी की काली साड़ी की याद आई थी।
हीरामन को हीराबाई के लिए संदेह हुआ- सबकुछ रहस्यमय अजगुत-अजगुत लग रहा है। सामने चंपानगर से सिंधिया गाँव तक फैला हुआ मैदान… कहीं डाकिन पिशाचिन तो नहीं?
जब हीराबाई का चेहरा पहली बार देखा तो कहता है- यह तो परी है।
हीराबाई ने पहले हीरामन को भैया कहा, फिर नाम एक जैसा होने के कारण मीता कहूँगी, कहती है।
उसकी सवारी मुस्कुराती है…मुस्कुराहट में खुशबू है।
लेखक कहता है- कहाँ हिरामन और कहाँ हीराबाई, बहुत फर्क है।
30 कोस की दूरी हीरामन को तय करनी थी।
आसिन-कातिक के भोर में छा जानेवाले कुहासे से हिरामन को पुरानी चिढ़ है।
नदी के किनारे धन-खेतों से फूले हुए धान के पौधों की पवनिया गंध आती है। पर्व-पावन के दिन गाँव में ऐसी ही सुगंध फैली रहती है। उसकी गाड़ी में फिर चंपा का फूल खिला। उस फूल में एक परी बैठी है। जै भगवती।
हीरामन चालीस साल का है।
हीरामन भाई से बढकर भाभी की इज्जत करता है। भाभी से डरता है, गौने से पहले उसकी पत्नी मर गई, भाई कहती है, कुवारी लड़की से शादी करवाऊँगी, जिस कारण हीरामन की अब तक शादी नहीं हुई।
कुमारी का मतलब पाँच-सात साल की लड़की स।
सरधा कानून यानी शारदा कानून का ज़िक्र है।
हीराबाई का घर कानपुर जिले में पड़ता है, जिसका नाम सुनते ही हीरामन बहुत हँसा।
वाह रे दुनिया। क्या-क्या नाम होता है। कानपुर, नाकपुर।
कजरी नदी के किनारे तेगछिया के पास गाड़ी लगा देंगे।
सामने से आती गाडीवान को हीरामन ने बताया उसकी गाड़ी में बिदागी (नैहर या ससुराल जाती हुई लड़की) बैठी है।
छतापुर-पचीरा कहाँ है
तेगछिया के तीनों पेड दूर से ही दिखलाई पडते हैं।
हिरामन ने बीड़ी सुलगाने के पहले पूछा, बीडी पीएँ? आपको गंध तो नहीं लगेगी?
नामलगर डयोढी का ज़िक्र है। हीरामन ने कहा- नामलगर डयोढ़ी का जमाना क्या था और क्या से क्या हो गया।
काला आदमी, राज क्या महाराजा भी हो जाए, रहेगा काला आदमी ही। साहेब के जैसे अक्किल कहाँ से पाएगा।
सबसे पहले दोनों दंतार हाथी मरे, फिर घोड़ा, फिर पटपटांग। पटपटांग। धन-दौलत, माल-मवेसी सब साफ। देवता इंदरासन चला गया।
लेकिन देवता ने जाते-जाते कहा, इस राज में कभी एक छोड़कर दो बेटा नहीं होगा।
देवता के साथ सभी देव-देवी चले गए, सिर्फ सरोसती मैया रह गई। उसी का मंदिर है।
जवान बनिये ने पूछा – कौन नौटंकी कंपनी का खेल हो रहा है, रौता कंपनी या मथुरामोहन?
सरकस कंपनी के जोकर और बंदर नचानेवाला साहब में झगडा हो गया था। न जाने किस-किस देस-मुलुक के आदमी आते हैं।
सजनवा बैरी हो गय हमारो। सजनवा।
अरे, चिठिया हो ते सब कोई बाँचे, चिठिया हो तो हाय! करमवा, होय करमवा
तेगाछिया स्थानपर महावीर स्वामी के सुमरकर हिरामन ने गाड़ी रोकी।
बिसनपुर का ज़िक्र है।
हीरामन दुनिया-भर की निगाह से बचाकर रखना है हीराबाई को।
कजरी नदी की दुबली-पतली धारा तेगछिया से पूरब की ओर मुड गई है।
हीरामन पास के गाँव से जलपान के लिए दही-चूडा-चीनी ले आया है।
हीरामन ने गाड़ी हाँकते हुए बोला- सिरपुर बाजार के इसपिताल की डागडरनी हैं। रोगी देखने जा रही हैं। पास ही कुडमागाम।
लाली-लाली डोलिया में लाली रे दुलहनिया (गीत है)
सजन रे झूठ मति बोलो, खुदा के पास जाना है।
नहीं हाथी, नहीं घोड़ा, नहीं गाड़ी वहां पैदल ही जाना है। (गीत-4)
हीरामन का कथन – इस मुलुक के लोगों की यही आदत बुरी है। राह चलते एक सौ जिरह करेंगे। अरे भाई, तुमको जाना है, जाओ…देहाती भुच्च सब।
हीराबाई को फरबिसगंज पहुँचने की जल्दी नहीं।
महुआ घटवारिन का गती, जो हीरामन हीराबाई को सुनाता है, जिसमें गीत भी है, कथा भी है।
सुनिए। आज भी परमार नदी में महुआ घटवारिन के कई पुराने घाट हैं। इसी मुलुक की थी महुआ। थी तो घटवारिन, लेकिन सौ सतवंती में एक थी। उसका बाप दारू-ताडी पीकर दिन-रात बेहोश पडा रहता। सौतेली माँ साच्छात राकसन। बहुत बडी नजर चालक। महुआ कुमारी थी। काम कराते-कराते उसकी हड्डी निकाल दी थी राकसनी ने। महुआ को सौदागर को बेच दिया था। महुआ ने अपनी जान दे दी।
नौकर पुकार-पुकारकर कहता है- महुआ जरा थमो, तुमको पकडने नहीं आ रहा, तुम्हारा साथी हूँ। जिंदगी-भर साथ रहेंगे हम लोग। लेकिन..
इस गीत में न जाने क्या है कि सुनते ही दों थसथसा जाते हैं। लगता है, सौ मन बोझ लाद दिया किसी ने।
हीराबाई हीरामन को अपना उस्ताद कहती है, – तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है एक अच्छर सिखाने वाला भी गुरू और एक राग सिखाने वाला उस्ताद।
नननपुर के हाट पर आजकल चाय भी बिकने लगी है।
हीराबाई हीरामन को भाई, मीता, उस्ताद फिर गुरू भी पुकारती है।
फारबिसगंज तो हिरामन का घर-दुआर है।
सुबह होते ही रीता नौटंकी कंपनी के मैनेजर से बात करके भरती हो जाएगी हीराबाई।
एक नहीं, अब चार हिरामन है।
हीरामन ने लालमोहर का हाथ टीप दिया- “बेसी भचर-भचर मत बको”।
हीरामन ने कहा- भाई रे, यह हम लोगों के मुलुक की जनाना नहीं कि लटपट बोली सुनकर भी चु रह जाए। एक तो पच्छिम की औरत, तिस पर कंपनी की।
पलटदास ने कहा – जनाना जात अकेली रहेगी गाड़ी पर? कुछ भी हो, जनाना आखिर जनाना ही है। कोई जरूरत ही पड जाए।
हीरामन बोला, नहीं जी! एक रात नौटंकी देखकर जिंदगी-भर बोली-ठोली कौन सुने? देसी मुर्गी विलायती चाल।
मीनाबाजार तो पतुरिया-पट्टी को कहते हैं।…क्या बोलता है यह बूढा मियाँ? लालमोहर ने हीरामन के कान में फुसफुसाकर कहा, – तुम्हारी देह मह-मह महकती है।
लहसनवाँ लालमोहर का नौकर-गाड़ीवान है। उम्र में सबसे छोटा है।
रामलीला में सिया सुकुमारी इसी तरह थकी लेटी हुई थी। जै सियावर रामचंद्र की जै। पलटदास के मन में जै-जैकार होने गा। वह दास-वैस्नव है, कीर्तनिया है।
अपना भाड़ा और यह लो अपनी दच्छिना। पच्चीस-पच्चीस, पचास।
धुन्नीराम शुरू से ही चुप था। मारपीट शुरू होते ही वह कपडघर से निकलकर बाहर भागा।
गुलबदन मिया सुकुमारी है। माली के लड़के का दोस्त लखनलला है और सुलतान है रावन।
लहसनवाँ को सबसे अच्छा जोकर का पार्ट लगा है…
चिरैया तोंहके लेके ना जइवै नरहट के बजरिया। वह उस जोकर से दोस्ती लगाना चाहता है। नहीं लगावेगा दोस्ती, जोकर साहब?
हीराबाई ने गाना गया – अजी हाँ, मारे गए गुलफाम।
दूसरे दिन यह बात फैल गई- मथुरामोहन कंपनी स भागकर आई है हीराबाई, इसलिए इस बार मथुरामोहन कंपनी नहीं आई हैं। उसके गुंडे आए हैं। हीराबाई भी कम नहीं। बडी ख़ेलाड औरत है। तेरह-तेरह देहाती लठैत पाल रही है।
दस दिन…दिन-रात हीरामन भाड़ा ढोता, शाम होते ही हीराबाई की नौटंकी देखने चला जाता है।
पलटदास हर रात नौटंकी शुरू होने समय श्रध्दापूर्वक स्टेज को नमस्कार करता, हाथ जोड़कर।
आज वह हीराबाई से मिलकर कहेगा, नौटंकी कंपनी में रहने से बहुत बदनाम करते हैं लोग। सरकस कंपनी में क्यों नहीं काम करती? सबके सामने नाचती है, हीरामन का कलेजा दप-दप जलता रहता है उस समय।
हीराबाई रेलगाड़ी से वापस जाती है।
उस्ताद जनाना मुसाफिरखाने के फाटक के पास हीराबाई ओढ़नी से मुँह-हाथ ढक़कर खडी थी।
हीराबाई जाते-जाते कहती है- तुमसे अब भेंट नहीं हो सकेगी। मैं जा रही हूँ, गुरू जी।
हीराबाई चंचल हो गई। बोली- हीरामन, इधर आओ, अंदर। मैं फिर लौटकर जा रही हूँ मथुरामोहन कंपनी में। अपने देश की कंपनी है। वनैली मेला आओगे न?
फिर बोली- तुम्हारा जी बहुत छोटा हो गया है। क्यों मीता? महुआ घटवारिन को सौदागर ने खरीद जो लिया है गुरू जी। गला भर आया हीराबाई का।
हीरामन ने हीराबाई के जाने के बाद अपनी गाड़ी गाँव की ओर जाने वाली सड़क पर मोड़ दी। अब मेले में क्या धरा है। खोखला मेला।
हीरामन कभी रेल पर नहीं चढा है। उसके मन में फिर पुरानी लालसा झाँकी, रेलगाड़ी पर सवार होकर, गीत गाते हुए जगरनाथ-धाम जाने की लालसा।
हीरामन ने हठात अपने दोनों बैलों को झिडकी दी, दुआली से मारे हुए बोला- रेलवे लाइन की ओर उलट-उलटकर क्या देखतो हो? दोनों बैलों ने कदम खोलकर चाल पकडी। हीरामन गुनगुनाने लाग- अजी हाँ, मारे गए गुलफाम।
तीसरी कसम खाई – कंपनी की औरत की लदनी नहीं लादेगा।
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