जनसंचार माध्यम का सरांश व समीक्षा | Summary and Review of Janasanchaar Maadhyam – (Part – 2)

जनसंचार माध्यम का सरांश व समीक्षा (पार्ट–1)

अभिव्यक्ति और माध्यम कक्षा – 11 (abhivyakti aur maadhyam kaksha – 11) | Expression and Medium Class – 11 अध्याय – 1 (पार्ट–2) | Chapter – 1 (Part – 2)

भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास (Growth of Mass Media in India)

वर्तमान में भारत में जनसंचार के जो भी आधुनिक माध्यम मिलें हैं उसकी प्रेरणा पश्चिमी जनसंचार से मिली है। जनसंचार के बीज पौराणिक काल के मिथकीय पात्रों में खोजे जा सकते हैं। देवर्षि नारद को भारत का पहला समाचार वाचक माना जाता है जो वीणा की मधुर झंकार के साथ धरती और देवलोक के बीच संवाद-सेतु थे।

महाभारत काल में महाराज धृतराष्ट्र और रानी गांधारी को युद्ध की झलक दिखाने और उसका विवरण सुनाने के लिए जिस तरह संजय की परिकल्पना की गई है, वह एक अत्यंत समृद्ध संचार व्यवस्था की ओर इशारा करती है।  

चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक  जैसे सम्राटों के शासन-काल में स्थायी महत्व के संदेशो के लिए कच्ची स्याही या रंगों से संदेश लिखकर प्रदर्शित करने की व्यवस्था और मज़बूत हुई। तब बाकायदा रोज़नामचा लिखने के लिए कर्मचारी नियुक्त किए जाने लगे और जनता के बीच संदेश भेजने के लिए भी सही व्यवस्था की गई।

देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विविध नाट्यरूपों – कथावाचन, बाउल, सांग, रागनी, तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्षगान आदि का विशेष महत्व है। इन विधाओं के कलाकार मनोरंजन तो करते ही थे, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक संदेश पहुँचाने और जनमत निर्माण करने का काम भी करते थे।

हमारी सांस्कृतिक विरासत के अंग बनते चले गए। फ़िल्में हों या टी.वी. सीरियल एक समय के बाद वे भारतीय नाट्य परंपरा से परिचालित होने लगते हैं। आज के जनसंचार माध्यमों का खाका भले पश्चिमी हो, लेकिन उनकी विषयवस्तु और रंगरूप भारतीय ही हैं। समाचारपत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा और इंटरनेट आदि जनसंचार माध्यमों में इनका महत्व है।

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समाचारपत्र-पत्रिकाएँ (Newspapers and Magazines)

जनसंचार की सबसे मज़बूत कड़ी पत्र-पत्रिकाएँ या प्रिंट मीडिया है। वर्तमान में प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट, किसी भी माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहा जाता है। शुरूआत में केवल प्रिंट माध्यमों के ज़रिये खबरों के आदान-प्रदान को ही पत्रकारिता कहा जाता था। जिसके मुख्य रूप से तीन अंग हैं – 1) समाचारों को संकलित करना 2) उन्हें संपादित कर छपने लायक बनाना 3) पत्र या पत्रिका के रूप में छापकर पाठक तक पहुँचाना।

पत्रकारिता का इतिहास (History of Journalism)

दुनिया में अखबारी पत्रकारिता को अस्तित्व में आए 400 साल हो गए हैं। भारत में इसकी शुरूआत सन् 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गज़ट’ से हुई जो कलकत्ता (कोलकाता) से निकला था जबकि हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र ‘उदंत मार्तंड’ भी कलकत्ता से ही सन् 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था। आज़ादी के आंदोलन में भारतीय पत्रों ने अहम भूमिका निभाई। उस समय के महत्वपूर्ण अखबारों और पत्रिकाओं में केसरी, हिन्दुस्तान, सरस्वती, हंस, कर्मवीर, आज, प्रताप, प्रदीप और विशाल भारत आदि प्रमुख हैं।

आज़ादी के बाद अधिकतर पुरानी पत्रिकाएँ बन्द हो गई और कई नए समाचारपत्रों और पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। उनमें से कुछ प्रमुख अखबारों के नाम इस प्रकार हैं – नवभारत टाइम्स, जनसत्ता, नई दुनिया, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला, दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण आदि।

रेडियो (Radio)

रेडियो एक ध्वनि माध्यम है। ध्वनि तरंगों के ज़रिये यह देश के कोने-कोने तक पहुँचता है। दूर-दराज़ के गाँवों में, जहाँ संचार और मनोरंजन के अन्य साधन नहीं होते, वहाँ रेडियो ही एकमात्र साधन है, बाहरी दुनिया से जुड़ने का। अखबार और टेलीविज़न की तुलना में यह सस्ता है।

सन् 1895 में जब इटली के इलैक्ट्रिकल इंजीनियर जी. मार्कोनी ने वायरलेस के ज़रिये ध्वनियों और संकेतों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में कामयाबी हासिल की, तब रेडियो जैसा माध्यम अस्तित्व में आया।

शुरूआती रेडियो स्टेशन अमेरिकी शहर पिट्सबर्ग, न्यूयॉर्क और शिकागो में खुले। भारत ने 1921 में मुंबई में ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने डाक-तार विभाग के सहयोग से पहला संगीत कार्यक्रम प्रसारित किया। 1936 में विधिवत ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना हुई और आज़ादी के समय देश में कुल नौ रेडियो स्टेशन खुल चुके थे- लखनऊ, दिल्ली, बंबई (मुंबई), कलकत्ता (कोलकाता), मद्रास (चैन्नई), तिरुचिरापल्ली, ढाका, लाहौर और पेशावर।  

धर्मनिरपेक्ष, लोकहितकारी व देश के नवनिर्माण में आकाशवाणी का महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वर्तमान में आकाशवाणी देश की 24 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। देश की 96 प्रतिशत आबादी तक इसकी पहुँच है। 1993 में एफएम (फ्रिक्वेंसी मॉड्यूलेशन) की शुरूआत के बाद रेडियो के क्षेत्र में कई निजी कंपनियाँ भी आगे आई थी।

1997 में आकाशवाणी और दूरदर्शन को केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण से निकालकर प्रसार भारती नाम के स्वायत्तशासी निकाय को सौंप दिया गया। एफ.एम. के दूसरे चरण के साथ देश के 90 शहरों में 350 से अधिक निजी एफएम चैनल शुरू हो रहे हैं। सामुदायिक या कम्युनिटी रेडियो केंद्रों के आने से देश में रेडियो की नई संस्कृति अस्तित्व में आ रही है।

टेलीविज़न (Television)

वर्तमान में टेलीविज़न जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और ताकतवर माध्यम बन गया है। 1927 में बेल टेलीफ़ोन लेबोरैट्रीज़ ने न्यूयॉर्क और वाशिंगटन के बीच प्रायोगिक टेलीविज़न कार्यक्रम का प्रसारण किया। 1936 तक बीबीसी ने भी अपनी टेलीविज़न सेवा शुरू कर दी थी।

भारत में टेलीविज़न की शुरूआत युनेस्को की एक शैक्षिक परियोजना के तहत 15 सितंबर 1959 को हुई थी। इसका मकसद टेलीविज़न के ज़रिये शिक्षा और सामुदायिक विकास को प्रोत्साहित करना था। परिणाम स्वरूप दिल्ली के आस पास के गाँव में दो टी.वी सेट लगाए गए थे। यह हफ्ते में दो बार एक-एक घन्टे के लिए दिखाया जाता था। 1965 में स्वतंत्रता दिवस से भारत में विधिवत टी.वी. सेवा का आरंभ हुआ। अब प्रतिदिन एक घन्टा कार्यक्रम दिखाया जाने लगा था।

1975 तक दिल्ली, मुंबई, श्रीनगर, अमृतसर, कोलकाता, मद्रास और लखनउ में टी.वी. सेंटर खुल गए। 1976 तक टी.वी. सेवा आकाशवाणी का हिस्सा थी। 1 अपैल 1976 से इसे अलग कर दिया गया। परिणाम स्वरूप इसे दूरदर्शन नाम दिया गया। 1984 में इसकी रजत जयंती मनाई गई।

1980 मे श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक समिति गठित की थी। जिसका उद्देश्य भारत में दूरदर्शन के निम्नलिखित उद्देश्य होने चाहिए जो इस प्रकार हैं – सामाजिक परिवर्तन, राष्ट्रीय एकता, वैज्ञानिक चेतना का विकास, परिवार कल्याण को प्रोत्साहन, कृषि विकास, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक विकास, खेल संस्कृति का विकास, सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन आदि।

1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान दुनियाभर के लोगों ने केबल टी.वी. के ज़रिये युद्ध का सीधा प्रसारण देखा। इसके बाद भारत की टी.वी. में भी दुनिया के निजी चैनलों की शुरूआत हुई, विदेशी चैनलों को प्रसारण की अनुमति दी गई और इसके साथ ही भारत में सीएनएन, बीबीसी जैसे चैनल दिखाए जाने लगे। इसके अतरिक्त डिस्कवरी, नेशनल ज़्यॉग्राफ़िक जैसे शैक्षिक और मनोरंजन चैनलों के साथ ही एफ़टी.वी., एमटी.वी. व वीटी.वी. जैसे विशुद्ध पश्चिमी किस्म के चैनल भी दिखने लगे। जिसका कुछ लोगों ने देश पर सांस्कृतिक हमला भी कहा और इन चैनलों का विरोध किया।

1993 अक्टूबर, में जी.टी.वी. और स्टार टी.वी. के बीच अनुबंध हुआ। सन् 2002 में आजतक के स्वतंत्र चैनल के रूप में आने के बाद समाचार चैनलों की बाढ़ लआ गई। निजी चैनलों का मकसद व्यावसायिक लाभ कमाना रह गया।

सिनेमा (Cinema)

जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली माध्यम है – सिनेमा। हालाँकि यह जनसंचार के अन्य माध्यमों की तरह सीधे तौर पर सूचना देने का काम नहीं करता लेकिन परोक्ष रूप में सूचना, ज्ञान और संदेश देने का काम करता है।

सिनेमा के आविष्कार का श्रेय थॉमस, अल्वा एडिसन को जाता है और यह 1883 में मिनेटिस्कोप की खोज के साथ जुड़ा हुआ है। 1894 में फ्रांस में पहली फ़िल्म बनी ‘द अराइवल ऑफ ट्रेन’ । जल्द ही यूरोप और अमेरिका में कई फ़िल्में बनने लगीं।

भारत में पहली मूक फ़िल्म बनाने का श्रेय दादा साहेब फ़ाल्के को जाता है। यह फिल्म 1913 में बनी थी, जिसका नाम ‘राजा हरिश्चंद्र’ था। 1931 में पहली बोलती फ़िल्म बनी थी जिसका नाम ‘आलम आरा’ है। इसके बाद बोलती फिल्मों का दौर शुरू हुआ। पृथ्वी राजकपूर, महबूब खान, सोहराब मोदी, गुरुदत्ता और सत्यजित राय जैसे फिल्मकार थे।

फिल्म की कहानियों में कुछ न कुछ संदेश देने की कोशिश हुई। सत्तर अस्सी के दशक में कुछ फ़िल्मकारों ने महसूस किया कि सिनेमा जैसे सशक्त संचार माध्यम का इस्तेमाल आम लोगों में चेतना फैलाने, उसे जीवन की समस्याओं से जोड़ने और अन्याय के खिलाफ़ एक कलात्मक अभिव्यक्ति के तौर पर किया जाए। इस दौरान अंकुर, निशांत, अर्धस्तय जैसी फ़िल्में बनी। सत्यजीत राय ने पचास के दशक में ‘पथेर पांचाली’ बनाकर इसकी शुरूआत कर दी थी।   

फ़िल्मों में दर्शकों को बाँधने वाला कथानक, रोज़मर्रा की समस्याएँ, मधुर संगीत, पारंपरिक नृत्य और संस्कृति के कई आयाम दिखाई देते हैं। वर्तमान में भारत हर साल 800 फ़िल्मों का निर्माण करता है और दुनिया का सबसे बड़ा फ़िल्म निर्माता देश बन गया है। हिन्दी के अलावा अन्य क्षेत्रिया भाषा और बोली में फ़िल्में बनती हैं और खूब चलती हैं।

इंटरनेट (Internet)

इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया और लोकप्रिय माध्यम है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसमे प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविज़न, किताब, सिनेमा यहाँ तक कि पुस्तकालय के सारे गुण मौजूद हैं। इंटरनेट की पहुँच दुनिया के कोने-कोने में है। इसमें सारे माध्यमों का समागम है। इंटरनेट पर हम दुनिया के हर कोने से छापनेवाले अखबार या पत्रिका में छपी सामग्री पढ़ सकते हैं। विश्वव्यापी जाल के भीतर जमा करोड़ों पन्नों में से पलभर में अपने मतलब की सामग्री खोज सकते हैं। ब्लाग बनाकर पत्रकारिता की किसी बहस के सूत्रधार बन सकते हैं। प्रत्येक माध्यम में कुछ गुण-अवगुण होते हैं, इंटरनेट जहाँ ज्ञान की अवश्यकताएँ पुरी करता  है। वहीं अवगुण यह है कि उसमें लाखो अश्लील पन्ने भर दिए गए हैं। हाल के वर्षो में दुरुपयोग की अनेक घटनाएँ सामने आई हैं।

जनसंचार माध्यमों का प्रभाव (Impact of Mass Media)

हमारी महानगरीय युवा पीढी समाचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इंटरनेट का उपयोग करने लगी है। खरीद-फ़रोख्त के हमारे फ़ैसलों तक पर विज्ञापनों का असर साफ़ देखा जा सकता है। शादी-ब्याह के लिए भी लोगों की अखबार या इंटरनेट के मैट्रिमोनियल पर निर्भरता बढ़ने लगी है। टिकट बुक कराने या टेलीफ़ोन आदि का बिल जमा कराने से लेकर सूचनाओं के आदान- प्रदान के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है।

अपनी सेहत से लेकर धर्म-अध्यात्म तक के बारे में जानकारी जनसंचार माध्यमों से मिल रही है। जनसंचार माध्यमों ने हमारे जीवन को और ज़्यादा समर्थ, हमारे सामाजिक जीवन को और अधिक सक्रिय बनाया है। यह कहा जा सकता है कि जनसंचार माध्यमों ने जहाँ एक ओर लोगों को सचेत और जागरूक बनाने में अहम भूमिका निभाई है, वहीं उसके नकारात्मक प्रभावों से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यह भी स्पष्ट है कि जनसंचार माध्यमों के बिना आज सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। परिणाम स्वरूप एक जागरूक पाठक, दर्शक और श्रोता के बतौर हमें अपनी आँखें, कान और दिमाग हमेशा खुले रखने चाहिए।

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