UGC Net JRF Hindi : Study Material : चन्द्रदेव से मेरी बातें कहानी का घटना व संवाद | Incident And Dialogue From The Story Chandradev Se Meree Baten
कहानी का परिचय (Introduction To The Story)
इस कहानी में सिर्फ एक ही पात्र है। निशानाथ इस कहानी में चन्द्रदेव को कहा गया है।
कहानी का विषय – भारत के वायसराय लार्ड कर्जन और उनके द्वारा बनाई गई व्यवस्था पर व्यंग्य किया है। इसके साथ ही आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक स्थिति का चित्रण भी किया गया है।
मानवीय रंगभेद का चित्रण किया गया।
अंग्रेज न्याय प्रणाली और नियुक्ति प्रक्रिया पर व्यंग किया गया है।
शोषणवादी व्यवहार और औद्योगिक परिवर्तन की अभिव्यति की गई है।
हिन्दी, अंग्रेजी, तत्सम बहुल भाषा और चुटकीले व्यंग किए गए हैं।
यह कहानी पत्र शैली में लिखी गई है, इस कहानी में लेखिका अपने देश की बात चन्द्रदेव से कहती हैं, बातों ही बातों में वह अंग्रेजी न्यायप्रणाली और व्यवस्था पर व्यंग्य करती हैं। पूरी कहानी के दौरान वह चन्द्रदेव से भारत में आकर भारत की स्थिति को देखने का निवेदन करती हैं। वे कहती हैं, अमवस्या के दिन आपकी छुट्टी होती है, इसलिए आप उसी दिन आ जाइए, अगर पूरे भारत में घूमने का समय न हो तो कम से कम कोलकत्ता की स्थिति जरूर देख लीजिए। इस कहानी में एक ही पात्र है, जो लेखिका स्वयं हैं।
विद्वानों के विचार- (Opinion of scholars-)
भवदेव पाण्डेय के अनुसार – बंग महिला की पहली कहानी ‘चंद्रदेव से मेरी बातें’ हिंदी साहित्य की पहली कहानी थी, जिसने अपने समय की राजनीति और अर्थनीति को केंद्रीय कथ्य बनाया।
गोपालराय के अनुसार – व्यंग्य आधुनिक कहानी का बहुत कारगर औजार माना जाता है। इस कहानी (चंद्रदेव से मेरी बातें) में समकालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन के प्रशासन पर करारा व्यंग्य किया गया है।
चन्द्रदेव से मेरी बातें कहानी का घटना व संवाद (Incident And Dialogue From The Story Chandradev Se Meree Baten)
लेखिका चन्द्रेव को भगवान कहकर संबोधित करती है, खुद को दासी कहती है।
चन्द्रदेव को आकाश मंडल में चिरकाल से वास करने की बात कहती हैं।
सृष्टि के साथ ही साथ अवश्य आपकी भी सृष्टि हुई होगी।
चाँद के लिए बूढ़े कहे जा सकते हैं, कहा है।
प्रश्न किया है- क्या आपका डिपार्टमेन्ट (महकमे) में ट्रांसफ़र (बदली) होने का नियम नहीं है?
व्यंग करते हुए लेखिका चाँद से कहती हैं- यदि आप हमारी न्यायशीलता गवर्नमेण्ट के किसी विभाग में सर्विस (नौकरी) करते होते तो अब तक आपकी बहुत कुछ पदोन्नति हो गई होती। वृद्ध अवस्था में पेंशन प्राप्त कर काशी जैसे पुनीत और शान्ति-धाम में बैठकर हरी नाम स्मरण करके अपना परलोक बनाते।
आप तो अमर हैं, आपको मृत्यु कहाँ? देवता भी अपनी जाति के कैसे पक्षपाती होते हैं।
यदि मनुष्य होकर अंग्रेज अपने जातिवालों का पक्षपात करें तो आश्चर्य ही क्या है? (इस कथन से रंगभेद की चर्चा का पता चलता है)
एक ‘एप्लिकेशन’ (निवेदन पत्र) हमारे आधुनिक भारत प्रभु लार्ड कर्जन के पास भेज देवें।
आप अधम भारतवासियों के भांति कृष्णांग तो हैं ही नहीं, जो आपको अच्छी नौकरी देने में उनकी गौरांग जाति कुपित हो उठेगी।
लेखिका ने चन्द्रदेव को सुयोग्य, कार्यदक्ष, परिश्रमी, बहुदर्शी, कार्यकुशल और सरल स्वभाव महात्मा कहा है।
कहा है कि लार्ड कर्ज़न हमारे भारत के स्थायी भाग्य विधाता बनकर आवेंगे, आपको मिशन में भरती अवश्य करके भेज देवेंगे। क्योंकि कमिशन और मिशन उन्हें दोनों ही अत्यंत प्रिय हैं।
[कीबर्ड – कमिशन + मिशन + प्रिय = लार्ड कर्जन]
लेखिका चन्द्रदेव की नेत्रों की ज्योति मंद पड़ने की बात कहती हैं, क्योंकि आधुनिक भारत संतान लड़कपन से ही चश्मा धारण करने लगी है।
लेखिका निवेदन करती है कि एक बार तो भारत को देख जाइए। महीने में एक दिन अर्थात अमावस्या को अपने हॉलिडे के दिन भारत भ्रमण कर सकते हैं।
[ चन्द्रदेव – अमावस्या – भारत भ्रमण का निवेदन]
भ्रमण में आपको नूतन दृश्य देखने को मिलेंगे। देखकर बुद्धि चकरा जाएगी।
समय कम होने के कारण पूरे भारत का भ्रमण न हो सके तो केवल राजधानी कलकत्ता को देखने की बात लेखिका कहती है।
कारीगर को विश्वकर्मा के भी लड़कदादा कहा है।
चन्द्रदेव की प्रिय सहयोगिनी दामिनी, को मनुष्य के हाथों का खिलौना कहा है।
चन्द्रदेव की भगवान निशानाथ कहा है।
यहाँ सारा बोझ आपकी चपला और अग्निदेव के माथे है।
ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र चारो वर्णों का ज़िक्र किया है।
इलेक्ट्रिसिटी (बिजली) को ला पटका।
हमारे यहाँ के उच्च शिक्षा प्राप्त युवक काठ के पुतलों की भाँति मुँह ताकते रह जाते हैं।
व्योमवासिनी विद्युत देवी को पराये घर में आश्रिता नारियों की भाँति दबाव में पड़ी है, चूं तक नहीं कर सकती। उसे बेचारी कहते हुए विधाता द्वारा दासी-वृत्ति ही लिखा कहती हैं। वह स्थान स्थान पर बन्धनग्रस्त हो रही है।
कलकत्ता के ईडन गार्डन, विश्वविद्यालय के विश्वश्रेष्ठ पंडितों की विश्वव्यापिनी विद्या को देखकर वीणापाणि सरस्वती देवी भी कहने लग जाएगी, कि नि:संदेह इन विद्या दिग्गजों की विद्या चमत्कारिणी हैं। वहीं के फोर्ट विलियम के फौजी सामान को देखकर आपके देव सेनापति कार्तिकेय बाबू के भी छक्के छूट जाएंगे क्योंकि देव सेनापति महाशय देखने में खास बंगाली बाबू से जँचते हैं।
चन्द्रदेव को शशांक, शशधर, शाशालांछन आदि उपाधि-मालाओं से भूषित माना है।
सिन्धु तनय की कालिमा आजन्म-कलंक को यहाँ के विज्ञानविद पण्डितों की चेष्टा से छूट जाने की बात कही है।
कहा है- जब बम्बई में स्वर्गीय महारानी विक्टोरिया देवी की प्रतिमूर्ति से काला दाग छुड़ाने में प्रोफेसर गज्जर महाशय फलीभूत हुए हैं, तब क्या आपके मुख की कालिमा छुड़ाने में वे फलीभूत न होंगे।
[ विक्टोरिया – प्रोफेसर गज्जर महाशय]
लेखिका कहती हैं – जब आप पर आपके स्वामी पर हमारे भमण्डल की छाया पड़ती हैं, तभी ग्रहण लगता है।
निवेदन करती हैं कि यह भ्रम निकाल दो कि आपको राहु निगल जाता है, इसलिए ग्रहण लगता है।
अब भारत में न तो आपके, और न आपके स्वामी भुवनभास्कर सूर्य महाशय के ही वंशधरों का साम्राज्य है और न अब भारत की वह शस्यश्यामला स्वर्णा प्रसूतामूर्ति ही है।
कहती हैं- गौरांग महाप्रभु (अंग्रेज) भारतवर्ष का राज्य वैभव भोग रहे हैं।
आपसे कही बातें गौरांग प्रभुओं के कृपा कटाक्ष का परिणाम है।
पदवी दान का ज़िक्र किया है।
कहती हैं – पर आपके वंशधारों में जो दो चार राजा महाराजा नाम-मात्र के हैं भी, वे काठ के पुतलों की भांति हैं। जैसे उन्हें उनके रक्षक नचाते हैं, वैसे ही वे नाचते हैं। वे इतनी भी जानकारी नहीं रखते कि उनके राज्य में क्या हो रहा है- उनकी प्रजा दुखी है, या सुखी?
कहती हैं- कभी भारत आएँ तो फैमिलीडॉक्टर धन्वन्तरि और देवताओं के चीफ जस्टिस चित्रगुप्तजी को साथ लाएँ।
प्लेग का ज़िक्र किया है।
लेखिका कहती हैं, यहाँ के ‘इण्डियन पीनल कोड’ (IPC) की धाराओं को दखकर चित्रगुप्तजी महाराज अपने यहाँ की दण्डविधि (कानून) को बहुत कुछ सुधार सकते हैं।
दो-चार टाइप राइटर भी खरीद के ले जाने की बात कही है।
लेखिका चन्द्रदेव के मौनावलम्बन को स्वीकार का सूचक समझती हैं। आने की प्रार्थना कबूल करके आने के लिए कहती हैं।
राजेन्द्र बाला जी को इस बात का खेद होता है कि चन्द्रदेव उन्हें उत्तर नहीं देते हैं।