Ignou Study Material : विद्रोह कहानी का सारांश MHD-12 भारतीय कहानी विविधा | MHD-12 Indian Story Miscellaneous
कहानी का परिचय (Introduction to the Story)
वर्तमान में जैसा समाज हमें देखने को मिलता है, हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। समाज के प्रत्येक वर्ग को समानता स्वतंत्रता के बाद संविधान सभा द्वारा बनाएँ मूल अधिकार के माध्यम से मिली है। इससे पहले समाज चार वर्णों के आधार पर जीवन निर्वाह करता था। जो इस प्रकार है – 1) ब्रहम्ण 2) क्षत्रिय 3) वेश्य 4) शूद्र। शूद्र वर्ण में सबसे निचले स्तर के माने जाते हैं। वैसे जिन वर्णों का निर्धारण उनके कार्यों के अनुसार हुआ था, उन वणों का समाज में कार्य के स्थान पर जन्म से परिवर्तित कर दिया गया, अर्थात किसान का बेटा किसानी करेगा। शिक्षक का बेटा शिक्षक बनेगा। इस प्रकार अवसर की प्रदानता इस पर निर्भर करने लगी कि जन्म लेने वाला बच्चा चारों वर्णों में से किस वर्ण से संबन्धित परिवार में जन्मा है।
जो लोग शुद्र वर्ण के अन्दर आते थे, उन्हें अन्य वर्णों की सेवा का कार्य करना पड़ता था। जो दलित कहे जाते हैं, इन्हें समाजिक, मनोवैज्ञानिक दोनों प्रकार के कष्टो का सामना करना पड़ता था। जिसका चित्रण बाबूराव बागुल की कहानी विद्रोह में किया गया है। यह कहानी मूल रूप से मराठी में लिखी गई है, वर्तमान में इसका अनुवाद हिन्दी में करके एम.एच.डी 12 के पाठ्यक्रम में लगाया गया है।
विद्रोह कहानी का सारांश (Summary of the Vidroh Story)
परभु ने अपने बेटे की नौकरी के लिए दो साल पहले अर्ज़ी दी थी, लेकिन उस अर्ज़ी का रिप्लाय दो साल बाद आया है। वर्तमान में परभु (दलित) बहुत वृद्ध हो चुका है। उसकी पत्नी भानी और वह खुद भी सारी ज़िन्दगी भंगी का काम करते रहे हैं। जन्म से दलित हैं, परिणाम स्वरूप कार्य भी मैला ढोने का मिला है। इसी कारण समाज मे अछूत अर्थात अस्पृश्यत माने जाते हैं।
परभु द्वारा भेजी गई अर्ज़ी का जबाव भी मेहतर की नौकरी अर्थात शौचालयों को साफ करने और मैला ढोने की मिली है। परभु का बेटा जयचंद मैट्रिक पास है, वह आगे और पढ़ाई करना चाहता है, लेकिन उसके माता-पिता और पत्नी शांति चाहते हैं कि वह भंगी की नौकरी को स्वीकार कर ले। जय की पत्नी लगभग सोलह-सत्रह साल की है, जय और शांति की शादी बचपन में ही हो गई थी, लेकिन जयचंद अपनी पढ़ाई में ध्यान लगाना चाहता था, इसलिए अपनी पत्नी की ओर ध्यान नहीं देता था।
सबके सामने जय अपनी माँ को माँ कहने में लज्जित होता है क्योंकि वह मैला साफ करने का काम करती हैं। जय द्वारा किए जा रहे इस व्यवहार से भानी पर क्या बीतती है, परभु ने जय को बताने की कोशिश की।
जयचंद चाहता है कि वह पढ-लिखकर कलर्क बन जाए, और अपने माता-पिता को दलित होने के कलंक से अज़ादी दिला दे, लेकिन घर की परिस्थितियों ने उसे ऐसा करने नहीं दिया। पिता द्वारा बताएँ जा रहे माँ की मनोवैतज्ञानिक स्थिति के बारे में जानने के बाद वह बहुत पछताता है और माँ के घर आते ही उसके कदमों में गिर जाता है।
परभु से ठेकेदार ने कहा था, जय पढा-लिखा है, इसलिए उससे वह कुछ और काम करवाएँगे। जय अपनी माँ के साथ ठेकेदार के पास जाता है, और इस नौकरी को स्वीकार कर लेता है। ठेकेदार पहले ही दिन शौचालय साफ करने और मैला ढोने का काम उसे दे देते हैं। जिससे जय की माँ भानी को बहुत दुख होता है, वह कहती भी है कि यह पढ़ा लिखा है लेकिन इस बात से साहब या ठेकेदार को कोई फर्क नहीं पड़ता है।
भानी अपने बेटे से यह काम करने को मना कर देती है, उसे घर भेज देना चाहती है, लेकिन जय कहता है, मैं सफाई करूँगा। 32 शौचालयों की सफाई करनी थी, और सौचालयों के नीचे रख्खे डब्बे खाली करने थे। मैला इक्ट्ठा करने वाला गाड़ीवान आ जाता है, और वह जय को बार-बार अवाज़ लगाता है। जय ने पहले यह काम कभी नहीं किया है, शौचालयों की दुर्गंध और वहाँ की बीभत्स स्थिति को देखने को बाद वह परेशान हो जाता है और वह गंदगी उसके ऊपर गिर जाती है।
जय की माँ को यह स्थिति देखकर चक्कर आने लगता है। गाड़ीवान आकर उसे सभालता है, और जय को घृणा की दृष्टि से देखते हुए कहता है कि वह माँ से दूर रहे नहीं तो माँ को भी अपनी तरहा मैले से गंदा कर देगा।
जय को अचानक बहुत गुस्सा आ जाता है, और वह गाड़ीवान (जो मैला गाड़ी में इक्ट्ठा करके ले जाने आया था) को अपनी तरफ खीचने लगता है। गाड़ीवान चिल्लात है कि बचाओ, वहाँ मौजूद बाकी कर्मचारी आते हैं, लेकिन वह दलितों को छूते ही खुद भी अछूत हो जाएँगे, इसलिए वह बीच-बचाव नहीं करते हैं। भानी बार-बार सबसे झगड़ा रूकवाने के लिए कहती है, लेकिन कोई अपवित्र हो जाने के डर से पास नहीं आता है। जब गाड़ीवान निर्जीव वस्तु की तरह गिर जाता है, तो जय अपनी माँ भानी के गले लग कर रोने लगता है। भानी को यह सोचकर सदमा लग जाता है कि उसका बेटा पागल हो गया है। लेखक का कहना है लोगों का मन जय के विद्रोह को नहीं समझ पा रहा था, क्योंकि “मन तो मनु ने पहले ही मार दिए” यहीं पर कहानी समाप्त हो जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion)
स्वतंत्रता के बाद दलितों को समानता प्रदान करने के लिए अन्य वर्गों की तरह ही समान अवसर प्रदान करने का प्रयास किया गया है। उन्हें जाति के आधार पर नौकरी देने के स्थान पर अन्य क्षेत्र के व्यवसाय व नौकरी में शामिल करने के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है, लेकिन सरकार द्वारा किए गये प्रयासों के बाद भी पूरे भारत में जाति आधारित नकारात्मक भेद-भाव समाप्त हुआ है या नहीं यह आप अपने स्तर पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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