लाख की चूडियाँ Study Material, NCRT Class – 8,
कामतानाथ का परिचय (Introduction to Kamatanath)
कामतानाथ जी का जन्म 22 सितम्बर 1934 को लखनऊ मैं हुआ था। कामतानाथ जी की मृत्यु 7 दिसंबर 2012 को लखनऊ में ही हुई थी। वर्तमान में कामतानाथ जी की लिखी कहानी लाख की चूड़ियाँ कक्षा 8 के पाठ्यक्रम में लगाई गई है।
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लाख की चूडियाँ कहानी की भूमिका (Laakh kee choodiyaan story introduction)
वर्तमान में प्रत्येक व्यक्ति अपने काम सरल करने के लिए मशीन का सहारा लेता है। इसका कारण यह है कि मशीन से काम जल्दी होता है, बिना ज़्यादा मेहनत किए होता है। खेती से संबन्धित जो काम महिलाएँ पहले हाथ से किया करती थीं अब वह काम मशीन से लिया जाता है। जैसे खेत की जुताई, खेत बोना, फसल तैयार होने के बाद पौधे से दाने अलग करना आदि। मशीन का सहारा लेने से इंसान का काम और मेहनत तो कम हो गई है, लेकिन इसका एक नकारात्म पक्ष भी है। कुछ क्षेत्र में तो मशीन से काम लेना सही है, लेकिन कुछ क्षेत्र में मशीनों ने इंसान को कमज़ोर भी कर दिया है।
शारीरिक मेहनत करने वाला व्यक्ति अब खुद कम मेहनत करता है परिणाम स्वरूप वह शारीरिक रूप से कमज़ोर हो गया है। दिमाग से काम करने वाला व्यक्ति मानसिक रूप से पहले जितना सक्षम नहीं रह गया क्योंकि जो काम वह अपना दिमाग लगाकर 2 घंटे में करता था, वह काम मशीने कुछ मिनट में ही कर देती हैं। बैंक या बड़ी-बड़ी कम्पनियों में कैल्कयुलेटर काम सरल तो करती हैं, लेकिन कैल्कयुलेटर का इस्तेमाल करने वाला व्यक्ति कैल्कयुलेटर पर इतना आश्रित हो गया है कि अपने घर के राशन का हिसाब भी वह बिना कैल्कयुलेटर के लगाना पसंद नहीं करता है।
मशीनों का एक और नकारात्मक स्वरूप है, मशीनें काम जल्दी तो कर देती हैं। लेकिन मशीनों द्वारा हुए काम में वह फिनिशिंग नहीं आती जो इंसान अपने हाथों से करता है। जिसकी एक झलक कामतानाथ द्वारा लिखी कहानी ‘लाख की चूडियाँ’ में नज़र आती है।
लाख की चूडियाँ कहानी का सारांश (Lakh Ki Chudiyan Summary of the Story)
इस कहानी के मुख्य किरदार लेखक और बदलू हैं। बदलू लेखक के ननिहाल में रहने वाला व्यक्ति है। लेखक जब छोटे थे और जब भी वह अपने मामा के यहाँ जाते तो बदलू से मिलने भी जाया करते थे। बदलू लाख की चूड़ियाँ बनाने वाला व्यक्ति है। लेखक बदलू को अन्य बच्चो की तरह बदलू काका ही बुलाया करते थे।
लेखक को बदलू इसलिए अच्छा लगता था क्योंकि वह लाख की छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर लेखक को खेलने के लिए देता था। आम की फसल होने पर आम भी खाने के लिए देता था। बदलू के द्वारा बनाई चुड़ियाँ पूरे गाँव की महिलाएँ पहनती थीं। बदलू ने कभी चूड़ियों के दाम नहीं माँगे। जिसका जो मन करता वह चूड़ियों के बदले दे जाता था जैसे – अनाज या अन्य सुविधाजनक वस्तु आदि। जब गाँव में किसी की शादी होती तो उनके घर में बदलू मोल-भाव करके ही चूड़ियाँ देता था, अर्थात बदलू शादी वाले घर में ही चूड़ियाँ बेचता था। बदलू को काँच की चूड़ियों से चिढ़ थी, वह जब भी किसी महिला के हाथों में काँच की चूड़ियाँ देख लेता था, तो वह चिढ़ जाता था।
लेखक के पिता का स्थानांतरण (Transfer) हो गया परिणाम स्वरूप कई सालो तक वे अपने मामा के यहाँ नहीं जा पाए। जब लगभग दस साल बाद लेखक गए तो देखा गाँव की लगभग सभी स्त्रियों के हाथों में काँच की चूड़ियाँ हैं।
एक दिन लेखक के मामा की बेटी फिसलकर गिर गई और उसके हाथ की काँच की चूड़ियाँ टूटकर लग गई। पट्टी कराने लेखक अपनी बहन के साथ गए, इस घटना के तुरंत बाद लेखक को बदलू की याद आ गई। परिणाम स्वरूप लेखक बदलू से मिलने गए। बदलू इतने साल बाद भी नीम के पेड़ के नीचे चारपाई बिछा कर लेटा था। बदलू काका अब बुढ़े हो गए थे, उन्हें खाँसी हो रही थी। बदलू ने लेखक को नहीं पहचाना परिणाम स्वरूप लेखक ने अपना स्पष्ट परिचय दिया।
बदलू की अर्थिक स्थिति बहुत बिगड़ चुकी थी। गाय को खिलाने की सुविधा न होने के कारण बदलू को अपनी गाय बेचनी पड़ी। बदलू ने लेखक से दुखी होकर कहा कि लाख की चुड़ियों से अधिक सुन्दर काँच की चुड़िया होती हैं। इतने में बदलू काका की बेटी आम ले आई। लेखक की नज़र रज्जो के कलाई पर गईं, जिसमें लाख की चूड़ियाँ सुन्दर लग रहीं थीं। बदलू ने लेखक को बताया की उसके हाथ से बना यह लाख की चूड़ियों का आखिरी जोड़ा है, जिसे ज़मीदार की बेटी के लिए बनाया था, लेकिन ज़मीदार इन चुड़ियों का सही दाम नहीं देना चाहता था, परिणाम स्वरूप बदलू ने ज़मीदार को यह चूड़ियाँ देने से इंकार कर दिया।
लाख की चूडियाँ कहानी की समीक्षा (Lakh Ki Chudiyan Kahani Review)
लाख की चूड़ियाँ कहानी के परिणाम स्वरूप यह कहा जा सकता है कि मशीनीयुग के कारण समाज का एक तबका ऐसा भी है जो बेरोज़गार हो गया है। बदलू का काम मशीनों के काम से बहुत अच्छा है, लेकिन फिर लोगों द्वारा उसकी बनाई चूड़ियों के स्थान पर काँच की चूड़िया पसंद की जा रही है, परिणाम स्वरूप बदलू अब बेरोज़गार हो गया है।
मशीनों से कम समय में ज़्यादा समान बनाया जा सकता है, परिणाम स्वरूप मशीनों से बना समान सस्ता होता है। वहीं हाथ से किए गए काम में समय लगता है और एक समय में एक ही समान तैयार हो सकता है। समय और मेहनत अधिक लगने के कारण हाथों से बने समान की किमत ज़्यादा होती है।
बदलू बेरोज़गार जरूर हो गया है, लेकिन उसने इन हलातो से समझौता नहीं किया है। इसका पता इसी बात से चलता है, वह ज़मीदार को कम दामो में चूड़ियाँ देने से इंकार कर देता है।
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