कहानी का परिचय (Introduction to the story)
समाज के लगभग सभी माता-पिता की एक ही इच्छा होती है, कि उसकी संतान हमेशा खुश रहे उसे कभी कोई तकलीफ न हो। खासतौर से जब वह संतान बेटी हो, तो माता-पिता की चिंता और बढ़ जाती है। प्रत्येक माता-पिता अपनी संतान को बेहतर भविष्य देने का हर संभव प्रयास करते हैं। विशेष रूप से बेटी के लिए एक लायक वर की तलाश करते हैं, साथ ही अपने जीवन की कमाई उसकी शादी में लगा देते हैं। जो अपने लिए कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाते वह अपनी संतान के लिए कर्जों में डूब जाते हैं।
ऐसी स्थिति में यदि किसी बेटी का पिता न हो तो उसकी माँ के लिए यह सारे काम और भी कष्टदायक हो जाते हैं, इतना सब करने के बाद भी जब बेटी को ससुराल में सुख न मिले और वह अपनी ज़िन्दगी खत्म करने पर मजबूर हो जाए तो उस बेटी की माँ की क्या दशा होगी विचार कीजिए।
हम बात कर रहे हैं, ऐसी ही कहानी की कहानी का नाम है, शांति इसे प्रेमचंद द्वारा लिखा गया है।
शांति कहानी का सारांश (Summary of Shanti story written by Premchand)
यह कहानी मैं शैली में लिखी गई है। मैं और स्वर्गीय देवनाथ मित्र थे, देवनाथ की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी गोपा और बेटी सुन्नी अकेले रह गए। पति के न होने से घर की सारी ज़िम्मेदारियों का भार गोपा पर आ गया। मैं पात्र कभी-कभी गोपा और उसकी बेटी का हाल-चाल पता करने दिल्ली उनके घर जाया करता है।
घर का खर्च चलाने के लिए गोपा ने अपने घर में किराएदार रख लिया। इसके बाद मैं पात्र विदेश चला गया। दो साल बाद विदेश से लौटकर मैं पात्र गोपा के घर पहुँचा तो पता चला गोपा की स्थिति बहुत बिगड़ चुकी है। जो किराएदार उन्होंने रखा था, वह खाली कर गया। उसकी अर्थिक स्थिति इतनी बिगड़ गई की उसका असर उसके स्वास्थ्य पर दिखने लगा। गोपा अपनी आयु से अधिक दिखने लगी।
अब गोपा की एक ही चिन्ता है, कि उसकी बेटी सुन्नी का एक अच्छे घर में विवाह हो जाए। जिसके लिए उसने मदारीलाल के बेटे से अपनी शादी करने का फैसला किया। मैं पात्र को यह रिश्ता कुछ खास अच्छा तो नहीं लगा लेकिन गोपा की बातों को वह विरोध नहीं कर सका। मदारीलाल पहले इंजीनियर थे, अब पेंशन पाते हैं, साथ ही वह बहुत लालची प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं।
गोपा ने पूरे चार महीने अपनी बेटी की शादी की तैयारी की। जून में उसका विवाह भी हो गया। सर्दियों में मैं पात्र जब दोबारा दिल्ली आया तो पता चला सुन्नी खुश नहीं है। सुन्नी का पति निकम्मा निकल, उसका चरित्र भी अच्छा नहीं है। वह अपनी पत्नी के स्थान पर अन्य स्त्रियों से रिश्ता रखता है।
सुन्नी कहती है, मैं आत्मसमर्पण के बदले आत्मसमर्पण चाहती हूँ। परिणाम स्वरूप उसके और उसके पति के रिश्ते सहज नहीं हो पाते हैं। सुन्नी के पति का केदारनाथ नाम है, मैं पात्र सुन्नी के दुखी होने की खबर सुनकर उनके घर जाता है। वह मदारीलाल और केदारनाथ दोनों से मिलता है, लेकिन सुन्नी की कोई सहायता नहीं कर पाता। सुन्नी इस विषय में मैं पात्र से किसी भी प्रकार की बात नहीं करना चाहती है। वह कलाई में सिर्फ दो चूड़ियाँ और उजली (सफेद) साडी पहनती है।
मदारीलाल का कहना है, कि उसका बेटा उसके हाथ से निकल गया है। मुफ्त का धन मिल रहा है, तो वह अपनी कोई ज़िम्मेदारी समझता ही नहीं है। उसे ड्रामा (अभिनय) खेलने का शौक है, साथ वह कुछ अनैतिक संबन्ध भी रखता है। सुन्नी की सहायता की नकाम कोशिश करने के बाद मैं पात्र दिल्ली से लौट जाता है।
मई में मैं पात्र फिर से दिल्ली आता है, तो पता चलता है कि केदारनाथ एकट्रेस के साथ भाग गया है। जिसका दोष घर वाले सुन्नी को ही देते हैं। सुन्नी मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत हताश हो जाती है, अपने जीवन से। केदारनाथ अपने पिता के नकली दस्तख़त करके बहुत सारे रूपए भी ले जाता है। मैं पात्र सुन्नी को लेने उसके ससुराल गया तो पता चला उसने आत्महत्या कर ली है।
वह वापस आया तो यह सोच कर दुखी था कि यह बात गोपा को कैसे बताएँ, लेकिन गोपा को पहले ही पता चल चुका था। उसकी बेटी ने आत्महत्या कर ली है, वह अपनी बेटी को आखिरी बार देखने नहीं जाती है। मैं पात्र यह सोच कर हैरान हो जाता है कि वह इतनी शांत कैसे है। गोपा कहती है, मैं रोऊँगी नहीं। मैं पात्र यह देखकर बहुत चिंतित है, और सोचता है, संदेह करता है कि “शांति अपार व्यथा का रूप तो नहीं है”। इसी के साथ कहानी दुखद अंत के साथ समाप्त हो जाती है।
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