IGNOU MHD-12 भारतीय कहानी | Bhartiya Kahaani दीदी | Didi
IGNOU MHD-12 कहानी दीदी के लेखक एम.टी.नायर का परिचय (Introduction of the author M. T. Nair of the story Didi)
एम.टी.नायर जी का जन्म 9 अगस्त 1933 को केरल के पोन्नानी तालुक के कूटल्लूर नामक गाँव में हुआ था। एम.टी.नायर का लक्ष्य अच्छे से पढ़ाई करना व अव्वल आना था। 1942 में कुमरनल्लूर स्कूल से एम.टीय नायर ने दसवां दर्जा पास कर लिया था। सन् 1953 में एम.टी नायर ने बी.एस.सी. पास कर ली थी। कॉलेज में उन्हें अध्यापक की नौकरी भी मल गई। सन् 1956 में मलयालम के प्रतिष्ठित साप्ताहिक मातृभूमि में सह संपादक के पद पर नियुक्त हुए, 1968 में संपादक बन गए। 1981 में सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य सृजन में पूर्ण रूप से व्यस्त हो गए। एम.टी.नायर की प्रिय विधा कहानी है। उनके 16 कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। विश्व कहानी प्रतियोगित में उनकी कहानी पालतु जानवर पुरस्कृत होने के बाद वह कहानीकार के रूप में प्रसिद्ध हो गए। एम.टी.नायर जी का कथा साहित्य मध्यवर्ग की निराशा, व्यर्थता व प्रतिरोध पर केन्द्रित है।
उनका पहला उपन्यास आधी रात और दिन का प्रकाश 1953 में उनके द्वारा लिखा गया था। सन् 1963 में उनका फिल्म क्षेत्र में प्रवेश हुआ। अधिकतर पठकथा वह अपनी रचना पर ही तैयार करते थे। पठकथा लेखन के लिए वह चार बार राषट्रीय स्थर पर पुरस्कृत हो चुके हैं।
कहानी का परिचय (Introduction to the story)
मलयालम कहानीकार एम.टी वासुदेवन नायर जी ने ‘दीदी’ कहानी लिखी है। यह कहानी मलयालम में ‘अंधेरे की आत्मा’ के नाम से लिखी गई थी वर्तमान में इसका अनुवाद करके दीदी नाम से एम.एच.डी 12 के पाठ्यक्रम में यह कहानी लगाया गया है।
इस कहानी को पढ़ने के बाद पाठक के मन में सर्वप्रथम प्रश्न उठता है कि अनेतिक संबन्ध के परिणाम स्वरूप यादि किसी संतान की उत्पत्ति होती है तो उसका दोषी कौन है? जो व्यक्ति इसका दोषी है क्या उसको यह सजा मिलती है? महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि क्या उसी को यह सजा मिलती है जिसकी गलती है या किसी तीसरे को भी बिना गुनाह किए सजा भुगतनी पड़ती है?
दीदी कहानी का सारांश (Summary of the story Didi)
यह कहानी पुर्ण रूप से एक पांच-छः साल के बच्चे के माध्यम से प्रस्तुत की गई है। बच्चे के विचारों के माध्यम से सारी कहानी प्रस्तुत की गई है इसलिए भाषा सरल है। अधिकतर पात्रों से अप्पू का संबन्ध है।
अप्पू अपनी माँ मालू को दीदी पुकारता है। उसे मालू को दीदी पुकारने की आदत डाली गई है क्योंकि अप्पू का जन्म मालू के अनैतिक संबन्ध के परिणाम स्वरूप हुआ है। मालू का भाई मालू के इस कार्य से नाराज़ होकर घर छोड़कर चला गया है। मालू की इस गलती का दोष वह अपनी माँ को देता है। वह अपनी माँ को कहता है कि – “सब सीख तुम्हें बेटी को पहले ही देनी चाहिए थी” पाँच साल हो जाने के बाद भी मालू का भाई दरवाज़े पर आकर लौट जाता है घर के अन्दर नहीं आता है।
जब भी मालू की माँ मालू को डांटती है तो अप्पू को अपनी नानी पर गुस्सा आता है। अप्पू नानी के गुस्से की वजह ना समझ कर यह सोचता है कि दीदी नानी की डांट फटकार क्यों सहती है?
नानी के मन में अप्पू के लिए ज़रा भी ममता नहीं दिखाई देती वह हमेशा उसे कोसती ही रहती है। मालू के यह कहने पर कि कोस कोस कर बच्चे को मार डालेगी क्या? अप्पू की नानी मालू को अप्पू के जन्म से जुड़ी बातें याद दिला देती है, साथ और अधिक गुस्सा करती है।
अप्पू अपनी नानी को बिल्कुल पसंद नहीं करता है। जब एक बाप अप्पू से अप्पू के दोस्त ने अप्पू से यह कहा कि दीदी तेरी माँ है तो अप्पू को हँसी आती है। दोनों दोस्तों में झगड़ा भी हो जाता है। अपनी नानी को देखकर अप्पू को यह लगने लगा है कि माँ बुरी होती है। लेकिन दीदी बहुत अच्छी है इसलिए दीदी माँ नहीं हो सकती है।
दीदी हर रात अप्पू को कहानी सुनाती है लेकिन एक रात दीदी ने अप्पू को कहानी नहीं सुनाई और चुपचुपा है। अप्पू को लगता है कि दीदी की तबीयत खराब है। वह अप्पू को नहलाती, खिलाती है लेकिन चुप रहती है। मालू के चुप रहने का कारण अप्पू समझ नहीं पाता है जबकि मालू इसलिए चुप है क्योंकि नानी दीदी यानी मालू की शादी की योजना बना रही है। शंकरन नायर जो मालू के लिए रिश्ता लाया है वह नानी को समझाता है कि बच्चे के बारे में उन्हें पता नहीं चलना चाहिए। नानी भी मालू को कहती है कि उसके बारे में सोचकर मन मारने की जरूरत नहीं है। अप्पू का मासूम मन यह सब नहीं समझ पाता है।
एक दिन स्कूल से लौटने के पर अप्पू को पता चलता है कि घर में मेहमान आए थे। मीठा पकवान भी बना है। पहाड़ी प्रदेश वयनाडु स दीदी को देखने कोई आया था। शंकरन नायर के माध्यम से पता चलता है कि सरकार से चार एकड़ ज़मीन मिली है परिणाम स्वरूप मेहनत करने से गुज़ारा आराम से हो जाएगा। अप्पू इन सब बातों का स्पष्ट मतलब नहीं समझ पाता है।
एक दिन मालू अप्पू को सुबह उसे तैयार करती है और उसे लगातार कुछ ना कुछ सलाहें देती है कि कैसे रहना है। अंत में कहती है कि “बेटे एक बार मुझे माँ कहकर पुकार” अप्पू को यह सब अच्छा नहीं लगता है। अप्पू प्रश्न करता है कि दीदी माँ कैसे हो सकती है? उसके बाद वह स्कूल चला जाता है।
उस दिन शाम को अप्पू जब घर आता है तो दीदी पुकारता है लेकिन नानी जवाब देती है। नानी बताती है कि दीदी नहीं है। अप्पू को अत्यधिक बुरा लगता है क दीदी बिना बताए, बिना अप्पू को लिए कैसे चली गई है। अप्पू का मासूम मन सोचता है कि यदि दीदी रबड़ की गेंद लाकर देगी तो वह उसे फेंक देगा। यह भी सोचता है कि अगर गेंद व मिठाई दोनों लाई तब क्या करना चाहिए। अप्पू को फिर भी उम्मीद है कि दीद लौट आयेगी। वह नहीं जानता की मालू शादी के लिए चली गई है।
दीदी कहानी की समीक्षा (Review of story Didi)
दीदी कहानी के माध्यम से पता चलता है कि यदि अनैतिक संबन्ध के परिणाम स्वरूप संतान का जन्म होता है तो पुरूष को इसका दोषी कोई नहीं समझता है। यहाँ तक कि उसका कोई जिक्र तक नहीं करता है। समाज के द्वारा दी गई सारी सजा व दोष मात्र स्त्री के लिए ही होते हैं।
एक मासूम बच्चा जिसका इसमें ज़रा भी दोष नहीं है अप्पू के माध्यम से पता चलता है कि वह किस तरह माता-पिता दोनों से दूर हो जाता है। अनाथ ना होते हुए भी अनाथो जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता है। अप्पू के जन्म में उसका कोई दोष नहीं लेकिन जहाँ उसे अपनी नानी का लाड़-दुलार मिलना चाहिए था वहीं अब उसे नानी का गुस्सा झेलना पड़ता है।
नानी अप्पू व मालू दोनों को कोसती रहती है लेकिन अंत में जब मालू की शादी हो जाती है और अप्पू उसके पास अकेला रह जाता है तो वह अप्पू को कोसती नहीं है बल्कि खुद ही उसे खाना खिलाती है इससे पता चलता है कि वह दिल की बुरी नहीं है। अप्पू के जन्म के कारण वह खुद अपने बेटे से दूर हो गई है और साथ ही बेटी का भविष्य अंधकार में दिखाई देता है जिस का गुस्सा वह ना चाहते हुए भी मासूम अप्पू पर उतार देती है।
इस कहानी के माध्यम से समाज के द्वारा भेदभाव स्पष्ट दिखाई देता है। यदि स्त्री ने गलत कर दिया तो उसको सजा दी जाती है। यदि पुरूष ने गलत किया तो उसका जिक्र भी कोई नहीं करता है। परिणाम स्वरूप कहा जा सकता है कि अधुनिक समाज होने के बाद भी समाज द्वारा स्त्री व पुरूष को देखने का पैमाना अलग-अलग है।
कहानी दीदी का निष्कर्ष (Conclusion)
इस कहानी में अप्पू के पिता का जिक्र नहीं किया गया है लेकिन आज अप्पू की जो स्थिति है उसके लिए वह भी मालू के बराबर का जिम्मेदार या अपराधी है। इस कहानी से समाज के भेदभाव से पूर्ण दृष्टि का पता चलता है। साथ ही माहिलाओं को सीख भी मिलती है क वह किसी भी पुरूष पर अंधविश्वास ना करें। यदि मालू जैसा विश्वास कोई स्त्री करती है तो मुमकिन है इसका भुगतान अप्पू जैसा मासूम उम्र भर करेगा।
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