कार्यालयी लेखन और प्रक्रिया | Office Writing and Procedure

Class 11 – अभिव्यक्ति और माध्यम | Expression and Media

सरकारी पत्र लिखने का तरीका (How to Write Official Letter)

  • सरकारी पत्र औपचारिक पत्र की श्रेणी में आते हैं।
  • प्राय: ये पत्र एक कार्यालय, विभाग अथवा मंत्रालय से दुसरे कार्यालय, विभाग या मंत्रालय, को लिखे जाते हैं।
  • पत्र के शीर्ष पर कार्यालय, विभाग या मंत्रालय का नाम व पता लिखा जाता है।
  • पत्र के बाईं तरफ फ़ाइल संख्या लिखी जाती है जिससे यह स्पष्ट हो सके कि पत्र किस विभाग द्वारा किस विषय के तहत कब लिखा जा रहा है।
  • जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसका नाम, पता आदि बाई तरफ़ लिखा जाता है। कई बार अधिकारी का नाम भी दिया जाता है।
  • ‘सेवा में’ का प्रयोग धीरे-धीरे कम हो रहा है।
  • विषय शीर्षक के अंतर्गत संक्षेप में यह लिखा जाता है कि पत्र किस प्रयोजन के लिए या किस संदर्भ में लिखा जा रहा है।
  • विषय के बाद बाईं तरफ़ महोदय संबोधन लिखा जाता है।
  • पत्र की भाषा सरल एवं सहज होनी चाहिए। क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए।
  • अनेक बार सटीक अर्थ प्रेषित करने के लिए प्रशासनिक शब्दावली का प्रयोग करना ही उचित होता है।
  • इस पत्र के बाईं ओर प्रेषित करने के लिए प्रशासनिक शब्दावली का प्रयोग करना ही उचित होता है।
  • इस पत्र के बाईं ओर प्रेषक का पता और तारीख दी जाती है।
  • पत्र के अंत में भवदीय शब्द का प्रयोग अधोलेख के रूप में होता है।
    भवदीय के नीचे पत्र भेजने वाले के हस्ताक्षर होते हैं। हस्ताक्षर के नीचे कोष्ठक में पत्र लिखने वाले का नाम मुद्रित होता है। नाम के नीचे पदनाम लिखा जाता है।

सरकारी पत्र में टिप्पण (नोटिंग) (Noting in Official Letter)

  • किसी भी विचाराधीन पत्र अथवा प्रकरण को निपटाने के लिए उस पर जो राय, मंतव्य. आदेश अथवा निर्देश दिया जाता है वह टिप्पणी कहलाती है।
  • टिप्पणी शब्द अंग्रेजी के नोटिंग शब्द के अर्थ में प्रयुक्त होता है। टिप्पणी लिखने की प्रक्रिया को हम टिप्पण यानी नोटिंग कहते हैं।
  • टिप्पणी का उद्देश्य उन तथ्यों को स्पष्ट तथा तर्कसंगत रूप से प्रस्तुत करना है जिन पर निर्णय लिया जाना है। साथ ही उन बातों की ओर भी संकेत करना है जिनके आधार पर उक्त निर्णय संभवतः लिया जा सकता है।
  • टिप्पण का उद्देश्य मामलों को नियमानुसार निपटाना है।
  • टिप्पण मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं – सहायक स्तर पर टिप्पण तथा अधिकारी स्तर पर टिप्पण।
  • कार्यालय में टिप्पण कार्य अधिकतर सहायक स्तर पर होता है।
  • इसे आरंभिक टिप्पण या मुख्य टिप्पण कहते हैं जिसमें सहायक विचाराधीन मामले का संक्षिप्त ब्योरा देते हुए उसका विवेचन करता है।
  • इस प्रकार के टिप्पण में सबसे मूल पत्र या आवती में दिए गए विवरण या तथ्य का सार दिया जाता है।
  • फिर निहित प्रस्ताव की व्याख्या की जाती है और संबंधित नियमों-विनियमों का हवाला देते हुए अपनी राय दी जाती है।
  • टिप्पणी लिखने के बाद सहायक अधिकारी दाहिनी ओर अपने हस्ताक्षर कर उसे अपने अधिकार को प्रस्तुत किया जाना है उसका पदनाम वहाँ बाईं ओर लिखा जाता है।
  • टिप्पणी लिखने से पूर्व सहायक के लिए संबंधित विषय को समझना बहुत आवश्यक होता है।
  • टिप्पणी अपने आप में पूर्ण एवं स्पष्ट होनी चाहिए। इसमें असली मुद्दे पर अधिक बल देना चाहिए।
  • टिप्पणी संक्षिप्त, विषय-संगत, तर्कसंगत और क्रमबद्ध होनी चाहिए।
  • टिप्पणकार को अपने विचार संतुलित एवं शिष्ट भाषा में देने चाहिए। इसमें व्यक्तिगत आक्षेप, उपदेश या पूर्वाग्रहों के लिए कोई स्थान नहीं होता।
  • टिप्पणी सदैव अन्य पुरुष में लिखी जाती है।
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आनुषंगिक टिप्पण (Incidental Note)

सहायक, आरंभिक या मुख्य टिप्पणी को जब संबंधित अधिकारी के पास भेजा जाता है तो वह अधिकारी टिप्पणी पढ़ने के बाद नीचे मंतव्य लिखता है। इसे आनुषंगिक टिप्पणी कहते हैं और यह क्रिया आनुषंगिक टिप्पण कहलाती है।

  • अगर अधिकारी अपने अधीनस्थ की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत है तो इस प्रकार की टिप्पणी की आवश्यकता नहीं होती। अधिकारी अधीनस्थ की टिप्पणी के नीचे या तो केवल हस्ताक्षर भर करता है या ‘मैं उपर्युक्त टिप्पणी से सहमत हूँ’ लिखता है।
  • यदि अधिकारी अपने अधिनस्थ की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत है मगर उसे और सशक्त एवं तर्कसंगत बनाने के लिए अपनी ओर से भी कुछ जोड़ना चाहता है तो वह अपना मंतव्य आनुषंगिक टिप्पणी के रूप में दर्ज कर देता है।
  • यदि अधिकारी पूर्णतः असहमत है या आंशिक रूप से सहमत है तो वह अपने तर्क और करणों के साथ अपनी आनुषंगिक टिप्पणी करता है।
  • अधिकारी को अधीनस्थ की टिप्पणी को काटने, बदलने या हटाने का अधिकार नहीं है। वह केवल अपनी सहमति, आंशिक सहमति या असहमति व्यक्त कर सकता है।
  • आनुषंगिक टिप्पणी प्रायः संक्षिप्त होती है लेकिन असहमति की स्थिति में कई बार इस प्रकार की टिप्पणी बड़ी भी हो सकती है।

अनुस्मारक (रिमाइंडर) सरकारी पत्र (Reminder Official Letter)

  • जब किसी पत्र, ज्ञापन इत्यादि का उत्तर समय पर प्राप्त नहीं होता तो याद दिलाने के लिए अनुस्मारक पत्र भेजा जाता है। इसे स्मरण पत्र भी कहते हैं।
  • इसका प्रारूप औपचारिक पत्र की तरह ही होता है मगर आकार छोटा होता है।
  • अनुस्मारक के शुरू में पूर्व पत्र का हवाला दिया जाता है।
  • जब एक से अधिक अनुस्मारक भेजे जाते हैं, तो पहले अनुस्मारक को अनुस्मारक-1, दूसरे को अनुस्मारक-2, तीसरे को अनुस्मारक-3 इत्यादि लिखते हैं।
  • औपचारिक-पत्र के विपरीत अर्ध-सरकारी पत्र में अनौपचारिकता का पुट होता है। इसमें एक मैत्री भाव होता है।
  • अर्ध-सरकारी पत्र तब लिखे जाते हैं जब लिखने वाला अधिकारी संबंधित अधिकारी को व्यक्तिगत स्तर पर जानता है।
  • ऐसा पत्र तब लिखा जाता है जब किसी खास मसले पर संबोधित अधिकारी का ध्यान व्यक्तिगत रूप से आकर्षित कराया जाता है या उसका व्यक्तिगत परामर्श लिया जाए।
  • पारूप में बाईं ओर शीर्ष पर प्रेषक का नाम होता है। इसके नीचे उसका पदनाम होता है।
  • अर्ध-सरकारी पत्र के लिए अमूमन कार्यालय के ‘लेटर हेड’ का प्रयोग होता है, अगर उपलब्ध हो।
  • पत्र के प्रारंभ में संबोधन के रूप में महोदय या प्रिय महोदय का प्रयोग नहीं होता। ऐसे पत्र में आमतौर पर प्रयोग किया जाने वाला संबोधन ‘प्रिय श्री’ या प्रियवर श्री हो सकता है।
  • पत्र के अंत में अधोलेख के रूप में दाहिनी ओर ‘भावदीय’ के स्थान पर ‘आपका’ प्रयोग किया जाता है।
  • अंत में बाईं ओर संबोधित अधिकारी का नाम, पदनाम और पूरा पता दिया जाता है।

टिप्पणी

अर्धसरकारी पत्र (डी.ओ. लेटर) (Demi Official Letter (D.O. Letter))

  • यह अपने स्वरूप में आरंभिक या मुख्य टिप्पणी से काफ़ी मिलती है।
  • चूँकि यह टिप्पणी फ़ाइल के ऊपर लिक कर स्वतंत्र रूप से भेजी जाती है अतः इसके लिए यह आवश्यक हो जाता है कि यह अपने आप में संपूर्ण हो और केवल इस टिप्पणी को पढ़ लेने भर से पूरा मसला समझ में आ जाए।
  • यदि आश्यक हो तो संदर्भ के लिए किसी पिछली टिप्पणी, पत्र, ज्ञापन इत्यादि को संलग्नक के रूप में टिप्पणी के साथ लगाया जा सकता है।
  • बोर्ड के पास भेजी जाने वाली स्वतः टिप्पणी मसले पर बोर्ड की स्वीकृति प्राप्त करने के लिए होती है। इसके लिए प्रारंभ में मसले की पृष्ठभूमि दी जाती है और उसेक विभिन्न पहलुओं का विवेचन किया जाता है। इसके बाद स्वीकृति क्यों दी जानी चाहिए उसके समर्थन में तर्क दिए जाते हैं। अंत में स्वीकृति प्रदान किए जाने का अनुरोध होता है।

कार्यसूची (Work Schedule)

किसी भी संस्था की औपचारिक बैठक की कार्यसूची उस बैठक में चर्चा के लिए निर्धारित विषयों की अग्रिम जानकारी देती है। इसमें बैठक के अनुशासित संचालन में सहायता मिलती है।

निर्धारित विषयों से संबंधित स्वतः स्पष्ट टिप्पणियाँ अपने संलग्नकों के साथ सदस्यों को कार्यसूची के साथ अग्रिम रूप से भेजी जानी चाहिए ताकि वे बैठक में पूरी तैयारी से आ सकें।

कार्यवृत्त (मिनिट्स) (Minutes)

  • कार्यसूची में रेखांकित कार्यों पर हुए विचार-विमर्श का संक्षिप्त विवरण कार्यवृत्त में प्रस्तुत किया जाता है।
  • इसमें क्रमशः उपस्थित लोगों की राय का पूरा विवरण दिया जाना चाहिए।
  • उपस्थित व्यक्तियों के नाम पदानुसार दिए जाने चाहिए।

प्रेस विज्ञप्ति (प्रेस रिलीज़) (Press Release (Press Release))

कोई संस्थान या व्यक्ति किसी विषय या किसी बैठक में जो निर्णय लेता है, उसे प्रेस विज्ञाप्ति के माध्यम से सर्वसामान्य तक पहुँचाया जाता है। निर्णय में विलंब का कारण और उससे होने वाले लाभ के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

परिपत्र (सर्कुलर) (Circular)

बैठक में लिए गए महत्वपूर्ण निर्णयों को कार्यान्वित करने के लिए परिपत्र जारी किया जाता है। जिस मुद्दे को लेकर पहला परिपत्र जारी किया जाता है उस मुद्दे पर होने वाला फ़ैसला भी परिपत्र के रूप में जारी किया जाता है जिसमें निर्णय को कार्यान्वित किए जाने के निर्देश होते हैं।

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