IGNOU MHD-12 Study Material: प्राणधारा कहानी का सारांश व निष्कर्ष | Summary and Conclusion of the Story Prandhara

IGNOU MHD-12 Study Material MHD-12 भारतीय कहानी (Bhartiya Kahaani)

IGNOU MHD-12 लेखक का परिचय (Introduction of the Author)

कालीपट्नम रामाराव तेलुगु के वरिष्ठ कथाकार हैं। इनका जन्म 1924 में हुआ था। इन्होंने मैट्रिक तक शिक्षा प्राप्त की थी। विशाखापट्नम के सेण्ट ऐंटनी स्कूल में सेकेंडरी ग्रेड अध्यापक बने। 1943 से 1992 के बीच में कालीपट्नम रामाराव जी ने लगभग 30-35 कहानियाँ लिखीं है। 1955 से पूर्व की कहानियाँ मध्यवर्ग के ब्राहम्ण परिवारों पर आधारित हैं। 1964 से 1972 के बीच लिखी कहानियाँ विशेष रूप से समाज के निचले तबके अर्थात छोटी जाति या श्रमजीवि वर्ग पर आधारित कहानियाँ हैं।

रामाराव किसी व्यक्ति विशेष की कहानियाँ न लिखकर किसी सामाजिक परिस्थिति या व्यवस्था के व्यापक स्वरूप से सरोकार रखने वाली कहानियाँ लिखते हैं। उनका कहना है कि कहानी के बारे में व कहानी के लेखन के बारे में जानने के लिए मुझे अधिक समय लगा है।

प्राणधारा कहानी का परिचय (Introduction of the Story Prandhara)

प्राणधारा कहानी तेलुगु भाषा में कालीपट्नम रामाराव द्वारा लिखी गई है। इस कहानी का अनुवाद करके MHD – 12 के पाठ्यक्रम में लगाई गई है।

धरती पर जीवन जीने के लिए मुख्य रूप से हवा, पानी और आहार की आवश्यकता होती है, आर्थात इन तीन चीज़ो को प्राणधारा भी कहा जा सकता है। जल के बिना संसार का प्रत्येक प्राणी तड़पता है अर्थात भोजन से पहले पानी की आवश्यकता होती है। यदि इतिहास में सभ्यताओं के विषय में अध्यन करें तो हम देखेंगे कि कोई भी सभ्यता नदी के किनारे ही विकसित हुई है। हड़प्पा सभ्यता भी नदी के किनारे विकसित हुई थी।

97 प्रतिशत पानी समुद्री जल है जिसे प्रत्यक्ष रूप से उपयोग में नहीं लाया जा सकता है। लगभग 2 प्रतिशत पानी वर्फ के रूप में उपलब्ध है परिणाम स्वरूप लगभग 1 प्रतिशत पानी ही इंसान के पीने योग्य धरती पर मौजूद है। भारत में कुछ राज्य ऐसे भी हैं जो नदियों के पानी पर अपने अधिकार के लिए लड़ रहें हैं परिणाम स्वरूप पानी पर अधिकार का विषय अदालत में पहुँच गया है।

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समाज का एक हिस्सा ऐसा भी है जो अपनी रोज की आवश्यकताओं के लिए कम से कम पानी प्राप्त कर पाता है। लगभग एक घंटे के लिए सार्वजनिक नल में पानी छोड़ा जाता है और उस इलाके के सभी व्यक्ति को उतने समय में ही पानी भरना होता है परिणाम स्वरूप झगड़े की स्थिति भी पैदा हो जाती है। पानी प्राप्त करने के लिए अनेक सफल असफल प्रयास करने व पानी की कमी में जीवन व्यतीत कर रहे गरीब लोगो के विषय पर प्राणधारा कहानी आधारित है।

कहानी का सारांश (Summary of the Story)

इस कहानी की शुरूआत झोपड़ों में रह रहे लोग किस तरह पानी के लिए परेशान होते हैं इससे होती है। पानी लगभग एक-डेढ घंटे के लिए आता है। उसमें भी पहले 15 मिनट लड़ाई झगड़े में गुज़र जाते हैं। लगभग 50-60 झोपड़ों में रहने वाले लोगों के लिए सिर्फ एक ही नल उपलब्ध है।

इस इलाके में एक और नल है जो एम.पी. राव साहब के बगले पर है। बगले का नल से पानी तब तक बहता रहता है जब तक नल में पानी आता रहता है। आवश्यकता के अतरिकत पानी ऐसे ही खुला बहता है।

सार्वजनिक नल में आ रहा पानी धीर-धीरे कम हो रहा था। महिलाये एक के बाद एक पानी भर रही होती हैं, लेकिन एक बूंद भी पानी गिरने नहीं देती हैं।

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एक लड़की जो सत्रह साल की है लेकिन देखने मे पंद्रह साल की लगती है। वह अपनी योग्यता से अधिक बड़ा कलसा पानी के लिए लेकर आ रही थी। अम्माजी की माँ ने धमकी देकर पानी भरने भेजा था कि अगर आज पानी नहीं आया तो तेरी चमड़ी उधेड़ दुँगी। अम्माजी की माँ लड़कियों के मेस में काम करती है और पिता बढ़ई हैं दोनों सारा दिन बाहर काम करते हैं रात को ही घर लौटते हैं। घर पर अम्माजी, अम्माजी की बड़ी बुआ और बड़ी बुआ की बेटी यह तीन लोग रहते हैं। यह तीनों ही शहर के दफतरों में काम करने वालो को दोपहर में खाना पहुँचाने का काम करती हैं। माँ की चेतावनी के परिणाम स्वरूप अम्माजी बहुत परेशान थी।

तविटम्मा के देर से आने के लिए सत्यवती ने ताना दिया कि “एक घंटा ठहरकर आना तब तुम्हीं को सबसे पहले पानी मिलेगा। तविटम्मा ने कहा – “दूधपीती बच्ची देर तक सोई नहीं। बच्ची को सुलाने में इतना वक्त हो गया। उसे देखने वाला कोई नहीं है।

पानी की आवश्यकता जितनी अधिक है उतनी ही पानी की कमी है परिणाम स्वरूप अब कोई किसी की विवशता नहीं समझता है, अब सबका दिल पत्थर हो गया है। पानी के लिए जो पहले अपना घड़ा लगा देता है पानी उसी को मिलता है। सत्यवती ने पूछा – “पानी लेने के लिए बँगले पर चले?” जाए या ना जाए अम्माजी सोच ही रही थी कि इतने में तविटम्मा ने पूछा “तुम उन लोगों को जानती हो?” सत्यवती ने कहा अम्माजी जानती है। यह सुनकर तविटम्मा ने कहा मुझे भी ले चलो। तविटम्मा का दो साल का बेटा है और तीन महीने की बेटी है। बेटा अपनी नानी के पास रहता है।

राव साहब ने दस साल पहले यह बगला बनबाया था। तब उनकी हैसियत इतनी अच्छी नहीं थी। जहाँ उनका आज बगला है यहा पानी की सुविधा ना होने के कारण घर बन नहीं पाए थे। यहीं पर राव साहब ने एक साथ दस प्लाट खरीदे थे। एक दिन राव साहब बस्ती मे रहने वाले लोगों के पास गए और राव साहब ने एक महज़रनामा तैयार किया। तीनों बस्ती के लोगों के दस्तख़त राव साहब ने उस कागज़ पर ले लिए जिसके परिणाम स्वरूप उस इलाके में बिजली व पानी की व्यवस्था हुई। राव साहब ने बस्ती के लोगों से दस्तख़त करवा कर उनके नाम से पानी बिजली की व्यवस्था करवाई। पानी का नल कहाँ लगेगा और बिजली कहाँ आयेगी यह उन्होंने खुद तय किया। चलाकी से उन्होंने पानी का नल अपनी ज़मीन पर लगवाया और फिर छः महीने बाद ही अपना बगला वहाँ बनवा लिया। जो नल उन्होंने बस्ती वालो का हवाला देकर लगवाया था, अब उस पर वह अपना एकधिकार जमा लिया हैं। वर्तमान में राय साहब के बंगला बगीचे के बीचो बीच है, बगीचे के सभी पेड़ दस साल पहले ही लगाये गए थे। जिसमें से कुछ पेड़ अम्माजी के पिता ने भी लगाये थे।

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राव साहब अंग्रेज़ों की कम्पनी में मैनेजर हैं। जब उनका बंगला बन रहा था तब अम्माजी के पिता ने अम्माजी को लेजाकर राव साहब से निवेदन किया था कि कभी यह पानी भरने आए तो एक कलसा पानी भरने दीजिएगा। जैसे ही तीनों बगले के गेट पर पहुँची तो आदमक़द कुत्ते भौकने लगे परिणाम स्वरूप तीनों बहुत डर गई। अंदर से किसी ने अवाज़ दी जिसे सुनकर दोनों कुत्ते शांत हो गए।

इतनी देर में बड़े साहब का सबसे छोटा बेटा बाहर आ गया। पीछे-पीछे एक लड़की भी बाहर आ गई। लड़की को देखक शेषुबाबू ने कहा – “पानी के लिए आई हैं शायद” बात कुछ और है यह दिखाते हुए लड़की बोली “पानी ही के लिए?” लड़की ने कहा – “पानी नहीं है जाओ” । तीनों निराश हो गई थोड़ी उम्मीद के साथ शेषुबाबू की ओर देखने लगी। शेषुबाबू अम्माजी को देख रहा था। थोड़ी देर में शेषुबाबू और लड़की दोनों अंदर चले गए। थोड़ी देर बाद दूसरी लड़की और लड़का बाहर आए दोनों अम्माजी पर हँस कर अंदर लौट गए। अंदर से लगातार हँसी की अवाज़ आती रही। जिसे सुनकर तीनों परेशान हो गईं कि ऐसी क्या बात है जो यह सब हम पर हँस रहें हैं।

कुछ समय बीत जाने के बाद एक अधेड़ उम्र की महिला कहते हुए बाहर आई – “ कहा ना तुमसे पानी नहीं है जाते क्यों नहीं? खिड़की से लगातार हँसी की अवाज़ आ रही थी। महिला मान ही जाती कि एक वृद्धा बाहर आकर बोली – “ आज दया दिखाकर पानी दे दो तो ये कल फिर हमारे ही घर पर आ धमकेंगी। एक को दो तो सौ को देना पड़ेगा”। इसके बाद वृद्धा ने कुत्ते छोड़ने की धमकी दी। सत्यवती गुस्से से बोली – “ खोल दो माई सड़क पर खड़े लोगों को कुत्ते से कैसे कटवाओगी, मैं भी देखती हूँ”।

इतनी देर में माली आ गया। उसने वृद्धा की बात सुनी और तीनों लड़कियों को भगाने लगा। उसने कहा तुम्हें पानी देने से काम बन जाएगा क्या। अन्य महिलाएँ भी खाली कलसा लिए चली आ रही थी उन्हें दिखाने लगा। सत्यवती नराज़ हो गई और सारी औरतों को बुलाते हुए बोली आओं तुम भी यह हम पर कुत्ते छोड़ रहा है। सत्यवती की आवाज़ सुनकर सारी औरतें दोड़ने लगीं। माली कुत्तों के पास कुत्ते खोलने पहुँच गया। यह महौल देखकर शेषुबाबू बाहर आ गया। सत्यवती का विद्रोही स्वर बढ़ गया। दोनों पक्षों में बहस होने लगी। यह महौल देखकर एक अप्यायम्मा सामने आई। अप्यायम्मा ने वृद्धा से पूछा क्या बात है? परिणाम स्वरूप वृद्धा ने सारी बात अपने अनुसार बताई। इसके बाद सत्यवती और वृद्धा में और बहस होने लगी। अप्यायम्मा ने दोनों को चुप कराते हुए वृद्धा से पूछा बताओ अम्मा माई तुम क्या चाहती हो?  पानी देना है या नहीं यह बताओ?  

वृद्धा की पोती ने कहा – ऐंठ ऐंठ कर बोलोगी तो नहीं देंगे। अप्यायम्मा ने जबाव दिया कि हमारे पास है ही क्या जो हम ऐंठेंगी। वृद्धा को यह बात अच्छी लगी। वृद्धा ने कहा – “ एक-एक कलसा भर लेना फिर कभी इधर फटकना नहीं” यह सुनते ही अप्यायम्मा ने सबको कहा – “आओ… गंगा है, जीने के लिए सबसे पहले गंगा चाहिए। उसके बाद ही अड़ना-अकड़ना सब, पहले पानी भर लो”।

प्राणधारा कहानी का निष्कर्श (Conclusion of the Story Prandhara)

कहानी का अंत आते-आते सबको एक एक कलसा पानी मिल तो जाता है, लेकिन कहानी के अनुसार यह रोज की कहानी है। यानि कल फिर इसी तरह झगड़े होंगे। इसी तरह पानी कम आएगा। पानी पर किसी एक का अधिकार नहीं है। पानी एक प्रकृतिक संसाधन है जिस पर ईश्वर ने किसी एक का नाम नहीं लिखा है, लेकिन किसी एक वर्ग (अमीर) ने इस पर अपना एकधिकार समझ लिया है। जिस कारण वह गरीब लोगों को परेशान करते हैं या परेशान होते देखकर दया नहीं दिखाते।

पानी की किल्लत कहानी में होती और कहानी में ही खत्म हो जाती तो बात और थी लेकिन यह किल्लत वर्तमान में देश के अनेक स्थान पर दिखाई दे रही है। जिन्हें पानी मिल रहा है वह वहा रहें हैं, जिसे नहीं मिल रहा वह कलसा भर पानी के लिए तरस रहा है।

कुछ गाँव में पानी अब पहले कि तरह हैंडपम्प से नहीं आता, आता है तो कम या गंदा आता है। जिन्होंने मोटर (ट्यूबेल) लगवा रखा है उनके पास पानी है। वह अपना व्यवहार वैसे ही रखते हैं जैसे इस कहानी में वृद्धा ने वस्ती की महिलाओं के साथ रखा है।

हैंडपम्प के पानी ना खींच पाना इस ओर इशारा है कि ज़मीन के नीचे पानी की कमी हो गई है। बहुत जल्द उपाय नहीं किया तो पानी की परेशान देश के लगभग हर क्षेत्र में और हर वर्ग के लोगों को उठानी पड़ सकती है।


By Sunaina

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