Ignou Study Material : MHD 10 प्रेमचन्द कहानी विविधा | MHD 10 Premchand Story Miscellaneous
कहानी परिचय (Story Introduction)
प्रकृति का नियम है कि संतान उत्पत्ति के लिए स्त्री और पुरूष दोनों की आवश्यकता होती है, लेकिन जब एक नई जान को ज़िन्दगी देने के लिए अपनी जान दांव पर लगाने की बात आती है तो स्त्री को ही यह भूमिका निभानी पड़ती है। यह प्रकृतिक प्रतिक्रिया है जिसमें किसी पुरूष का भी कोई दोष नहीं है। शायद यही कारण है कि गर्भधारण करके अनेक कष्टो को सहकर संतान को जन्म देने की जिम्मेदारी जब प्रकृति ने स्त्री को दी है तो समाज ने पत्नी और संतान की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी पुरूष को दी है।
उस पति का क्या किया जाए, जिसकी निशानी पैदा करने के लिए पत्नी मौत के विस्तर पर पड़ी है फिर भी उसे इंसानियत के नाते भी दया नहीं आती? एक स्त्री नौ महीने से जिसे अपने अन्दर लिए जी रही, जिसके जन्म के लिए वह खुद मरने को तैयार है, उसी संतान के पिता उसके जन्म के लिए डॉक्टर, वैद या दाई की सुविधा भी उपल्बध नहीं करा सकते। हद तो तब हो जाती है जब पत्नी के दर्द की चीखों से उसे दया नहीं गुस्सा आता है, विचार कीजिए।
हम बात कर रहें हैं प्रेमचंद की लिखी कहानी कफ़न की जिसमें बुधिया की मृत्यू का ज़िम्मेदार उसका पति माधव है।
कहानी का सारांश (Summary)
इस कहानी कि नायिका बुधिया है। बुधिया के पति और ससुर का ज़िक्र इस कहानी में किया गया है। बुधिया का ससुर तीन दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता। बुधिया का पति भी कामचोर है परिणाम स्वरूप कोई आसानी से उसे काम पर नहीं रखता है। जब कभी एक दो दिन खाने के लिये नहीं होता तब बुधिया का (ससुर) घीसू लकड़ी तोड़ लाता और (पति) माधव वह लकड़ी बाजार में बेंच देता।
कहानी के अनुसार काश्तकारों का गाँव है जहाँ रोजगार की कमी नहीं है, लेकिन माधव और घिसू काम करना ही नहीं चाहते। घर में मिट्टी के दो-चार बर्तन के सिवा कोई खास सम्पत्ति नहीं है। कामचौरी के परिणाम स्वरूप क़र्ज़ भी बहुत चढ़ गया है। घर में खाने को न होने पर खेत से आलू और मटर चुपचाप उखाड़ लाते और भून कर खाते थे।
बुधिया पिसाई करके, घास छील कर जो कमाती उससे एक सेर आटे का इन्तज़ाम कर लेती थी। परिणाम स्वरूप बुधिया के आने के बाद घीसू और माधव और अधिक आलसी हो गए हैं। थोड़ा बहुत जो काम कर लिया करते थे अब वह भी करना बंद कर दिया है।
बुधिया गर्भवती है परिणाम स्वरूप वह सुबह से प्रसव पीड़ा से तड़प रही है लेकिन माधव ने ना ही खुद उसकी कोई सहायता की, ना ही किसी अन्य को सहायता के लिए बुलाया। बुधिया दर्द से चीख रही थी और पिता-पुत्र आलू भूज कर खा रहें हैं। माधव तो यह चाहता है कि यदि इसे मरना ही है तो जल्दी मर जाए।
बहु की ज़िन्दगी बचाने के उपाय करने के स्थान पर घीसू को बीस साल पुरानी दावत याद आ रही थी जिसमें उसने स्वादिष्ट पकवान खाए थे। बुधिया पुरी रात दर्द से कराह रही थी लेकिन पिता-पुत्र दोनों में से किसी को भी उस पर दया नहीं आई।
सुबह उठकर माधव ने कोठरी में जाकर देखा तो बुधिया की मृत्यु हो चुकी थी, साथ ही उसका बच्चा भी पेट में ही मर गया। माधव ने जब यह सूचना घीसू को दी, तो दोनो रोने का ढोंग करने लगे। घर में पैसा नहीं था परिणाम स्वरूप अब क़फन और लकड़ी की चिंता करने लगे।
घीसू और माधव दोनों रोते हुए जमीदार के यहाँ पहुँच गए। ज़मीदार दोनों को ही पसंद नहीं करते थे। ज़मीदार के पूछने पर कि क्या हुआ? घीसू ने रोनो का नाटक करते हुए झूठ कहा कि – माधव की घर वाली रात कल रात गुज़र गई। हमसे जो कुछ हो सका हमने इलाज करवाया उसकी सेवा करते रहें लेकिन फिर भी वह हमें दगा दे गई। घीसू के झूठ के अनुसार जो पैसा था सब दवाई में खर्च हो गया। अब अंतिम संस्कार करने के लिए वह ज़मीदार से पैसा मांग रहा है।
जंमीदार थोड़ा रहम दिल था परिणाम स्वरूप उसने दो रूपये दे दिए, लेकिन घीसू और माधव की हरकतें ऐसी थी कि उनसे सहानुभूति का कोई लब्ज़ नहीं कहा। ज़मीदार ने जब दो रूपये दे दिए तो गाँव के अन्य लोगों ने भी कुछ न कुछ पैसे या अनाज घीसू को दिया। घीसू के पास पाच रूयए इकट्ठे हो गए थे। लकड़ियाँ तो गाँव वालों ने पहले ही इकट्ठी कर दी थी अब क़फन लेने की आवश्यकता थी। जिसे लेने दो पिता-पुत्र बाजार पहुँचे लेकिन क़फन लेने के स्थान पर वह शराब की दुकान में जा पहुँचे मनचाही शराब पी, भोजन किया। भोजन करने के बाद वहीं नाचते गाते नशे की हालत में गिर पड़े। इस तरह कहानी समाप्त हो जाती है।
कफ़न कहानी की समीक्षा (Review of story Kafan)
इस कहानी के अनुसार नायिका जो गर्भवती थी, जिसकी मृत्यु बिना इलाज के कारण होती। स्त्रियों के लिए यह स्थिति मात्र कहानी में नहीं है बल्कि प्रेमचंद जी ने स्त्रियों की दयनीय स्थिति पर दृष्टि डाली है। एक स्त्री जिस तरह अपने पति के जीवन और स्वस्थ रहने के लिए अपना जीवन लगा देती है उस तरह कोई पुरूष अपनी पत्नी के लिए चिंता करे या सेवा करे इसकी संभावना कम ही होती है।
हमारे समाज में जब पत्नी का स्वर्गवास हो जाता है तो पति दूसरी पत्नी ले आता है चाहे उसकी आयु 50 वर्ष से अधिक ही क्यों ना हो। वहीं यदि पति का स्वर्गवास हो जाए तो पत्नी की दूसरी शादी का होना ना ही समाज आवश्यक समझता है, ना ही उसके दूसरे विवाह के लिए प्रयास करता है। चाहे विधवा की आयु 25 वर्ष से कम ही क्यों ना हो। पुरूष का अपनी पत्नी के लिये चिंतित ना होने का एक कारण यह भी रहा होगा या है। जब यह कहानी लिखी गई होगी तब सम्भवतः स्थिति पूर्ण रूप से इसी प्रकार रही होगी। वर्तमान में जागरूकता के कारण थोड़ा-बहुत सुधार हुआ है। लेकिन विचार और सुधार करने की आवश्यकता आज भी है।
कहानी का निष्कर्ष (Conclusion of Story)
साहित्य समाज का दर्पण है परिणाम स्वरूप साहित्यकार अपनी कलम के माध्यम से समाज का प्रतिबिंब दिखाने का प्रयास करता है। इस कहानी में स्त्री की दयनीय स्थिति पर प्रेमचंद जी द्वारा कलम चलाई गई है।
शादी के बाद ससुराल में महिलाएँ अपनी जान अपने ससुराल वालों की लापरवाही के परिणाम स्वरूप गवा देती हैं जिसकी वजह है पुरूषो का दूसरा विवाह सरलता से हो जाना है। यदि पुरूषो के दूसरे विवाह में भी महिलाओं के दूसरे विवाह जितनी मुश्किलें पैदा होती तो किसी भी शादी शुदा महिला की मृत्यु लापरवाही से नहीं होती या होगी।
इस कहानी को पढ़ते समय यह आवश्य ध्यान रखें यह कहानी 1936 से पहले लिखी गई है। वर्तमान में सुधार हुआ है।
कफ़न कहानी का सारांश विडियो
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