Net JRF Hindi / IGNOU Study Material : MHD- 3 धरती धन न अपना उपन्यास का सारांश
जगदीश चन्द्र की रचनाये (Works of Jagdish Chandra)
1) यादों का पहाड़ 1966 में आया।
2) धरती धन न अपना 1972- 1955 से लिखना शुरू किया था, लेकिन 1972 में पूरा किया था।
3) आधा-पुल 1973 में आया।
4) कभी न छोड़ें खेत 1976 में आया।
5) मुट्ठी भर काँकर 1976 में आया।
6) टुंडा लाट 1978 में आया।
7) घास गोदाम 1985 में आया।
8) नरक कुंड में बास 1994 में आया।
9) लाट साहब की वापसी में आया।
10) जमीन अपनी तो थी 2001 में आया।
धरती धन न अपना उपन्यास का संक्षिप्त सारांश (Brief Summary of the Novel Dharti Dhan Na Apna)
पंजाब के गाँव का नाम घोडेवाहा है। इसी गाँव को उपन्यास में चिहित किया गया है। यह उपन्यास जगदीशचन्द्र द्वारा लिखा गया है, यह गाँव जिला होशियारपुर में पड़ता है। दलित वर्ग के जीवन की झलक इस उपन्यास में स्पष्ट मिलती है।
धरती भी अपनी नहीं है, धन तो अपना है ही नहीं। धन-संपत्ति नहीं है, इसी को विषय वस्तु बनाकर इस उपन्यास की रचना की गई है। जमीदारी प्रथा के कारण समाज के कुछ वर्ग के लोगों के पास खेती के लिए खुद की ज़मीन नहीं होती थी। ऐसे ही वर्ग को लेकर इस उपन्यास की रचना की गई है, अर्थात हरिजन समाज की सामाजिक स्थिति दिखाने का प्रयास किया गया है।
उपन्यास का मुख्य पात्र काली है, वह अपने गाँव से कानपुर भाग गया था। 6 साल बाद वह अपने गाँव वापस पहुँचता है, देखता है उसके गाँव में कोई परिवर्तन नहीं आया है। अभी भी दलित वर्ग की वही पुरानी स्थिति है, यह उपन्यास दलित वर्ग का प्रतिनिधित्तव करता है।
काली जब वापस आता है, तो काली के हाथ में एक बक्सा है, उसके परिवार में सिर्फ एक चाची ही जीवित है। कानपुर रहकर काली के विचारों में परिवर्तन हो जाता है। गाँव में उसकी चाची की सिर्फ एक झोपड़ी थी, अर्थात चाची बहुत गरीब है। ज्ञानो और काली में प्रेम हो जाता है, परिणाम स्वरूप वह अपने गाँव में ही घर बनाकर रहना चाहता है, लेकिन उसे पता चलता है, उस गाँव की जमीन दलितों की नहीं है, वह जमीदारों की थी। परिणाम स्वरूप इस उपन्यास का नाम धरती धन न अपना स्पष्ट होता है।
काली की चाची का निधन हो जाता है, काली कानपुर से तीन सौ रूपए कमा कर लाता है, उसी पैसे से वह अपना पक्का मकान बनाना चाहता है, लेकिन यह बात जैसे ही साहूकार को पता चलती है, तो वह झूठ कहता है कि काली के पिता ने उससे कर्ज़ लिया था। उस कर्ज़ का ब्याज इतना बढ़ा बताता है कि काली को अपने आधे रूपए उसे दोने पड़ते हैं। बाद में अपना घर बनाने के लिए काली को साहूकार से ब्याज पर पैसे लेने पड़ते हैं। साहूकार द्वारा काली का शोषण किया जाता है। अंत में काली और ज्ञानो के प्रेमसंम्बन्ध के परिणाम स्वरूप ज्ञानो गर्भवती हो जाती है, परिणाम स्वरूप उसकी माँ द्वारा ही उसे जहर दे कर मार दिया जाता है। गाँव वालों की नज़र में काली गाँव छोड़कर चला जाता है, लेकिन स्पष्ट न करते हुए लेखक यह बताया है कि काली की भी हत्या कर दी जाती है।
धरती धन न अपना की विषेशता (Dharti Dhan Na Apna Specialty)
दलित वर्ग की सामाजिक स्थिति का चित्रण किया गया है।
इस उपन्यास में अंधविश्वास की झलक भी देखने को मिलती है।
छुआछूत की समस्या का चित्रण किया गया है।
जमींदार प्रथा और जमींदारों द्वारा हरिजन समाज का शोषण दिखाया गया है।
धरती, प्राकृतिक सम्पत्ति आदि पर सर्वप्रथम उच्च वर्ग का अधिकार दिखाया गया है।
जमीदार चमारों से बेगार काम अर्थात फ्री में काम करवाता है।
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धरती धन न अपना का प्रकाशन वर्ष 1972 है। इसके लेखक जगदीशचंद्र हैं।
विषय – इस उपन्यास में जगदीश चन्द्र ने पंजाब के दोआब क्षेत्र के दलित जीवन की त्रासदी को चित्रित किया है। मुख्य गाँव से बहिष्कृत बस्ती चमादडी में बसने वाली चमार जाति की असहनीय पीड़ा को लेखक ने यथार्थ की भूमि पर प्रस्तुत किया है।
जगदीश चन्द्र के शब्दों में – “मेरा यह उपन्यास मेरी किशोरावस्था की कुछ अविस्मरणीय स्मृतियों और उनके दामन में छिपी एक अदम्य वेदना की उपज है”।
यह उपन्यास पंजाब प्रांत के होशियारपुर के घोडेवाहा गाँव की कहानी है। उपन्यास कुल 49 अध्याय में विभाजित है। काली इस उपन्यास का मुख्य पात्र है, ज्ञानों नायिका है। 1955 में आठ अध्याय लिखकर लेखक ने छोड़ दिया था, बाकी अध्याय बाद में लिखकर 1972 में प्रकाशित करवाया।
धरती धन न अपना उपन्यास के प्रमुख पात्र –
काली – माखे का पुत्र, यह सबसे महत्वपूर्ण पात्र है।
प्रतापी – काली की चाची
ज्ञानो – काली की पेमिका, जस्सो की बेटी और मंगू की बहन।
मंगू – चौधरी हरनाम सिंह के यहाँ मजदूर
अन्य – निक्कू-प्रीतो, लच्छो, छज्जू शाह, जीतू, मंगू, लालू पहलवान, डॉ. बिशनदास, पादरी अचिंतराम, नंद सिंह (ईसाई बन जाता), बुटा सिंह, महाशय तीरथराम, हरदेव, संता सिंह
अध्याय – 1
काली जब गाँव के निकट पहुँचा तो पौ फट चुकी थी। वह एक रुण्ड-मुण्ड पेड़ के पास खड़ा होकर गाँव की ओर देखने लगा जो सुबह के मलगजे अंधेरे में बहुत बड़ी गठड़ी की तरह नज़र आ रहा था। गाँव से बाहर एक हवेली में एक दिया टिमटिमा रहा था। काली ने सिर से ट्रंक और कन्धे से लटक रहा बिस्तर उतार कर जमीन पर रख दिया और पेड़ के तने के सहारे बैठकर सोचने लगा कि शायद चौधरी फत्तू के खेत में हल चला रहा है, शायद उसका बेटा प्यारू हल चला रहा है… सावनी के लिये खेत तैयार कर रहा है। काली का ध्यान फिर गांव की ओर चला गया। वह उनसे आँखें चुराता हुआ आगे बढ़ जाता है, चौधरियों के मुहल्ले के बाद स्कूल आ गया चार कक्षाओं के इस स्कूल में काली ने भी कुछ समय तक मुंशी के पांव दबाये थे, उगलियों के पटाखे निकाले थे और डंडे खाये थे। वह स्कूल के सामने रूक गया और मुंशी शिवराम के बारे में सोचने लगा जिसके लिए जाटों के लड़के साग, गन्ने, गाजरें, मूलियां इत्यादि लाते थे और कम्मियों के लड़के अपने सिर पर उठा उसके घर पहुँचाते थे।
काली घर पहुचकर – “चाची”। काली ने भर्राई हुई आवाज में कहा और उसके पांव की ओर झुक गया।
“कौन काली है?” चाची ने काली की आवाज को पहचानते हुए स्नेह और आश्चर्य भरे स्वर में कहा जैसे उसे विश्वास न आया हो। फिर उसने काली के सिर पर हाथ फेरते उसे ऊपर उठाया और उसका माथा चूमकर बोली – “रख साइयां दी”। काली जब ट्रंक और बिस्तर उठाकर अंदर आने लगा तो चाची ने उसे रोक दिया और स्वयं कोठड़ी में जाकर सरसों के तेल की शीशी तलाश करने लगी। शीशी हाथ लग गई तो उसे याद आया कि उसमें तेल नहीं है। वह खाली शीशी लेकर ही वापिस आ गई और दहलीज के दोनों ओर एक-एक बूंद तेल टपकाकर काली को इस तरह अंदर लाई जैसे सारे संसार पर विजय पाकर लौटा हो।
चाची फिर फूट-फूटकर रोने लगी। काली उसकी गोद में सिर रखे हुए उन दिनों को याद करने लगा जब छ: साल पहले वह दो दिन का भूखा-प्यासा, फटे हाल घर से चोरी करके भाग गया था। चाची भी अतीत में खोई हुई अपने दुखों को याद करके बार-बार रो पड़ती। वे दोनों बहुत देर तक गुमसुम बैठे रहे। चाची के दिल में जैसे हौल उठा और वह काली का माथा चूमती हुई बोली, – “पुत्तार, परदेसी पंछी भी उड़ते-उड़ते साल दो साल बाद फेरा डाल जाते हैं। लेकिन तू तो ऐसा गया कि तेरी कोई खबर ही न मिली”। फिर वह अपने आँसू पोंछती हुई बोली – “काका, मुझे सिर्फ तेरा ही आसरा है। तेरे सहारे उड़ती फिरती हूँ। तू आ गया तो यह कोठड़ी भी भरी-भरी मालूम पड़ती है”।
अध्याय – 2.
वह चमादडी के कोठों को देखने लगा। पूरे मुहल्ले में एक भी ऐसा कोठा नहीं था जिसमें पक्की ईंट लगी हो। पिछली बरसात के बाद इनकी अभी पोताई नहीं की गई थी। इसलिए वे कमजोर और उनकी दीवारें खुरदरी नज़र आ रही थीं।
लगभग प्रत्येक घर से ओपलों का कड़वा धुआं अलसाया-सा ऊपर उठ रहा था। मुहल्ले में सुबह के समय भी खामोशी छाई हुई थी, जिसे किसी मर्द की गाली, किसी औरत की चीखती हुई आवाज या किसी बच्चे की आह पुकार तोड़ देती थी। काली को गली में, चाची बधाईया की आवाज सुनाई देने लगी।
अध्याय – 3
जह चीखें दोबारा गूंज उठीं तो काली पांव में जूता घसीटता हुआ गली में आ गया। चाची उसे रोकती रही लेकिन वह चौगान की ओर बढ़ गया। वहाँ मुहल्ले के बहुत से मर्द कमान बना कर खड़े थे। बीच में चौधरी हरनामसिंह बायें हाथ की दो उंगलियों से तहबंद का पल्लू थामे हुए खड़ा गालियां दे रहा था। कोठों की दीवारों और दरवाजों के साथ मैली-कुचैली स्त्रियां भयभीत बच्चों को छातियों से लटकाये या अपनी टांगों में दबाये चौधरी और अपने मुहल्ले के मर्दों को देख रही थीं। बूढ़े और जवान सब ऐसे सिर झुकाए हुए थे जैसे राजा के दरबार में खड़े हों।
(मंगू ने चौधरी को इशारा किया कि आपकी खेत में जीतू ने पशु छोड़े थे, जीतू की पिटाई करता है चौधरी काली बीच-बचाव करने जाता है, लेकिन उसे रोक दिया जाता है)
जब चौधरी ने जूता पाँव में पहन लिया और तहबंद को ढीला छोड़ दिया तो आसपास खड़े लोग समझ गए कि अब वह किसी और की पिटाई नहीं करेगा। ताई निहाली रोती और जीतू को गालियाँ देती हुई उसे घर की ओर ले जाने लगी। औरतों के झुरमुट खड़ी मंगू की बहन ज्ञानो ने तीखी आवाज में चौधरी को गाली दी तो उसकी माँ जस्सो उसका मुँह बंद कर देती है। छज्जू शाह (साहूकार) काली को देखकर अपनी दुकान पर बुलाता है।
अध्याय – 4
काली की समझ में नहीं आ रहा था कि चौधरी हरनामसिंह ने जीतू को क्यों मारा। उसने चौधरियों से स्वयं भी लड़कपन में कई बार मार खाई थी और वह हर बार उसे मामूली बात समझकर भूल जाता था। इस बात पर उसे कभी शर्म महसूस नहीं होती थी, लेकिन जीतू को मार पड़ने पर उसे बहुत दुख था, बहुत क्रोध आ रहा था। चाची ने उसे इस तरह बैठे देखा तो प्यार से झिड़कती हुई बोली – “पुत्तरा ऐसे क्यों बैठा है? खाट ले ले। काली ने कोई उत्तर नहीं दिया”।
जीतू काली से पूछता है कि तू इस नरक में क्यों आया लौटकर… उसकी आँखों में अविश्वास की झलक देख काली भी सोच में पड़ गया और उसने मुंह दूसरी ओर फेर लिया। लेकिन जब जीतू ने अपना प्रश्न दोहराया तो वह उसका कंधा थपथपाता हुआ बोला- “जीतू अपने घर मैं बैठकर दुनिया बहुत बड़ी नज़र आती है, लेकिन गरीब आदमी के लिए यह हर जगह तंग है”।
अध्याय – 5
काली जब भी कोठरी में लेटता तो उसे यही डर रहता कि छत उसके ऊपर आ गिरेगी। दीवारें उसे अपने मलबे के नीचे दबा लेंगी। छत जगह-जगह नीचे की ओर झुकी हुई थी और वहाँ मैले-मैले जाले लटक रहे थे शहतीरों को दीमक ने खोखला कर दिया था और सरकंडों के ऊपर मिट्टी को खदेड़कर चूहों ने अपने घर बना लिये थे।
“मैं नया मकान बनाऊंगा रूपया खर्च हो जाएगा तो क्या हुआ, और कमा लूंगा। काली ने चाची के घुटने पकड़ लिए। फिर बोला – “चाची जब तू ऐनक लगाकर पक्के आंगन में चर्खा कातेगी तो चौधरानियां भी तेरे साथ ईर्ष्या करेंगी”।
छज्जू शाह और काली का संवाद-
कहो, छुट्टी काटने आए हो या गांव में रहने का विचार?
काली – इरादा गांव में ही रहने का है, आगे जो रब जी को मंजूर शहरों में भी हालत ज्यादा अच्छी नहीं है।
हां, शहर में गरीब आदमी मारा जाता है। गांव में तो फिर भी पल जाता है। गांव के लोगों में अभी तक दया-धर्मा बाकी है, लेकिन शहर में तो आदमी सामने तड़प-तड़पकर जान दे दे, कोई पानी तक नहीं पूछेगा। छज्जूशाह हुक्का गुड़गुड़ाने लगा।
(काली छज्जूशाह से अपने पास 300 रूपए होने की बात करता है। यह सुनकर छज्जू शाह फायदा उठाना चाहता है।)
छज्जूशाह ने उस पन्ने पर उंगली रखकर बही बंद कर दी और आफसोस भरी आवाज में कहा – “जो मर गया, सो मर गया। तुम्हें देखकर मुझे ख्याल आ गया था आखिर उसी खानदान की निशानी है। जब कभी सिद्धू की याद आती है तो यह यही निकालकर देख लेता हूं। इसमें उसका अंगूठा लगा हुआ है”। छज्जूशाह अपनी बात खत्म कर चुका तो काली बहुत हौंसले से बोला – “शाह जी, उनकी जगह मैं जो बैठा हूँ। आपने पहले मुझे क्यों नहीं बताया, मैं आज दिन ढले आपको पैसे दे जाऊँगा।
अध्याय – 8
काली के मन में बार-बार ख्याल आत कि उसने खाहमखाह मकान गिरा दिया। यदि अब पक्का न बना सका तो जगहंसाई होगी। इस अंधेरे में उसे रोशनी की एक किरण नजर आती कि शायद छज्जूशाह स कुछ पैसे उधार मिल जाए। शायद वह उसके मन की मुराद पूरी कर दे। काली को याद आया कि अभी उसे अपने चाचा का लिया हुआ उधार भी चुकाना है। इस उम्मीद के सहारे उसने सारा मकान एक ही बार पक्का बनाने का इरादा कर लिया और जेब में पच्चास रुपए डाल वह छज्जूशाह की दुकान की ओर चला गया। वह तो मुझे पता नहीं। आपने पच्चीस रूपए बताए थे, सो मैं ले आया हूँ। लेकिन इसके साथ सूद भी होगा… चलो बारह साल का नहीं, छह साल का ही, साढ़े बारह रूपए और दे दो।
अध्याय – 09
दीनू कुम्हार, और काली काम कर रहे होते हैं घर में।
“किससे पूछकर मिट्टी खोद रहे हो?” मंगू का बात करने का ढंग ऐसा था, जैसे छप्पड़ का मालिक हो। मंगू ने आगे बढ़कर कुदाल उठाना चाहा, लेकिन काली ने उस पर अपना पांव रख दिया। मंगू गाली देकर बोला – “मैं पूछता हूँ कि किससे पूछकर मिट्टी खोद रहे हो?” “छप्पड़ से आज तक किसी ने पूछकर मिट्टी खोदी है, जो मैं पूछने जाता… और पूछता किससे?” काली बोला। “यह छप्पड़ तेरे बाप की मलकीयत नहीं है, कुत्ते का पुत्तर”। आगे उलटा जवाब देता है। मंगू ने क्रुद्ध स्वर में कहा – “छप्पड़ का पट्टा तेरे बाप के नाम भी नहीं है”। काली ने उत्तर दिया। उस समय की व्यवस्था के अनुसार जहाँ काली का घर है, वह जमीन उसकी नहीं थी।
अध्याय – 12
घर बनाते समय प्रीतो और निक्कू से काली का झगड़ा होता है। लगा – चौधरी जी आ रहे चौधरी हरनामसिंह और छज्जूशाह के पहुँचने पर काली पंखा छोड़ एक तरफ हट गया। चौधरी हरनामसिंह ने निक्कू के माथे पर पट्टी और उसके ऊपर तेल मिले खून का भव्या देख काली की ओर यूं नजरें उठाई जैसे उसे भस्म कर देना चाहता हो। “जब से तू गाँव में आया है, चमादड़ी में शरारत बहुत बढ़ गई है। पहले यही मुहल्ला था और यही लोग थे, इनमें से कोई भी कान में डालने पर भी नहीं चुभता था। लेकिन जिस दिन से तूने यहाँ कदम रखा है, रोज दंगा-फसाद होने लगा है। काली ने चौधरी की ओर भरपूर नजरों से देखा और दृढ स्वर में बोला- “शरारत पहले भी होती थी, लेकिन लोग चुपचाप सहन कर लेते थे। मैं उस समय चुप नहीं रह सकता जब पानी सिर से गुजरने लगता है”। यह सुनकर चौधरी को बहुत क्रोध आया।
काली उत्तेजित स्वर में बोला – “मैं तो जमीन के इस टुकड़े को भी जायदाद नहीं समझता। मैं तो सिर्फ मलबे का मालिक हूँ”। तू पूरे मलबे का भी मालिक नहीं है। यह मिट्टी गाँव के छप्पड़ की है। चौधरी का क्रोध बढ़ने लगातो छज्जूशाह ने उसका हाथ फिर दबा दिया और बोला, काली, अगर निक्कू झगड़े पर उतारू था तो तू चौधरी के पास जाता। अपने-आप जबर्दस्ती फैसला करने की क्यों कोशिश की?”
अध्याय – 15
लच्छो सिर पर टोकरा उठाये हवेली में दाखिल हुई तो चौधरी हरनामसिंह का भतीजा हरदेव दीवार के साथ घोड़ी की ऊंची खोर पर बैठा था। लच्छो को देख वर लहक-लहककर गाने लगा। (गलत व्यवहार करता)
17 व 18 अध्याय
17 अध्याय – काली मिस्तरी संता सिंह ने दीवार ऊंची कर दीं।
18 अध्याय – जब काली महाशय तीरथराम की दुकान पर पहुँचा तो डॉ बिशनदास और पादरी अचिंतराम भी वहाँ बैठे थे। बिशनदास और महाशय तीरथराम बहस में उलझे हुए थे। काली ने तीनों को बंदगी की तो कुछ क्षणों के लिए बहस रूक गई। बिशनदास ने हुक्का गुड़गुड़ाते हुए काली के साथ गरमजोशी से हाथ मिलाया। पादरी ने उसे पीठ थपथपाकर आशीर्वाद दिया और महाशय ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते की। डॉक्टर बिशनदास फिर मोड़ता हुआ बोला – महाशय जी, इंकलाब को न तुम रोक सकते हो और न ही पादरी जी। इंकलाब तो बिफरे हुए तूफान की तरह है, जो धर्म के कच्चे किनारों को तोड़कर चारों तरफ फैल जाएगा।
बिशनदास सोचता हुआ बोला – “मंगू चौधरी हरनाम सिंह का एजेंट है। गरीब आदमी का जमीर खत्म कर देती है। गरीबी दूर हो जाए तो हर आदमी अपनी जमीर का मालिक आप होगा और गरीबी दूर करने का एक ही रास्ता है और वह है इंकलाब…
परोलतारी इँकलाब। जब काली ने बिशनदास को कोई उतर नहीं दिया।
अध्याय – 19
कबड्डी के मैदान में काली और हरदेव की कुश्ती होती है। यहीं लालू पहलवान से मुलाकात होती है।
– लेकिन डॉक्टर बहुत गंभीर स्वर में बोला – जिस तरह बड़ी मछली छोटी मछली को खाती है, उसी तरह बड़ा तबका छोटो तबके को एक्सप्लायट करता है। यानी उसकी मेहनत का फल उसे नहीं खाने देता बल्कि खुद खा जाता है। इसी से क्लास स्ट्रगल (वर्ग संघर्ष) पैदा होता है। लेकिन मार्क्सवादी इक्लाब से यह तबका खत्म हो जाएगा। डॉ. बीशनदास का कथन है।
अध्याय – 25
यह सुन पंडित सन्तराम भड़क उठा और क्रुद्ध स्वर में बोला, मैं ठीक कह रहा हूं कि नंदसिंहको पादरी क्रिस्तान बना रहा है। सर्वनाश हो उसका। बड़ी मुश्किल से क्रिस्तानियों का बीजनाश किया था गांव में। अब पादरी फिर से नया पौधा लगा रहा है।
पंडित सन्तराम सटपटाता हुआ फिर बोला – “कभी दूसरे धर्म वाले को अपना धर्म बदलने हुए सुना है। धर्म जब भी बदलता है तो हिन्दू ही बदलता है क्योंकि उसे अपने धर्म-कर्म पर विश्वास नहीं रहा”।
डॉक्टर बिशनदास कहता है कि “पंडित जी, यदि आपकी बात मान भी ली जाए तो कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि धर्म बदलने से नंदसिंह का क्लास कैरेक्टर नहीं बदलेगा। सब धर्म पाखण्ड हैं। हर धर्म मजदूर तबके के लिए अफीम है। अफीम काली हो या भूरी, उससे क्या फर्क पड़ता है”।
अध्याय – 29
चाची दो दवा-दारू से लाभ नहीं हुआ तो ताई निहाली और बेबे हुकमा के आग्रह पर काली जादू-टोना कराने को तैयार हो गया। उसने जीतू को भेजकर कंधाला जट्टां से रक्खे धेवर को बुला लिया। वह झाड़-फूंक और जादू-टोने के लिए सारे इलाके में मशहूर था।
चाची की मृत्यू-
पादरी उसे शान्ति का उपदेश देकर बोला – “कालीदास, किसी चीज की जरूरत हो तो बता देना। शर्म-संकोच न करना। मेरे दादा हिन्दू थे। मुझे याद है जब वह मरे तो मेरे पिता को कितनी परेशानी हुई थी और कितना खर्च हुआ था। मेरे पिता इन्हीं बातों से तंग आकर यीशू मसीह की शरण मे आकर ईसाई बन गए थे”।
नन्द सिंह बोला – “मुझे गाँव में रहना बिलकुल पसंद नहीं है। क्योंकि यहाँ गरीब आदमी की, खासतौर पर कम्मी-कमीन की कोई इज्जत नहीं है। गाँव में इज्जत से रहना हो तो आदमी को जमीन का मालिक होना चाहिए। यहाँ जमीन और जूते की इज्जत है, बाकी चीजों को कोई नहीं पूछता”। नंदसिंह ने अपनी बात जारी रखेत हुए कहा – “गाँव में चमार होना तो सबसे बड़ा पाप है। घोर लांछन है। दो कौड़ी का मालिक काश्तकार, अपने चमार को छठी का दूध पिला देता है… मुझे चमार शब्द से ही नफरत है। मुझे कोई चमार कहे तो गुस्सा आ जाता है”।
अध्याय – 32 –
काली के घर में चोरी हो जाती है।
वह ठहरा गाँव का चौधरी और मैं चमार। वह चमारों को यूं समझता है कि जैसे वे उसके खरीदे हुए दास हों। काली ने कुछ उत्तेजित स्वर में कहा।
डॉक्टर – कालीदास, दरअसल सारी खराबी कैपिटलिस्ट सिस्टम की है। हमारे देश में तो हालत और भी गंभीर है। यहाँ अभी पूंजीवाद भी पूरी तरह नहीं आया। दुनिया समाजवाद की तरफ बढ़ रही है और हम अभी तक जागीरदारी के चक्कर में फंसे हुए हैं।
डॉक्टर ने दार्शनिक भाव से कहा और कुछ क्षणों के लिए चुप रह फिर बोला – “काली, यह हालत ज्यादा देर तक नहीं रह सकती। इन्कलाब आयेगा, जरूर आयेगा और पूंजीपतियों, जागीरदारों और उनके एजेंटों को खत्म कर देगा। उनका नाम – निशान मिटा देगा। फिर आदमी आजाद होगा। इन्कलाब कब आएगा?” काली ने पूछा।
अध्याय – 36
बाढ़ आना, चो (नदी या बांध) का पानी गाँव में आ गया-
चमादड़ी में सब लोगों ने रात जागकर गुजारी क्योंकि पानी उनके घरों में भरने लगा था। ऊपर से छतें टपक रहीं थीं। पानी को रोकने के लिए नालियां बंद कर दी गईं और दहलीजों के आगे मिट्टी की छोटी-छोटी दीवारें खड़ी की गईं। सब लोग रात भर परमात्मा और ख्वाजा पीर की मिन्नतें मांगते रहे। प्रात: लोग घरों से बाहर निकले तो चमादड़ी का कुआं कहीं नजर नहीं आ रहा था। गली में खड़ा पानी घुटनों तक उठ आया था और कुए के आसपास छाती से भी ऊंचा था। कुएँ के पानी में डूब जाने पर चमादड़ी में कोहराम मच गया। गाँव के कुएँ गंदे पानी से भर गए। गाँव के लोग पानी के लिए चौधरी के मोहल्ले की तरफ पलायन करने का प्रयास किया, लेकिन पानी नहीं मिला।
पादरी ने पहले अपने नल से पानी भरने दिया, फिर उसने भी बंद कर दिया। पादरी ने हेंडपम्प का बांध कर घर में रहते हुए, घर में ताला लगा दिया। सबके सामने प्रश्न था कि वे पीने के लिए पानी कहाँ से लाएंगे। चिंताग्रस्त लोग वर्षा में खड़े आपस में सलाह-मशविरे करने लगे। जाटों के दोनों कुएँ वहाँ से काफी दूर थे और वहाँ से चमारों को पानी भरना वर्जित था। मन्दिर का कुआँ सबसे नज़दीक था, लेकिन वहाँ सन्तराम था जो किसी चमार को कुएँ के निकट भी फटकने नहीं देता था।
आध्याय – 38
काली, हरदेव सब मिलकर बांध काटते हैं, जिससे पानी निकल जाता, मगर चौधरी के खेतों में बहाव का पानी इकट्ठा हो जाता है-
कब लोग तो कुआँ खाली नहीं कर रहे हो। दो-चार आदमी कुदाल लेकर आओ। जहाँ बंध काटा था, उसके आगे मिट्टी का ढेर बन गया है। उसमें रास्ता बनाना है ताकि खेतों में जमा पानी चो में आ जाए। चौधरी की बात सुन कुएँ पर खड़े सब लोग एक-दूसरे की ओर देखने लगे क्योंकि उनके सामने सबसे बड़ा प्रश्न अपना कुआँ साफ करने का था।
मुफ्त में चौधरी अपने खेतों में काम करवाता है-
ताया बसन्ता आगे बढ़ता हुआ बोला – “चौधरी, बात यह है कि तीन दिन से सारी चमादड़ी यहाँ काम कर रही है, लेकिन किसी को अभी तक एक दिहाड़ी के भी पैसे नहीं मिले। जो आदमी रोज का रोज कमाकर खाता है, उसे तीन दिन मजदूरी न मिले तो वह कहाँ से खाएगा?” । “तुम्हें किसने कहा कि इस काम के पैसे मिलेंगे?” चौधरी हरनामसिंह ने तल्ख स्वर में कहा। फिर वह चौधरी मुंशी को संबोधित कता हुआ बोला – “इनके दिमाग में जरूर कोई न कोई कीड़ा है, जो कभी-कभी ये इस किस्म की बातें करने लगते हैं”।
ज्ञानो भी अपने तौर पर बहुत ही ज्यादा चिंतित थी। उसे मालूम था कि इस गाँव में रहते हुए काली के साथ उसका विवाह नहीं हो सकेगा। उसके लिए तो काली से मिलना भी बहुत कठिन हो गया था। वह बहुत रात गए आता और सुबह-सवेरे ही निकल जाता। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि किस तरह उसे यह खबर पहुँचाए की वह बहुत मुश्किल में फंस गई है। जस्सो ने निर्णय किया कि वह अभी मंगू को कुछ नहीं बताएगी की ज्ञानों माँ बनने वाली है।
जस्सो आगे कुछ न सकी और बाहर जाकर मुँह में पल्लू लेकर रोने लगी। ज्ञानो ने चुपचाप गोली खा ली। कुछ समय तक आराम से लेटी रही। फिर उसे महसूस हुआ कि जैसे उसके पेट में कोई तेज चीज काट रही है। उसका सारा शरीर ऐंठने लगा। वह खाट पर पड़ी तड़पने लगी और जस्सो इसके इर्द-गिर्द घूमती हुई आँसू बहाती रही। गली के बाहर चौथा पहर आया तो ज्ञानो को जोर की उल्ली आई। जस्सो अपना रोना-पीटना भूल गई और दीया जलाकर ज्ञानो पर झुक गई। वह बिलकुल बेहोश पड़ी थी और उसकी सांस उखड़ गई थी। थोड़े ही समय के बाद उसे एक और उल्टी आई और वह खाट पर लुढ़क गई।
अध्याय – 49
एक बार कोई खबर लाया कि भोगपुर और चुलांग के स्टेशनों के बीच रेल के फाटक से थोड़ी दूर पर रेलगाड़ी के पहियों ने किसी युवक के सिर और चेहरे को कुचल दिया है और मृतक को पहचानना मुश्किल है, लेकिन सुना है कि उसका धड़ काली से मिलता-जुलता है।
इसके बाद खबर फैली कि तीन कोस दूर एक अन्धे कुएँ से सड़ी हुई लाश मिली है। कहते हैं कि उसका हुलिया काली जैसा था। लोगों ने दोनों खबरें सुनीं, लेकिन पड़ताल करने की आवश्यकता नहीं समझी।
काली की मृत्यू को लेकर अफवाहें फैलनी लगीं, लेखक ने स्पष्ट न करते हुए बताया है की काली की भी हत्या कर दी गई है।
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