IGNOU MHD-12 Study Material: अपने लिए शोकगीत कहानी का सारांश व निष्कर्ष | Summary and Conclusion of the Story Apane liye Shokgeet

IGNOU MHD-12 Study Material MHD-12 भारतीय कहानी (Bhartiya Kahaani)

अपने लिए शोकगीत कहानी का परिचय (Introduction of the Story Apane liye Shokgeet)

अपने लिए शोकगीत कहानी की रचनाकार आशापूर्णा देवी जी हैं, जिन्होंने यह कहानी बंगला में लिखी थी। वर्तमान में कहानी का अनुवाद हिन्दी में करके MHD – 12  (इग्नु) के पाठ्यक्रम में लगाया गया है। यह कहानी रिटायर्ड व्यक्ति अविनाश की है, जो अपने ही परिवार में खुद को अकेला समझने लगें हैं। जिसका मुख्य कारण यह है कि उनकी पत्नी अपने पति से ज्यादा अपने परिवार के अन्य सदस्यों पर ध्यान देती है। वह इतना अकेला महसूस करने लगते हैं कि खुद की ही मृत्यू की कल्पना करने लगते हैं।

MHD-12 भारतीय कहानी (Bhartiya Kahaani) लेखिका का परिचय (Introduction of the Author)

आशापूर्णा देवी का जन्म 8 जनवरी 1909 को एक परंपरावादी बंगाली परिवार में हुआ था। आशापूर्णा देवी का परिवार पुराने रिवाज़ो को मानने वाला था, इसलिए उन्हें शिक्षा सरलता से प्राप्त नहीं हुई। 1924 में उनका विवाह हो गया। आशापूर्णा देवी की कहानियों व उपन्यासों में स्त्री जीवन से जुड़ी घटनाएँ, स्त्री का संघर्ष का लेखन अधिक है। 1932  में उनकी पहली कहानी “पत्नी ओ प्रेयसी” और 1944 में पहला उपन्यास “प्रेम ओ प्रयोजन” छपा था। आशापूर्णा देवी ने तेरह साल की आयु में लिखना शुरू किया था। 13 जुलाई 1995 में उनका निधन हुआ था।

आशापूर्णा देवी बांग्ला भाषा की लेखिका हैं। यह उस दौर की लेखिका हैं, जब स्वतंत्रता के लिए अवाज़ उठाई जा रही थी। उस समय के लेखक अपनी लेखनी का विषय अधिकतर स्वतंत्रता से संबन्धित रखते थे। आशापूर्णा देवी बांग्ला साहित्य की ऐसी कथाकार हैं, जिन्होंने घर के भीतर की समस्याओं और मनुष्य की क्षुद्रताओं, विडंबनाओं को रेखांकित किया। आशापूर्णा देवी जी ने मनुष्य को एक स्वतंत्र इकाई के रूप में देखना शुरू किया। घर के अंदर की दुनिया का चित्रण आशापूर्णा जी ने बहुत ही बारीकी से किया है।  

कहानी का सारांश (Summary of the Story)

आधी रात को अचानक अविनाश की नींद खुल जाती है (इसी से कहानी की शुरूआत होती है) अविनाश का दम घुट रहा होता है, साथ ही वह अपने हाथ पैर भी नहीं हिला पा रहे हैं। छाती में अत्यधिक दर्द के परिणाम स्वरूप अविनाश को लगा उन्हें दिल का दौरा पड़ा है। उन्होंने धीरे से किसी को पुकारा लेकिन जिसे पुकारा उस तक अवाज़ नहीं पहुँची।

अविनाश अब रिटायर्ड हो चुके हैं, लेकिन उन्हें करने के लिए कोई काम नहीं है। जिस कारण उन्होंने खुद ही अपने लिए काम की तलाश कर ली है। उनके बेटा-बहु डिब्बे वाला दूध ही लाया करते थे, लेकिन अविनाश ने छोटे पोते के लिए खुद ही खटाल से दूध दुहवा कर लाने की ज़िम्मेदार ले ली है। अविनाश का बड़ा बेटा नौकर के साथ जाकर बाज़ार से समान ले आता है, लेकिन उसके ऑफिस जाने के बाद अविनाश फिर बाजार जाते हैं। कोई न कोई ऐसी चीज ले आते हैं जिसे घर वाले नहीं खाते हैं। नौकरानी गाडी में बिठाकर छोटे पोते को पार्क ले जाती है, लेकिन अविनाश अपने पोते की ज़िम्मेदारी नौकरानी पर नहीं छोड़ना चाहते इसलिए वे भी साथ जाते हैं।

अविनाश को सुबह-सुबह भूख लगती है, लेकिन वह किसी से खाना माँगते नहीं हैं। बेटों के लिए टिफिन बन रहा होता है। पोतियों के लिए भी भुजिया, हलवा, आलू मिरिच आदि पक रही होती है। खाने की खुशबू से वह और अधिक बेचैन हो जाते हैं। खबर सुनाने के बहाने वह अपनी पत्नी के पास जाते हैं। सच यह है कि वह चाहते हैं कि उनकी पत्नी उन पर ध्यान दें। उन्हें भोजन के लिए पूछे। पत्नी शैलबाला अविनाश के मन की बात नहीं समझती और उन्हें जाने के लिए कहती है। फिर अविनाश मुद्दे की बात करते हुए खाने की बात करने लगते हैं। परिणाम स्वरूप उन्होंने आज भी अच्छा खासा नाश्ता कर लिया था।

अविनाश इस दर्द में दिनभर के कार्य याद कर रहे थे, कि दिन में तो सब ठीक था फिर यह दर्द कैसे हो गया है। इसी दर्द से वह चिल्ला पड़े लेकिन उनकी अवाज़ नहीं निकली। अविनाश का कमरा संकरा है जिसे सोने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। शैलबाला अपनी पोती के साथ अविनाश और शैलबाला के पुराने कमरे में सोती है, अविनाश को अलग एक बहुत ही छोटे कमरे में सोना पड़ता है। थोड़ी देर बाद अविनाश की पोती ने शैलबाला को अवाज़ लगाई “दीदा, ओ दीदा, देखो तो दादू पता नहीं कैसे चिल्ला रहे हैं”।

शैलबाला उठी और जल्दी से अविनाश के कमरे की तरफ भागी। शैलबाला ने आते ही अविनाश की नाड़ी देखी। कोई भी बीमार होता तो शैलबाला सबसे पहले उसकी नाड़ी देखती है। उसके बाद शैलबाला अविनाश को लगातार अवाज़ देने लगी। अविनाश शैलबाला की चिंता भरी अवाज़ का सुख लेने लगे। इतने में अविनाश के दोनों बेटे आ गए। बेटों के आते ही स्नेह से भरे लब्ज बदल गए। बेटे ने कहा डॉक्टर को बुलाएँ? इतनी देर में अविनाश का दर्द थोड़ा कम हो गया वे चाहते तो बोल सकते थे, लेकिन उन्होंने कुछ देर चुप रहना ठीक समझा। शेलबाला ने ही कह दिया कि डॉक्टर को बुलाने की जरूरत नहीं है, नाड़ी बिल्कुल ठीक चल रही है। यह सुनते ही अविनाश की आँखो से आँसू निकल आए।

अविनाश आँखे नहीं खोलना चाहते थे, लेकिन शैलबाला ने जब पानी पूछा तो उन्हें एहसास हुआ कि अगर आँखे नहीं खोली तो पानी नहीं पी सकुँगा परिणाम स्वरूप पानी पीने के लिए अविनाश ने आँखे खोल दी। उनके आँखे खुलते ही बेटो ने उनके लिए चिंता दिखाते हुए उनका हाल पूछा जिसे सुनकर उन्हें अपनापन महसूस हुआ। छोटे बेटे ने जब कहा – अब ठीक हो डॉक्टर को बुलाने की जरूरत है? जिसे सुनकर अविनाश बहुत आहत हुए। कुछ ही देर में उनके खाने-पीने को दोष दिया जाने लगा जिसे सुनकर अविनाश बहुत ही दुखी हो गए। शैलबाला ने जैसे ही कहा बुदू बेटे जाकर सो जाओ दोनो बेटे सोने चले गए। कुछ देर और वह अविनाश के पास नहीं बैठे इस बात का भी अविनाश को दुख हुआ।

सबके जाने के बाद जब शैलबाला ही अविनाश के पास बैठी थी तो अविनाश ने दुखी मन से कहा तुम भी जा रही हो? शैलबाला ने कहा मैं दवाई लेकर आती हूँ फिर बैठुंगी, अविनाश ने कहा बैठो नहीं यही सो जाओ। शैलबाला ने इंकार कर दिया। अविनाश ने पुराने दिन याद दिलाने की कोशिश की लेकिन शैलबाला ने उस बात को भी काट दिया। उसने कहा बेटे और पोतियाँ देखेंगी तो क्या सोचेंगे। शैलबाला का कहना था कि जवानी में बुजुर्गों से और बुढ़ापे में बच्चों से लज्जा करनी पड़ती है।

शैलबाला के जाने के बाद अविनाश को लगा कि फिर से दम घुटने लगा है। उसके बाद उनकी आँखों से लगातार आँसू बहने लगा और तकिया भीगने लगा। अविनाश लगातार अपनी मृत्यु की कल्पना करने लगे और यह सोचने लगे कि जो पत्नी और बेटे उन्हें इस तरह छोड़कर चले गए हैं, उन्हें किस तरह सुबह पछतावा होगा।

अपने लिए शोकगीत कहानी का निष्कर्ष (Conclusion of the Story Apane liye Shokgeet)

समाज में अकसर देखा गया है कि बुजुर्गों को अनदेखा किया जाता है। इस कहानी में अविनाश मनोवैज्ञानिक रूप से अकेले हो गए हैं। माता-पिता को खाना दे देना ही सब कुछ नहीं होता है, उन्हें सम्मान व समय भी देने की आवश्यकता है। शैलबाला कहती है कि बुढापे में बच्चो से सरम करनी चाहिए, जबकि यह रूढिवादिता अविनाश को अकेला कर देती है। शैलबाला तो सारा दिन अपने घर के काम और बच्चो में व्यस्त रहती है, लेकिन अविनाश जिसे अब इस आयु में मौका मिला है कि वह फुरसत के पल अपनी पत्नी के साथ गुजार सकता है, तब उनकी पत्नी व बच्चो द्वारा उन्हें अकेले कमरे में रहने के लिए छोड़ देना अन्याय है।

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