बस की यात्रा Study Material, NCRT Vasant Class – 8
हरिशंकर परसाई का परिचय | Introduction to Harishankar Parsai
हरिशंकर परसाई जी का जन्म 22 अगस्त 1924 को हुआ व उनकी मृत्यु 10 अगस्त 1995 में हुई थी। हरिशंकर परसाई जी हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। वे हिंदी के पहले ऐसे रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया। वर्तमान में उनका लिखा यात्रा वृतांत “बस की यात्रा” वसंत कक्षा – 8 के पाठ्यक्रम में लगाया गया है।
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बस की यात्रा : यात्रा वृतांत का परिचय | Bas Kee Yaatra Introduction to the Travelogue
कभी-कभी यह देखा जाता है कि इंसान अपना थोड़ा सा धन बचाने के लिए लोगों की जान से खिलवाड़ करता है। ऐसा भी सुना या कहा जाता है कि फला व्यक्ति या कंपनी ने धन की बचत करने के लिए किसी भवन का निर्माण करते समय ऐसे मटेरियल का इस्तेमाल किया है, जिससे भवन मजबूत नहीं बन सका और समय से पूर्व ही इमारत गिर गई या गिरने की संभावना है। यह भी मुमकिन है कि सस्ते के चक्कर में व्यक्ति अपने लिए गलत दवाईया, या खराब राशन – सब्ज़ी खरीद लाता है परिणाम स्वरूप वह बीमार हो जाता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति या तो बीमार हो जाता है, या फिर पहले से बीमार है तो उसकी बीमारी किसी लाइलाज बीमारी का स्वरूप ले लेती है।
परिणाम स्वरूप स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि इंसान धन बचाने के लिए कभी-कभी अपनी या जनता की ज़िन्दगी खतरे में डाल देता है। हम बात कर रहें हैं हरिशंकर परसाई द्वारा लिखे यात्रा वृतांत की, जिसका नाम है – बस की यात्रा। यह यात्रा वृतांत व्यंग्यात्मक शैली में लिखा गया है।
बस की यात्रा : यात्रा वृतांत का सारांश (Bas Kee Yaatra Summary of the Travelogue)
लेखक और उनके चार साथियों को जबलपुर जाने वाली ट्रेन पकड़नी थी, परिणाम स्वरूप उन्होंने बस से सतना जाने का प्रोग्राम बनाया। उन्हें सुबह पहुँचना था, इसलिए उन्होंने रात की बस से सफर करना तय कर लिया। कुछ लोगों ने लेखक और उनके साथियों को उस बस से सफर न करने की सलाह दी कहा – बस डाकिन है।
बस की हालत अच्छी नहीं थी, देखने से लगता था कि वह बहुत साल पुरानी है, अर्थात बस वृद्ध हो चुकी है। जिसे अब रिटायर्ड कर देना चाहिए था। बस जिस कंपनी की थी उस कंपनी का एक हिस्सेदार भी इसी बस में यात्रा कर रहा था। कंपनी के हिस्सेदार का कहना था कि बस एकदन ठीक है। डरते-डरते लेखक अपने साथियों के साथ इस बस में बैठ गए। जो लोग लेखक को बस स्टैण्ड तक छोड़ने आए थे, वे लेखक को इस प्रकार देख रहे थे, मानो लेखक दुनिया से जा रहे हों।
बस के चालू होते ही सारी बस हिलने लगी। खिड़कियों के अधिकतर काँच टूट चुके थे, जो काँच बच गए थे, वह आधे टूटे थे परिणाम स्वरूप उनसे बचना पड़ रहा था। लेखक को गाँधीजी के असहयोग अंदोलन की याद आ गई। उन्हें लग रहा था कि बस के सारे पार्टस् बस चलने में असहयोग कर रहे हैं। बस और बस की सीटें बहुत हिल रही थीं। कुछ ही देर में बस की पेट्रोल की टंकी में छेंद हो गया है, परिणाम स्वरूप ड्राइवर ने पेट्रोल निकालकर बल्टी में रख लिया और अपने बगल में रखकर नली (पाइप) से इंजन में पेट्रोल भेजने लगा। बस धीरे-धीरे चलने लगी, अब लेखक का बस पर से भरोसा उठ चुका था। लेखक यह सोचने लगे कि अब बस का स्टेयरिंग टूट सकता है, सामने जब कोई पेड़ आता तो लगता बस पेड़ से टकरा जायेगी, कोई झील आती तो लगता अब बस झील में गिर जायेगी। अर्थात लेखक को अब अत्यधिक भय लगने लगा।
अचानक बस फिर रूक गई, कंपनी का मालिक अभी तक यह कह रहा था कि बस तो फस्ट क्लास है, अचानक बस रूकना इत्तफ़ाक की बात है। इस बार बस का टायर खराब हो गया था परिणाम स्वरूप दूसरा घिसा टायर लगाकर बस को फिर से चलाया गया। लेखक के मन में कंपनी के मालिक के लिए श्रद्धाभाव उत्पन्न हो गया, क्योंकि वह बस की हालत भी जानता था और परिणाम क्या हो सकता है, यह भी जानता था। उसके बाद भी उसने सही टायर बदलने के स्थान पर अपनी ज़िन्दगी से खेलना ज़रूरी समझा। लेखक को लगा ऐसे व्यक्ति को तो किसी क्रांतिकारी आंदोलन में होना चाहिए था।
इतना सब होने के बाद लेखक कही भी, कभी भी पहुँचने की उम्मीद छोड़ चुका था। उन्हें लगा ज़िन्दगी इसी बस में खत्म हो जायेगी, परिणाम स्वरूप वह हँसी मज़ाक करने लगे, और बस में अपने घर की तरह बैठ गए। अब उनके मन से तनाव कम होता गया।
बस की यात्रा : यात्रा वृतांत की समीक्षा (Bas Kee Yaatra : Travelogue Review)
लेखक ने अपने इस यात्रा वृतांत के माध्यम से प्रत्येक उस कंपनी, व्यक्ति या सरकार पर व्यंग्य किया है, जो थोड़ा सा धन बचाने के लिए अपनी व दूसरो की ज़िन्दगी खतरे में डाल देते हैं।
लेखक द्वारा लिखा यात्रा वृतांत हम पढ़ रहे हैं, परिणाम स्वरूप यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक उस बस के हादसे का शिकार नहीं हुए। लेकिन इस प्रकार की बस या कोई भी वाहन हर दिन सुरक्षित यात्रा पूर्ण कर सकता था या भविष्य में करेगा इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती है।