प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास कर्मभूमि का सारांश : अमरकान्त को माता का स्नेह रेणुका से प्राप्त होना | Summary of the Novel Karmabhoomi

प्रेमचन्द (कर्मभूमि भाग – 1 अध्याय – 5) Study Material: कर्मभूमि

कर्मभूमि अध्याय – 5 का परिचय (Introduction to Karmabhoomi Chapter – 5)

इस अध्याय में रेणुका के आने से अमरकान्त के जीवन में परिवर्तन आता है, अमरकान्त को माता का स्नेह रेणुका से प्राप्त होता है, परिणाम स्वरूप अमरकान्त व सुखदा के बीच भी नज़दीकी होने लगती है। छात्रों का संगठन गाँव की आर्थिक स्थिति की वास्तविकता जानने के लिए जाँच-पड़ताल के लिए एक गाँव जाता है जिसके बाद अमरकान्त को किसानों व मजदूरों की दयनीय स्थिति जानकर बहुत दुख होता है।  

कर्मभूमि अध्याय – 5 का सारांश (Summary of Karmabhoomi Chapter – 5)

अमरकान्त ने को माता का स्नेह बचपन से ही नहीं मिला था, लेकिन रेणुका देवी के आने से उसे माता के स्नेह का एहसास होने लगा था। रेणुका देवी अमरकान्त को अपने हाथों से कुछ न कुछ बना कर खिलाती रहती थी, अमरकान्त भी रेणुका की ममता भरे स्नेह का सुख प्राप्त करने लगा परिणाम स्वरूप अमरकान्त के मन में भी रेणुका देवी के लिए श्रद्धा जगृत होने लगी। अमरकान्त कॉलेज से लौटकर रेणुका के पास जाने लगा और रेणुका भी खाने की व्यवस्था करके अमरकान्त का इंतज़ार करती थी। अमरकान्त सुबह का नाश्ता भी रेणुका के पास करता, छुट्टी के दिन सारा दिन वह रेणुका के पास रहता, कभी-कभी पशु-पक्षियों की कीड़ा देखने के लिए नैना भी अमरकान्त के साथ चली जाती थी।

रेणुका के स्नेह के परिणाम स्वरूप सुखदा और अमरकान्त एक दूसरे के नज़दीक आने लगे। रेणुका कभी-कभी अमरकान्त को कुछ न कुछ रूपये दे देती थी। लगभग पांच-छः महीने में अमरकान्त रईसज़ादा लगने लगा। विलासिता का जीवन उसे पसंद आने लगा। ताश व चौसर में उसे आनन्द आने लगा, जलसों के प्रति उसका उत्साह बढ़ने लगा।

रेणुका रोज़-रोज़ की खबरें अमरकान्त से पढ़वाकर सुनती थी परिणाम स्वरूप अमरकान्त के राजनैतिक ज्ञान का विकास होने लगा। वह अपने नगर की काँग्रेस-कमेटी का मेम्बर बन गया और उसके कार्यक्रम में भाग लेने लगा।

कछु छात्र गाँवों की आर्थिक स्थिति की जाँच करने निकले परिणाम स्वरूप पता चला की किसानों की स्थिति बहुत खराब है। अनुमान यह था कि किसानों के घर अत्यधिक अनाज होगा लेकिन जाँच पड़ताल के बाद पता चला की किसी भी घर में अनाज का एक मटका भी नहीं था। अमरकान्त का कहना था कि महाजन व अमले ग़रीबों को चुसते हैं। एक किसान का घर तो ऐसा था जिसमें व्यक्ति छः महीने से बीमार है लेकिन दवा के नहीं ली क्योंकि दवा के लिए पैसे नहीं हैं। छात्रों के साथ अध्यापक डा. शान्तिकुमार भी छात्रोंके साथ थे जिन्हें इस कार्य का लिडर बनाया गया था, उनकी आयु लगभग पैंतीस साल की थी। वे आक्सफोर्ड से पढ़ाई करके आए थे, गुप्त रूप से वे राजनैतिक आन्दोलनों में भाग लेते थे।

अचानक अरहर के खेत से औरत की चीत्कार सुनाई दी परिणाम स्वरूप छात्र व शान्तिकुमार उस ओर गए। खेत से कुछ दूर पर ही (मजदूर) लगभग दस-बारह स्त्री-पुरूष आपस में बात कर रहे थे। छात्र उस तरफ गए तो गोरे सैनिक ने कहा – भाग जाओ, नही हम ठोकर मारेगा। छात्रों को पूरी परिस्थिति स्पष्ट समझ में आ गई। परिणाम स्वरूप छात्रों व गोरे सैनिक के बीच झगड़ा हुआ और गोरे सैनिक ने डाक्टर शान्तिकुमार रिवालवर निकालकर दाग दिया। छात्र शान्तिकुमार को सभालने लगे। यह देखकर मजदूरों को भी जोश आ गया, सब के सब अपनी लकड़ियाँ सँभालकर गोरे पर दौड़े। गोरे ने रिवाल्वर दागी पर निशाना खाली गया। मजदूरों ने एक साथ गोरे पर डंडो से पीटना शुरू किया परिणाम स्वरूप वह सैनिक भी गिर पड़ा। डॉक्टर साहब की जाँघ में जख्म था, जिसका प्रथमिक उपचार छात्रों ने कर दिया था।

उसी वक्त एक महिला खेत से निकली और मुँह छिपाये, लंगड़ाती, कपड़े सँभालती एक तरफ़ चल पड़ी। लेखक ने लिखा है – दुष्टों को मार डालो, इससे न्याय बुद्धि को सन्तोष मिलेगा लेकिन उस स्त्री की जो चीज़ गयी वह गयी। सारे संसार की सहानुभूति उसके किस काम की है। सलीम ने उन तीनों सैनिको को फिर से पीटना शुरू कर दिया। फिर मजदूरों से कहा तुम्हारे सामने यह सब होता रहा और तुम में इतनी हिम्मत नहीं है की बहू बेटियों की आबरू की हिफ़ाज़त भी नहीं कर सकते?

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पास के गाँव से बैलगाड़ी मँगाई गई और डॉक्टर साहब को उस पर लेटाकर चलने लगे तो डॉक्टर ने कहा इन तीनों आदमी को यही छोड़ जाओगे? डॉक्टर के बहुत समझाने पर सलीम उन तीनों को ले जाने को राज़ी हो गया। गोरों को पुलिस के चार्ज में देकर छात्र व डॉक्टर खुद गाड़ी में बैठकर चले गए। सलीम और अमरकान्त ज़रा देर में हँसने बोलने लगे और इस घटना का ज़िक्र हर उस व्यक्ति से करते जो रास्ते में मिल रहा था। सलीम अपने साहस और शौर्य की खूव डींगें मार रहा था। अमरकान्त चुपचाप डॉक्टर साहब  के पास बैठा हुआ था। इस घटना ने अमरकान्त के हृदय पर गहरी छोट की थी, वह मन ही मन इस घटना की व्याख्या कर रहा था, अमरकान्त सोचता है कि यह पराधीनता की जंजीर को तोड़ना होगा परिणाम स्वरूप इस ज़ंजीर को तोड़ने के लिए वह तरह-तरह के मंसूबे बाँधने लगता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

यह उपन्यास स्वतंत्रता से पहले लिखा गया था, साहित्य समाज का दर्पण है परिणाम स्वरूप अमरकान्त के माध्यम से समझा जा सकता है कि स्वतांत्रता की अभिलाषा किस प्रकार प्रबल रही होगी। है।

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