Net JRF Hindi Unit 7 : चन्द्रदेव से मेरी बातें कहानी का सारांश
चन्द्रदेव से मेरी बातें कहानी का सारांश
बंग महिला का परिचय
बंग महिला का जन्म 1882 वाराणसी में हुआ। इनका निधन 24 फरवरी 1949 मिर्जापुर (उत्तरप्रदेश) में हुई। उनके पिता का नाम रामप्रसन्न घोष था और माता नीरदवासिनी घोष था। उनके पति का नाम चन्द्रदेव है।
इन्हें बचपन में रानी और चारूबाला के नाम से पुकारा जाता था। इन्होंने प्रारंभिक शिक्षा माताजी के संरक्षण में प्राप्त की थी। 1904 से 1917 तक इन्होने लेखन कार्य किया था। इनका असली नाम राजेन्द्र बाला घोष था, यह हिन्दी नवजागरण की पहली छापामार लेखिका के नाम से विख्यात हैं। यह बंग महिला छद्मनाम (दिखावटी नाम) से लिखती थीं। स्त्री शिक्षा हेतु इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
इनकी रचनाएँ- (मूलत: कहानी लेखन)
1 चन्द्रदेव से मेरी बातें 1904 में सरस्वती पत्रिका, में निबन्ध के रूप में प्रकाशित हुई, लेकिन बाद में इसे पत्र शैली में लिखी कहानी माना गया।
2 कुंभ में छोटी बहू
3 दुलाईवाली 1907 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
4 भाई-बहन 1908 में बाल प्रभाकर पत्रिका में प्रकाशित हुई है।
5 दलिया 1909 में प्रकाशित।
6 हृदय परीक्षा 1915 में, सरस्वती पत्रिका में ही प्रकाशित हुई।
बंग महिला की एक ही पुस्तक है, जिसका नाम कुसुम संग्रह है, यह काशी नगरी प्रचारिणी सभा में 1911 में प्रकाशित हुई थी। अनूदित (अनुवाद) कहानियों व विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए लेखों अलेखों का प्रकाशन कुसुम संग्रह में किया गया है।
चंद्रदेव से मेरी बातें कहानी का परिचय
पत्र शैली में रचित व्यंग्यात्मक कहानी है। 1904 में सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। प्रारंभ में इसे निबन्ध के रूप में स्वीकृति दी गई किंतु कालांतर में इसे एक कहानी के रूप में स्वीकार किया गया।
अंग्रेजी शासनकाल के परिवेश शोषणवादी शासन व्यवस्था, औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप आए परिवर्तनों और उनके दुष्परिणामों की यथार्थपरक अभिव्यक्ति है।
इसमें चुटीले व्यंग्य की प्रधानता है। इस कहानी में केवल दो पात्र हैं, लेखिका (स्वयं) एवं चंद्रदेव, जिन्हे यह पत्र संबोधित किया गया है।
कहानी की मूल संवेदना।
1 मूल उद्देश्य अंग्रेजी शासन नीतियों के फलस्वरूप हुई भारत की दुर्दशा का यर्थाथपरक चित्रण करना है।
2 बहुआयामी कथ्य हैं, जो व्यंग्यात्मक शैली में हैं।
3 सरकारी नौकरियों के नाम पर सुख भोगने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है।
4 अंग्रेजों की जातिपक्षधरता पर कटाक्ष किया गया है।
5 शासन के विभिन्न दफ्तरों में बदली होने की परंपरा पर कटाक्ष किया गया है।
6 लॉर्ड कर्जन की शोषणवादी नीतियों पर प्रहार।
7 अंग्रेजों की रंगभेद की नीति।
8 अंग्रेजी शासनकाल में भारत की संस्कृति, सभ्यता, धर्म आदर्श आदि के स्वरूप में आए परिवर्तन पर चोट।
9 कुपोषण के शिकार बच्चों की स्थिति की ओर संकेत।
10 भारत की विशेषकर बंगाल की दुर्दशा की ओर संकेत।
11 विद्युतीकरण, यंत्रीकरण के फलस्वरूप उत्पन्न बेरोजगारी।
12 गंगा पर बन रहे पुलों और बाँधों के फलस्वरूप धार्मिक भावनाओं पर हुए आघात की ओर संकेत।
13 युद्ध सामग्री के विकास की ओर संकेत।
14 वैज्ञानिकता के फलस्वरूप बौद्धिकता के विकास तथा उससे उतपन्न परिवर्तनों की चर्चा।
15 भारतभूमि के दोहन से विकृत भारतभूमि का स्वरूप-चित्रण।
16 भारतीय शासकों की चाटुकारिता तथा अंग्रेजों के हाथ की कठपुतली होने का चित्रण।
17 चिकित्सकीय विकास और प्लेग जैसी महामारियों का फैलना।
18 अंग्रेजों की भारत में अपने शासन को मजबूत करने की नीति।
19 मशीनीकरण और द्रुतगति से कार्य संपन्न होना।
कहानी के विषय में विद्वानों ने कहा –
भवदेव पाण्डेय ने कहा –
बंग महिला की पहली कहानी चन्द्रदेव से मेरी बातें हिन्दी साहित्य की पहली कहानी थी, जिसने अपने समय की राजनीति और अर्थनीति को केन्द्रीय कथ्य बनाया। भवदेव पाण्डेय इसे हिन्दी की पहली राजनीतिक कहानी मानते हुए लिखते हैं – भारत की बदहाल आर्थिक दशा और देश में फैली बेरोजगारी के चित्रण साथ-साथ समाज में नारियों की स्थिति, जातिगत पक्षधरता और हर क्षेत्र में वृद्ध पीढ़ी के अनुचित दबदबे का भी रेखांकन किया।
गोपालराय लेखतें हैं-
व्यंग्य आधुनिक कहानी का बहुत कारगर औजार माना जाता है। इस कहानी में (चंद्रदेव से मेरी बातें) समकालीन वायसराय कर्जन के प्रशासन पर करारा व्यंग्य किया गया है।
कहानी के मुख्य संवाद या वाक्य
1 भागवान चंद्रदेव क्षमा कीजिए, आप तो अमर हैं, आपको मृत्यू कहाँ? तब परलोक बनाना कैसा? ओ हो। देवता भी अपनी जाति के कैसे पक्षपाती बनाना कैसा? देखो न चंद्रदेव को अमृत देकर उन्होंने अमर कर दिया। तब यदि मनुष्य होकर हमारे अंग्रेज़ अपने जातिवालों का पक्षपात करें तो आश्चर्य ही क्या है? अच्छा, यदि आपको अंग्रेज़ जाति की सेवा करना स्वीकार हो तो, एक एप्लिकेशन (निवेदन पत्र) हमारे आधुनिक भारत प्रभु लार्ड कर्जन के पास भेज देवें।
आशा है कि आपको आदरपूर्वक अवश्य आह्वान करेंगे। क्योंकि आप अधम भारतवासियों के भाँति कृष्णांग तो हैं नहीं, जो आपको अच्छी नौकरी देने में उनकी गौरांग जाति कुपित हो उठेगी।
मैं विश्वास करती हूँ, कि जब लार्ड कर्जन हमारे भारत के स्थायी भाग्यविधाता बन के आवेंगे, तब आपको किसी कमीशन का मेम्बर नहीं तो किसी मिशन में भरती करके वे अवश्य ही भेजे देवेंगे क्योंकि लार्ड कर्जन को कमिशन और मिशन, दोनों ही अत्यंत प्रिय हैं।
मैं अनुमान करती हूँ कि आपके नेत्रों की ज्योति भी कुछ अवश्य ही मंद पड़ गई होगी। क्योंकि आधुनिक भारत संतान लड़कपन से ही चश्मा धारण करने लगी है, इस कारण आप हमारे दीन, हीन, क्षीणप्रभ भारत को उतनी दूर से भलीभाँति न देख सकते होंगे।
जिस व्योमवासिनी विद्युत देवी को स्पर्श तक करने का किसी व्यक्ति को साहस नहीं हो सकता, वही आज पराए घर में आश्रिता नारियों की भाँति ऐसे दबाव में पड़ी है, कि वह चूं तक नहीं कर सकती। क्या करें? बेचारी के भाग्य में विधाता ने दास-वृत्ति ही लिखी थी।
(स्त्रियो की दशा का वर्णन किया है)
अब भारत में न तो आपके, और न आपके स्वामी भुवनभास्कर सूर्य महाशय के ही वंशधरों का साम्राज्य है और न अब भारत की वह शस्यश्यामला स्वर्ण प्रसूतामूर्ति ही है। अब तो आप लोगों के अज्ञात, एक अन्य द्वीप-वासी परम शक्तिमान गौरांग महाप्रभु इस सुविशाला भारत-वर्ष का राज्य वैभव भोग रहे हैं। अब तक मैंने जिन बातों का वर्णन आपसे स्थूल रूप में किया वह सब इन्हीं विद्या विशारद गौरांग प्रभुओं के कृपा कटाक्ष का परिणाम है। यों तो यहाँ प्रति वर्ष पदवी दान के समय कितने ही राज्य विहीन राजाओं की सृष्टि करती है, पर आपके वंशधारों में जो दो चार राजा महाराजा नाम-मात्र के हैं भी, वे काठ के पुतलों की भाँति हैं। जैसे उन्हें उनके रक्षक नचाते हैं, वैसे ही वे नाचते हैं। वे इतनी भी जानकारी नहीं रखते कि उनके राज्य में क्या हो रहा है- उनकी प्रजा दुखी है, या सुखी?
(देशी राजाओं की रीढ़विहीनता का वर्णन)
हरिपदोभ्दवा त्रैलोक्यपावनी सुरसरी के भी खोटे दिन आए हैं, वह भी अब स्थान-स्थान में बंधन ग्रस्त हो रही है। उसके वक्षस्थल पर जहाँ-तहाँ मोटे वृहदाकार खंभ गाड़ दिए गए हैं।
(गंगा पर बन रहे पुलों और बाँधों के मार्फत आधुनिक विकास की आलोचना)
कलकत्ता आदि को देखकर आपके देवराज सुरेंद्र भी कहेंगे कि हमारी अमरावती तो इसके आगे निरी फीकी सी जान पड़ती है। वहाँ का ईडन गार्डन तो पारिजात परिशोभित नंदन कानन को भी मात दे रहा है।
(प्रकृति से छेड़छाड़)
भम्रण करने को आएँ तो, अपने फैमिली डॉक्टर धन्वन्तरि महाशय को और देवताओं के चीफ जस्टिस चित्रगुप्तजी को साथ अवश्य लेते आएँ। आशा है कि धन्वन्तरि संबंधी बहुत कुछ शिक्षा लाभ कर सकेंगे। यहाँ के इंडियन पीनल कोड की धाराओं को देख कर चित्रगुप्त जी महाराज अपने यहाँ की दंडविधि (कानून) को बहुत कुछ सुधार सकते हैं।
(अंग्रेज़ी डॉक्टरों और ब्रिटिश न्याय व्यवस्था पर व्यंग्य)
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