Class – 11 पत्रकारिता के विविध आयाम (भाग-2) | Various Dimensions of Journalism (Part-2)

पत्रकारिता के विविध आयाम अध्याय – 2 का सारांश (भाग-2) | Summary of Chapter 2 Various Dimensions of Journalism (Part-2) कक्षा – 11 अभिव्यक्ति और माध्यम

पत्रकारिता के विविध आयाम (भाग – 1)

संपादन (Editing)

संपादन का अर्थ है किसी सामग्री से उनकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाना। समाचार संगठनों में द्वारपाल की भूमिका संपादक और सहायक संपादक, समाचार संपादक, मुख्य उपसंपादक और उपसंपादक आदि निभाते हैं। संवाददाताओं और अन्य स्रोतों से प्राप्त समाचारों के चयन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं बल्कि उनकी प्रस्तुति की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं पर होती है। समाचार संगठनों में समाचारों के संकलन का कार्य जहाँ रिपोर्टिंग की टीम करती है, वहीं उन्हें संपादित कर लगों तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी संपादकीय टीम पर होती है।

संपादन के सिद्धांत (Principles of Editing)

पत्रकारिता कुछ सिद्धांतो पर चलती है। एक पत्रकार से अपेक्षा की जाती है कि वह समाचार संकलन और लेखन के दौरान इनका पालन करेगा। नियमों का पालन करके ही एक पत्रकार और उसका समाचार संगठन अपने पाठकों का विश्वास जीत सकता है। किसी भी समाचार संगठन की सफलता उसकी विश्वसनीयता पर टिकी होती है। पत्रकारिता की साख बनाए रखने के लिए निम्नलिखित सिद्धांतों का पालन करना ज़रूरी है-

तथ्यों की शुद्धता या तथ्यपरकता (एक्युरेसी) (accuracy of facts)

एक आदर्श रूप में मीडिया और पत्रकारिता यथार्थ या वास्तविकता का प्रतिबिंब है। मानव यथार्थ की नहीं, यथार्थ की छवियों की दुनिया में रहता है। किसी भी घटना के बारे में हमें जो भी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं, उसी के अनुसार हम उस यर्थार्थ की एक छवि अपने मस्तिष्क में बना लेते हैं और यही छवि हमारे लिए वास्तविक यथार्थ का काम करती है। एक तरह से हम संचार माध्यमों द्वारा सृजित छवियों की दुनिया में रहते हैं। तथ्य अपने आप में तो सत्य होते हैं लेकिन अगर किसी के संदर्भ में उनका प्रयोग किया जा रहा हो तो उनका पूरे विषय के संदर्भ में प्रतिनिधित्वपूर्ण होना या कई तथ्यों को मिलाकर देखना आवश्यक है। उस स्थिति में तथ्य यथार्थ की सही तसवीर प्रस्तुत करते हैं।

‘पत्रकारिता में अपना करियर बनाएये’ पुस्तक खरीदने के लिए क्लिक करें।

वस्तुपरकता (ऑब्जेक्टीविटी) (Objectivity)

वस्तुपरकता को भी तथ्यपरकता से आँकना आवश्यक है। वस्तुपरकता और तथ्यपरकता के बीच काफ़ी समानता भी है। तथ्यपरकता का संबंध जहाँ अधिकाधिक तथ्यों से है वहीं वस्तुपरकता का संबंध इस बात से है कि कोई व्यक्ति तथ्यों को कैसे देखता है? किसी विषय या मुद्दे के बारे में हमारे मस्तिष्क में पहले से बनी हुई छवियाँ समाचार मूल्यांकन की हमारी क्षमता को प्रभावित करती हैं और हम इस यथार्थ को उन छवियों के अनुरूप का प्रयास करते हैं।

वस्तुपरकता की अवधारणा का संबंध हमारे सामाजिक-सांस्कृतिक, आर्थिक मूल्यों से अधिक है। दुनिया हमेशा सतरंगी और विविध रहेगी। इसे देखने के दृष्टिकोण भी अनेक होंगे। कोई भी समाचार सबके लिए एक सात वस्तुपरक नहीं हो सकता। एक पत्रकार को जहाँ तक संभव हो, अपने लेखन में वस्तुपरकता का ध्यान ज़रूर रखना चाहिए।

निष्पक्षता (फ़ेयरनेस) (fairness)

एक पत्रकार के लिए निष्पक्ष होना भी बहुत ज़रूरी है। उसकी निष्पक्षता से ही उसके सामाचार संगठन की साख बनती है। पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है। राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन में अहम भूमिका है। निष्पक्षता का अर्थ तटस्थता नहीं है। पत्रकारिता सही और गलत, अन्याय औऱ न्याय जैसे मसलों के बीच तटस्थ नहीं हो सकती बल्कि वह निष्पक्ष होते हुए भी सही और न्याय के साथ होती है।

समाचारों में निषपक्षता के न्यासंगत होने के तत्व अधिक अहम होते हैं। मीडिया एक बहुत बड़ी ताकत है। एक ही झटके में वह किसी की इज़्ज़त पर बट्टा लगाने की ताकत रखती है। परिणाम स्वरूप समाचार लिखते वक्त विशेष ध्यान रखना चाहिए।

संतुलन (बैलेंस) (Balance)

निष्पक्षता की अगली कड़ी संतुलन है। आमतौर पर मीडिया पर आरोप लगाया जाता है कि समाचार कवरेज संतुलित नहीं है यानी वह किसी एक पक्ष की ओर झुका है। समाचार में संतुलन का महत्व तब कहीं अधिक हो जाता है जब किसी पर किसी तरह के आरोप लगाए गए हों या इससे मिलती-जुलती कोई स्थिति हो। उस स्थिति में हर पक्ष की बात समाचार में आनी चाहिए अन्यथा यह एकतरफ़ा चरित्र हनन का हथियार बन सकता है।

यह तभी संभव हो सकती है जब आरोपित व्यक्ति सार्वजनिक जीवन में हो और आरोपों के पक्ष में पक्के सबूत नहीं हों या उनका सही साबित होना काफ़ी संदिग्ध हो। घोषित अपराधियों या गंभीर अपराध के आरोपियों को संतुलन के नाम पर सफ़ाई देने का अवसर देने की ज़रूरत नहीं है। संतुलन का सिद्धांत अनेक सार्वजनिक मसलों पर व्यक्त किए जाने वाले विचारों और दृष्टिकोणों पर तकनीकी ढंग से लागू नहीं किया जाना चाहिए।

समाचार में शामिल की गई सूचना और जानकारी का कोई स्रोत होना आवश्यक है। समाचार संगठन के स्रोत होतो हैं और फिर उस समाचार संगठन का पत्रकार जब सूचनाएँ एकत्रित करता है तो उसके अपने भी स्रोत होते हैं। दैनिक समाचारपत्र के लिए पीटीआई (भाषा) यूएनआई (यूनीवार्ता) जैसी समाचार एजेंसियाँ और स्वयं अपने ही संवाददाताओं और रिपोर्टरों का तंत्र समाचारों का स्रोत होता है। समाचार एजेंसी हो या समाचारपत्र, इनमें काम करने वाले पत्रकारों के भी अपने समाचार स्रोत होते हैं।

स्रोत (Source)

आवश्यक है, शामिल की गई सूचना या जानकारी का कोई स्रोत इस तरह की सूचना या जानकारी देने का अधिकार रखता हो और समर्थ हो। कोई सूचना ‘सामान्य’ होने के दायरे से बाहर निकलकर ‘विशिष्ट’ होती है उसके स्रोत का उल्लेख आवश्यक हो जाता है। जिस सूचना का कोई स्रोत नहीं है, उसका स्रोत या तो पत्रकार स्वयं है या फिर यह एक सामान्य जानकारी है।

यदि पत्रकार स्वयं अपनी आँखों से पुलिस फ़ायरिंग में या अन्य किसी भी तरह की हिंसा में मरने वाले दस लोगों के शव देखता है तो निश्चय ही वह खुद दस लोगों के मरने के समाचार का स्रोत हो सकता है। आमतौर पर पत्रकार स्वयं किसी सूचना का प्रारंभिक स्रोत नहीं होता है।

पत्रकारिता के अन्य आयाम (Other Dimensions of Journalism)

समाचारपत्र पढ़ते समय पाठक हर समाचार से एक ही तरह की जानकारी की अपेक्षा नहीं रखता। कुछ मामले में वह विवरण विस्तार से पढ़ना चाहता है। घटना की पृष्ठभूमि क्या है?  घटना का जीवन तथा समाज किस तरह प्रभावित होगा? समय, विषय और घटना के अनुसार पत्रकारिता में लेखन के तरीके बदल जाते हैं। यही बदलाव पत्रकारिता में कई नए आयाम जोड़ता है। समाचार के अलावा विचार, टिप्पणी, संपादकीय, फ़ोटो और कार्टून पत्रकारिता के अहम हिस्से हैं।  

संपादकीय पृष्ठ को समाचारपत्र का सबसे महत्वपूर्ण पृष्ठ माना जाता है। इस पृष्ठ पर अखबार विभिन्न घटनाओं और समाचारों पर अपनी राय रखता है। इसे संपादकीय कहा जाता है।

फ़ोटो पत्रकारिता ने छपाई की टेक्नॉलोजी विकसित होने के साथ ही समाचारपत्रों में अहम स्थान बना लिया है। जो बात हज़ार शब्दों में लिखकर नहीं कही जा सकती है वह एक तसवीर कह देती है। फ़ोटो टिप्पणियों का असर व्यापक और सीधा होता है।

कार्टून कोना लगभग हर समाचारपत्र में होता है और उनके माध्यम से की गई सटीक टिप्पणियाँ पाठक को छूती हैं। कार्टून पहले पन्ने पर प्रकाशित होने वाले हस्ताक्षरित संपादकीय हैं।

रेखांकन और कार्टोग्राफ़ समाचारों को न केवल रोचक बनाते हैं बल्कि उन पर टिप्पणी भी करते हैं। कार्टोग्राफ़ी का उपयोग समाचारपत्रों के अलावा टेलीविज़न में भी होता है।

पत्रकारिता के कुछ प्रमुख प्रकार (Some Major Types of Journalism)

खोजपरक पत्रकारिता (Investigative Journalism)

खोजपरक पत्रकारिता से आशय ऐसी पत्रकारिता से है जिसमें गहराई से छान-बीन करके ऐसे तथ्यों और सूचनाओं को सामने लाने की कोशिश की जाती है जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जा रहा हो। खोजी पत्रकारिता सार्वजनिक महत्व के मामलों में भ्रष्टाचार, अनियमितताओं और गड़बड़ियों को सामने लाने की कोशिश करती है। खोजी पत्रकारिता का ही एक नया रूप टेलीविज़न में स्टिंग ऑपरेशन के रूप में सामने आया है।

विशेषीकृत पत्रकारिता (Specialized Journalism)

पत्रकारिता का अर्थ घटनाओं की सूचना देना मात्र नहीं है। पत्रकार से अपेक्षा होती है कि वह घटनाओं की तह तक जाकर उसका अर्थ स्पष्ट करे और आम पाठक को बताए कि उस समाचार का क्या महत्व है?  इनमें संसदीय पत्रकारिता, न्यायालय पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, विज्ञान और विकास पत्रकारिता, अपराध पत्रकारिता तथा फ़ैशन और फ़िल्म पत्रकारिता शामिल हैं। क्षेत्रों के समाचार और उनकी व्याख्या उन विषयों में विशेषता हासिल किए बिना देना कठिन होता है।

वॉचडॉग पत्रकारिता (Watchdog Journalism)

माना जाता है कि लोकतंत्र में पत्रकारिता और समाचार मीडिया का मुख्य उत्तरदायित्व सरकार के कामकाज पर निगाह रखना है और कहीं भी कोई गड़बड़ी हो तो उसका परदाफ़ाश करना है। इसे परंपरागत रूप से वॉचडॉग पत्रकारिता कहा जाता है। दूसरा छोर सरकारी सूत्रों पर आधारित पत्रकारिता है। समाचार मीडिया केवल वही समाचार देता है जो सरकार चाहती है और अपने आलोचनात्मक पक्ष का परित्याग कर देता है।

एडवोकेसी पत्रकारिता (Advocacy Journalism)

अनेक समाचार संगठन होते हैं जो किसी विचारधारा या किसी खास उद्देश्य या मुद्दे को उठाकर आगे बढ़ते हैं और उस विचारधारा या उद्देश्य या मुद्दे के पक्ष में जनमत बनाने के लिए लगातार और ज़ोर-शोर से अभियान चलाते हैं। इस पत्रकारिता को पक्षधर या एडवोकेसी पत्रकारिता कहा जाता है। उदाहरण के लिए जेसिका लालल हत्याकांड में न्याय के लिए समाचार माध्यमों ने सक्रिय अभियान चलाया।

वैकल्पिक पत्रकारिता (Alternative Journalism)

मीडिया स्थापित राजनीतिक-सामाजिक व्यवस्था का ही एक हिस्सा है और व्यवस्था के साथ तालमेल बिठाकर चलने वाले मीडिया को मुख्यधारा का मीडिया कहा जाता है। जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प को सामने लाने और उसके अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करता है उसे वैकल्पिक पत्रकारिता कहा जाता है। इस तरह के मीडिया को सरकार और बड़ी पूँजी का समर्थन हासिल नहीं होता है। कंपनियों के विज्ञापन भी नहीं मिलते हैं और वह अपने पाठकों के सहयोग पर निर्भर होता है।

समाचार माध्यमों में मौजूदा रुझान (Current Trends in News Media)

देश में मध्यम वर्ग के तेज़ी से विस्तार के साथ ही मीडिया के दायरे में आने वाले लोगों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है। रेडियो, टेलीविज़न, समाचारपत्र, सेटेलाइट टेलीविज़न और इंटरनेट सभी विस्तार के रास्ते पर हैं। मीडिया का व्यापारीकरण भी तेज़ हो गया है और मुनाफ़ा कमाने को ही मुख्य ध्येय समझने वाले पूँजीवादी वर्ग ने भी मीडिया के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रवेश किया है।

व्यापारीकरण और बाज़ार होड़ के कारण हाल के वर्षों में समाचार मीडिया ने अपने खास बाज़ार (क्लास मार्केट) को आम बाज़ार (मास मार्केट) में तब्दील करने की कोशिश की है। समाचार के नाम पर मनोरंजन बेचने के इस रुझान के कारण आज समाचारों में वास्तविक और सरोकारीय सूचनाओं और जानकारियों का अभाव होता जा रहा है।

यह नहीं कहा जा सकता कि समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा लोगों को ‘जानकार नागरिक’  बनाने में मदद कर रहा है बल्कि अधिकांश मौकों पर यही लगता है कि लोग ‘गुमराह उपभोक्ता’ अधिक बन रहे हैं। एक-आध चैनल को छोड़कर अधिकांश सूचनारंजन (इन्फ़ोटेनमेंट) के चैनल बनकर रह गए हैं। वर्तमान में समाचार मीडिया का एक बड़ा हिस्सा एक ऐसा उद्योग बन गया है जिसका मकसद अधिकतम मुनाफ़ा कमाना है।

वास्तविक समाचारीय घटनाओं की उपेक्षा होने लगी है जो उपभोक्ता के भीतर ही बसने वाले नागरिक की वास्तविक सूचना आवश्यकताएँ थीं और जिनके बारे में जानना उसके लिए आवश्यक है। समाचार मीडिया में हमेशा से ही सनसनीखेज़ या पीत-पत्रकारिता और पज-थ्री पत्रकारिता की धाराएँ मौजूद रही हैं।

यह स्थिति हमारे लोकतंत्र के लिए एक गंभीर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संकट पैदा कर रही है। अनेक समाचार चैनल हैं, सर्फ़ करते रहिए, बदलते रहिए और एक ही तरह के समाचारों को एक ही तरह से प्रस्तुत होते देखते रहिए। नई प्रौद्योगिकी आने के बाद पहले तो क्षेत्रीय अखबारों ने ज़िला और तहसील स्तर के प्रेस को हड़प लिया और अब राष्ट्रीय प्रेस क्षेत्रीय पाठकों में अपनी पैठ बना रहा है और क्षेत्रीय प्रेस राष्ट्रीय रूप अख्तियार कर रहा है।

साख और प्रभाव समाचार मीडिया की सबसे बड़ी ताकत होती है। वर्तमान समाचार मीडिया की साख में तेज़ी से ह्रास हो रहा है और उसके साथ ही लोगों की सोच को प्रभावित करने की इसकी क्षमता भी कुंठित हो रही है। समाचारों को उनके न्यायोचित और स्वाभाविक स्थान पर बहाल करके ही समाचार मीडिया की साख और प्रभाव के ह्रास की प्रक्रिया को रोका जा सकता है।

By Sunaina

साहित्यिक लेख पढ़े

साहित्यिक विडिओ

Leave a Comment