कहानी समीक्षा: ओरे चुरुंगन मेरे | O-re chirungan mere Papar code Mhd 12

O-re chirungan mere Papar code Mhd 12

भूमिका

संसार में प्राकृतिक रूप से कौन क्या कर सकता है क्या नहीं कर सकता यह खुद किसी व्यक्ति के हाथों में नहीं होता। मानव निर्मित किसी भी निर्जीव वस्तु को बनाने के लिये भी इंसान को संसार में मौजूद प्राकृतिक वस्तुओं का इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसे में यदि कोई (सजीव) प्राणी का निर्माण नहीं कर पा रहा है तो इसमें उसका खुद का क्या दोष है? हम बात कर रहें हैं एक ऐसी स्त्री की जिसकी संतान नहीं है। यदि कोई स्त्री माँ नहीं बन पा रही है तो इसमें उसका क्या दोष है? जब यह स्पष्ट है कि उसका कोई दोष नहीं है तो उसे यह समाज क्यों दोषी ठहराता है? इतना ही नहीं उसके मानसिक व शारीरिक दोनों रूप से प्रताड़ित किया जाता है। आपके परिवेश में माता न बन पाने वाली स्त्री की स्थिति कितनी दयनीय है उस पर विचार कीजिये।

हम बात कर रहें हैं एम.एच.डी के पाठ्यक्रम में लगाई गई कहानी “ओरे चुरूंगन मेरे” की जिसमें नयिका संतान हीन है।

कहानी का परिचय

कोंकणी की अत्यधिक चर्चित कहानीकार मीना काकोडकर जी ने “ओरे चुरूंगन मेरे”  कहानी को लिखा है अर्थात यह कहानी कोंकणी भाषा में लिखी एक भारतीय कहानी है। यह कहानी एक संतानहीन स्त्री की मनोवैज्ञनिक स्थिति को दर्शाती है। समकालीन भारतीय साहित्य के जनवरी-मार्च 1992 वाले अंक में लीला गायतोंडे द्वारा अनूदित होकर ‘ओरे चुरुंगन मेरे’ पहली बार हिंदी में प्रकाशित हुई थी। वर्तमान में यह कहानी इग्नु के (एम.एच.डी) के पाठ्यक्रम में लगाई गई है। ओरे चुरुगंन मेरे की रूपरेखा कोंकणी समाज से है लेकिन कहानी की संवेदना अत्यंत व्यापक है। यह कहानी संतानहीन माता व मातृहीन बालक की स्थिति को दर्शाती है।

लेखिका का परिचय

मीना काकोडकर कोंकणी की कहानीकार हैं। उनका जन्म गोआ के पोलोलम में 21 सितंबर 1944 को हुआ था। दो कहानी संग्रह “डोगर चन्वला” और “सपन फुलाँ” को अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त हुई। कोंकणी कहानीकारो में महिला कहानीकारो की संख्या कम है। मीना काकोडकर के अतरिक्त शीला कोलांबकर, जयमाला दानाइत, हेमा नाईक, जयन्ती नाईक आदि ने कोंकणी में उल्लेखनीय कहानियाँ लिखी हैं।   

ओरे चुरुंगन मेरे कहानी का सारांश

यह कहानी मुख्य रूप से रघु और रघु की मौसी की है। रघु लगभग आठ साल का बालक है। रघु की माता का देहांत हो जाता है जिसकी सूचना रघु की मौसी को कुछ दिनो बाद मिलती है परिणाम स्वरूप वह रघु के घर आती है। रघु की मा की मृत्यु की सूचना समय पर न देने के लिये रघु की मौसी रघु के पिताजी से नराज़ होती है।

जब रघु के पिताजी काम पर चले जाएँगे तब रघु अकेले रह जायेगा यह तर्क देकर रघु की मौसी रघु को अपने साथ ले जाती है। रघु का एक मन मौसी के साथ जाने का करता है दुसरा मन ना जाने का करता है लेकिन फिर भी वह अपनी मौसी के साथ उनके घर आ जाता है।

रघु की मौसी की अपनी कोई संतान नहीं है परिणाम स्वरूप वह रघु से बहुत प्रेम करती है लेकिन फिर भी रघु अपनी माँ को बहुत याद करता है। वह बार बार अपनी माँ की तुलना मौसी से करता है। रघु की मौसी को हमेशा यह डर रहता है कि एक दिन रघु अपने पिता के साथ अपने घर चला जायेगा। वह अकसर रघु को सौतेली माँ के द्वारा किये गये अत्यचार के बारे में रघु को बताती रहती थी। जो कुछ हद तक सत्य भी है।

एक दिन रघु की मौसी रघु को चुरुंगन की कहानी सुनाती है कहती है – जिस कहानी में चुरूंगन की माँ की मृत्यु हो जाती है उसके बाद उसकी मौसी उसे अपने पंखो का सहारा देती है। जब चुरुंगन उडना सीख जाता है तो वह कहीं दूर उड़कर चला जाता है और उसकी मौसी अकेली रह जाती है। रोती रहती है और चुरुंगन का इंतजार करती है।  

रघु की मौसी चुरुगंन के माध्यम से अपनी और रघु की कहानी सुना रही थी। लेकिन इस बात को आठ साल का बच्चा रघु नहीं समझ पाया।

रघु की मौसी के यहाँ रघु की आयु के अन्य बच्चे नहीं थे। परिणाम स्वरूप खेलने के लिये रघु अकेला पड़ जाता था। जो उसे अच्छा नहीं लगता था।

छः महीने हो गये रघु की परीक्षा समाप्त हो गई। एक दिन वह अकेले खेल रहा था तभी अचानक उसके पिता आ गये। वह रघु को अपने साथ ले जाने आए थे। लेकिन रघु की मौसी नहीं चाहती थी कि रघु उससे दूर जाए इसलिये उसने कहा कि आप अकेले रघु को कैसे सभालोगे? रघु को मेरे पास रहने दो। इतने में रघु के पिता ने कहा मैंने दूसरी शादी कर ली है। यह जानने के बाद रघु की मौसी को गुस्सा आया उसने कहा बहन को गए छः महीने भी नहीं हुए और आपने दूसरी शादी कर ली। रघु के पिता ने उत्तर देते हुए कहा कि जीवन तो जीना ही है और रघु को मैं कितने दिन और यहाँ छोड़ सकता था?

रघु की मौसी ने कहा – “सौतेली माँ?” मौसी बहुत परेशान हुई कि सौतेली माँ रघु का क्या हाल करेगी। इतने में रघु के पिता ने कहा वह रघु को बहुत प्यार करेगी। मौसी ने पूछा अभी से यह तुम कैसे कह सकते हो? रघु के पिता ने कहा – वह रघु से बहुत प्यार करती है। हमारे पड़ोस में ही रहती है। उसका नाम सुरंग है। जैसे ही रघु को पता चला कि उसकी सौतेली माँ सुरंग है, जिसके अन्दर से भी वैसी ही धुएँ की महक आती है जैसी उसकी अपनी माँ से आती थी। सौतेली माँ के लिए सारा डर रघु का समाप्त हो गया और वह अपने पिता के साथ जाने के लिए तैयार हो गया। मौसी की आँखे नम हो गई। जब मौसी ने पूछा कि क्या तु सच में जाना चाहता है? रघु के हाँ बोलने पर उसे और अधिक दुख हुआ।

रघु अपने पिता के साथ अपने घर चला गया। जाते हुए वह बहुत खुश था कि अब उसे रोकने टोकने वाला कोई नहीं होगा। अपने घर में वह आजादी से खेल-कूद सकता है। जब वह बस में बैठा तो अचानक उसे याद आया कि वह आज फिर अपनी मौसी को बाए (पीछे मुड़कर हाथ हिलाना) बोलना भूल गया। इस तरह कहानी समाप्त हो जाती है।

O-re chirungan mere Papar code Mhd 12 कहानी की समीक्षा-

रघु का दृष्टिकोण –

रघु एक बिन माँ का बच्चा है जिसे हर वक्त अपनी माँ की याद सताती रहती है। जब रघु की मौसी उसे लेने उसके घर आई तो वह चाहता था कि मौसी के अन्दर से भी वैसी ही धुएँ की महक आएँ जैसे उसकी माँ के अन्दर से आती थी लेकिन मौसी के अन्दर से खुशबू आती है।

रघु की माँ साँवली थी लेकिन मौसी गोरी है।

रघु की मौसी रघु से उसकी माँ से भी ज्यादा प्यार करती है। रघु की माँ रघु को नहीं नहलाती थी लेकिन रघु की मौसी अपनी सारी ममता रघु पर उड़ेल देती है। उसे अपने हाथों से नहलाती है। रघु यहाँ भी मौसी की तुलना माँ से करता है।

मौसी के गाँव में रघु के साथ खेलने वाला कोई नहीं था जिक कारण रघु की मौसी उसके साथ खेलती है। जान-बूझ कर रघु से हार जाती और रघु को गोद में उठाकर लाड़ करती है।

रघु की मौसी का दृष्टिकोण –

मौसी की अपनी कोई संतान नहीं है परिणाम स्वरूप वह अपने जीवन में खालीपन महसूस करती है। अपनी सारी ममता रघु पर न्यौछावर कर देती है। इस कहानी में मौसी के माता ना बन पाने के लिये उसे शारीरिक या समाजिक प्रताड़ना देते नहीं दर्शाया गया है।

माँ ना बन पाने का दुख मौसी को मानसिक रूप से बहुत है। सारी सुविधाएँ मौसी के पास हैं लेकिन सुख की कमी है जिसका कारण उसका माँ ना बन पाना है। रघु में वह अपनी संतान देखती है और रघु के आने से बहुत खुश है लेकिन उसे हमेशा यह डर रहता है कि वह एक दिन अपने घर चला जायेगा। अंत में यही हुआ भी जिक कारण मौसी बहुत दुखी और उदास हो जाती है।


By Sunaina

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ओरे चुरुंगन मेरे | O-re chirungan mere Papar code Mhd 12

ओरे चुरुंगन मेरे कहानी का निष्कर्ष

कहानी के परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि माँ के अतरिक्त चाहे वह जान देने वाली मौसी ही क्यों न हो वह चाहें कितना ही लाड़ करे। सारू सुख सुविधाएँ दे लेकिन अपनी माता का स्थान नहीं ले सकती हैं।

अकसर देखा गया है कि (कहानी के अनुसार भी) पति की मृत्यु के बाद पत्नी अपना पूरा जीवन बिना किसी दूसरी शादी के गुज़ार देती है। लेकिन वही पति अपनी पत्नी के स्वर्गवास के बाद अपना जीवन बिना जीवन साथी के नहीं गुजार सकता है।

बिना संतान के स्त्री पहले ही बहुत दुखी या नकारात्मक विचारों से ग्रसित हो जाती है। उससे सहानुभुति रखने के स्थान पर परिवार व समाज उसे ही इसका दोषी मानता है।  

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