Study Material : हिन्दी व्याकरण वर्ण-विचार | Hindi Grammar Character Ideas | hindee vyaakaran varn-vichaar
वर्ण विचार और भाषा (Character ideas and language)
वर्ण – भाषा की सबसे छोटी लिखित प्रमाणिक एवं व्याकरणिक इकाई को वर्ण कहते हैं।
ध्वनि – भाषा सबसे छोटी अलिखित, मौखिक, अप्रमाणिक इकाई को ध्वनि कहते हैं।
विचारों के आदान प्रदान करने का सहज माध्यम या साधन को भाषा कहते हैं। भाषा अर्जित सम्पत्ति है, जिसे सीखा जाता है, या प्राप्त किया जाता है।
व्याकरण – वह शास्त्र है, जो भाषा को शुद्ध लिखना, पढ़ना एवं बोलना सीखाता है।
लिपि – भाषा के लिखने के ढंग या रीति या परम्परा को लिपि कहते हैं।
व्याकरण के अंग – व्याकरण के तीन अंग हैं, वर्ण विचार, शब्द विचार और वाक्य विचार।
वर्ण विन्यास – स्वर एवं व्यंजन का पृथक रूप ही वर्ण विन्यास कहलाता है, अर्थात वर्ण विच्छेद कहलाता है। उदाहरण-
विद्यालय –व्+इ+द्+य्+आ+ल्+य्+अ पाँच व्यंजन और 4 स्वरों के योग से विद्यालय बना है।
वर्ण संयोजन – स्वर और व्यंजन का संयोजित रूप ही वर्ण संयोजन कहलाता है। उदाहरण—
वर्ण संयोजन – क्+अ+य्+अ+ल्+ए+श्+व्+अ+र्+अ = क+म+ले+श+व+र कमलेश्वर
वर्ण-विचार (character idea)
वर्णमाला में कुल 52 वर्ण हैं।
वर्णमाला में कुल व्यंजन 33 हैं।
वर्णमाला में कुल स्वर 11 हैं।
वर्णमाला में कुल संयुक्त व्यंजन 4 हैं-
क्ष = क्+ष
त्र = त्+र
ज्ञ = ज्+ञ
श्र = श्+र
संयुक्त स्वर
ए = अ+इ
ऐ = अ+ए
ओ = अ+ए
औ = अ+ओ
अयोगवाह की संख्या दो हैं- अं (अनुस्वार) अ: (विसर्ग)
द्विगुण व्यंजन दो हैं- ड़, ढ़
संयुक्ताक्षर – एक अपूर्ण एवं एक पूर्ण व्यंजन से इनका निर्माण होता है। उदाहरण के लिए विद्यालय – द्या है।
वर्ण भेद दो प्रकार के होते हैं स्वर और व्यंजन।
स्वर – स्वयं से रचित, अर्थात जिनका निर्माण स्वयं से हुआ है, किसी और वर्ण की आवश्यकता नहीं है। यह स्वतन्त्र इकाई होते हैं। ‘स्व’ का अर्थ है- ‘स्वयं’ और ‘र’ का अर्थ ‘रचित’ (निर्मित, बने हुए) इनके लिए अन्य वर्णों की आवश्यकता नहीं होती है। यह व्यंजन मुक्त हैं।
मात्रा – वर्णों के उच्चारण में लगने वाले समयत्रराल को मात्रा या अवधि कहते हैं। हृस्व में एक मात्रा वाले वर्ण आते हैं। दीर्घ में दो मात्रा वाले वर्ण आएंगे।
स्वर के मुख्य रूप से दो भेद हैं, वैसे तीन हैं-
1 मूल स्वर या हृस्व स्वर या लघु स्वर
2) दीर्घ स्वर या गुरू स्वर
3) प्लुत स्वर (प्रयोग अधिकतर संस्कृत में होता है, दो मात्रा से अधिक समय लगने पर प्लुत स्वर लगता है)
मूल स्वर – इनके उच्चारण में एक मात्रा का समय लगता है, इनकी संख्या चार है- अ, इ, उ, ऋ
दीर्घ स्वर- जिनके उच्चारण में दो मात्रा का समय लगता है। इनकी संख्या 7 है- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। दीर्घ स्वर के दो भेद होते हैं – (1) मूल दीर्घ स्वर आ, ई, ऊ (2) संयुक्त स्वर ए, ऐ, ओ, औ हैं।
हिन्दी व्याकरण व्यंजन (Hindi Grammar Consonants)
ये स्वतंत्र इकाईयाँ नहीं हैं।
ये स्वर की सहायता से उच्चारित किए जाते हैं।
इनकी संख्या 33 मानी जाती है।
इनको तीन प्रकार से वर्गीकृत किया गया है। स्पर्ष व्यंजन, अंतस्थ एवं ऊष्म व्यजंन है।
स्पर्श व्यजंन की संख्या – 25 है। पाँच वर्ग एवं प्रत्येक वर्ग में 5 वर्ण व्यंजन होते हैं।
अन्त:स्थ व्यंजन की संख्या 4 हैं- य, व, र, ल।
‘य’ एव ‘व’ अर्ध स्वर एवं अर्ध व्यंजन कहलाते हैं।
‘ल’ प्रकंपित ध्वनि मानी जाती है।
‘र’ को लुंठित ध्वनि माना जाता है।
(क) प्रयत्न विधि के आधार पर स्वर भेद (Distinction of sounds based on method of effort)
उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वरों का वर्गीकरण तीन प्रकार से किया गया है-
1 हृस्व/ मूल/ लघु स्वर – एक मात्रा का समय लगता है।
2 दीर्घ स्वर/ गुरू स्वर – दो मात्रा का समय लगता है आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ औ
3 प्लुत स्वर – दो मात्रा से अधिक का समय लगेगा। जैसे – ओम्, ओइम्
मुख में जिह्वा की स्थिति के आधार पर—
1) अग्र स्वर- इन स्वर ध्वनियों के उच्चारण में जिह्वा मुख में आगे की ओर जाती है। जैसे – ई, इ, ए, ऐ
2) मध्य स्वर— इस स्वर के उच्चारण में जिह्वा मध्य भाग में रहती है। इसलिए इसको केन्द्रिय स्वर भी कहा जाता है। यह स्वर ‘अ’ है।
3) पाश्व स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में जिह्वा मुख के पश्य भाग में रहती है। जो – आ, ऑ, उ, ऊ, ओ, औ।
ओष्ठाकृति के आधार पर वर्गीकरण—
1 वृत्तामुखी स्वर – इन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठ का आकार गोल हो जाता है। ऑ, ऊ, उ, ओ, औ यह स्वर हैं।
2) अवृत्तामुखी स्वर— इन स्वरों के उच्चारण में ओष्ठ गोल नहीं होते हैं। यह स्वर हैं- आ, इ, ई, ए, ऐ।
मुखाकृति के आधार पर वर्गीकरण
1) संवृत स्वर – इ, ई, उ, ऊ
2) अर्ध संवृत स्वर – ए, ओ
3) विवृत स्वर- केवल दीर्घ आ आता है।
4) अर्ध विवृत स्वर- ए, ऑ, ऐ, औ आते हैं।
(ख) उच्चारण स्थान के आधार पर स्वर भेद-
1) तालव्य उच्चारण – इ, ई
2) तालुकठ्य उच्चारण – ए, ऐ
3) कठ्य उच्चारण – अ, आ, ऑ
4) ओष्ठ्य उच्चारण – उ, ऊ
5) ओष्ठ कंठ्य – ओ, औ
निष्कर्ण (Conclusion)
प्रत्यन विधि के आधार पर स्वर 4 प्रकार से वर्गीकृत किए गए हैं।
1 मुख में जिह्वा की स्थिति के आधार पर। 3 प्रकार से
2 ओष्ठकृति के आधार पर। 2 प्रकार से
3 मुखाकृति के आधार पर। 4 प्रकार से
4 उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर। 3 प्रकार से किया गया है।
5 उच्चारण स्थान के आधार पर 5 प्रकार से वर्गीकृत किया है।
हिन्दी व्याकरण व्यंजन (Hindi Grammar Consonants)
यह स्वतंत्र इकाई नहीं हैं।
यह स्वर के साथ उच्चारित किए जाते हैं।
इनके उच्चारण में रुक कर अवरोध एवं अवरोह के साथ प्रयत्न किया जाता है।
यह मुख्य तीन प्रकार के होते हैं-
1 स्पर्श व्यंजन 2 अन्त:स्थ व्यंजन 3 ऊष्म व्यंजन। इनकी कुल संख्या 33 होती है।
व्यंजनो का वर्गीकरण
इनका वर्गीकरण मुख्यत: दो प्रकार से किया गया है।
क) प्रयत्न (स्पर्श, संघर्षी, घोष/अघोष, अल्पप्राण, महाप्राण, अनुनासिक, निरनुनासिक, प्रकंपन, उत्क्षेप, ईषत एवं अवरोध आदि)
ख) उच्चारण स्थान – ओष्ठ, मुख, नासिका, कंठ, तालु, मूर्धा एवं दन्त इत्यादि।
क) प्रयत्न विधि के आधार पर वर्गीकरण—
1 स्पर्श व्यंजन – इसके अन्तर्गत निम्न वर्गों को रखा गया है। कवर्ग, टवर्ग, तवर्ग एवं पवर्ग। इसमें कुल 20 वर्ण सम्मलित किए गए हैं।
2 स्पर्श संघर्षी व्यंजन – इसमें केवल चवर्ग को सम्मिलित किया गया है। इसमें कुल पाँच व्यंजन हैं।
3) संघर्षी व्यंजन – ऊष्म व्यंजन, इसके अन्तर्गत उष्म व्यंजनों को सम्मिलित किया गया है। दन्त्य स, तालव्य श, मूर्धन्य ष, एवं ह।
4) उत्क्षित्प व्यंजन – द्विगुण व्यंजन भी कहते हैं, क्योंकि इसमें दो प्रकार के गुण पाए जाते हैं। इसके अन्तर्गत जो ड, एवं ढ़ हैं। जैसे सड़क, डलिया। ढ़क्कन, ढोलक।
जीभ के ऊपर उछलने के कारण इसका नाम उत्क्षिप्त व्यंजन रखा गया है। एवं इसके द्विस्पृष्ट व्यंजन भी कहते हैं क्योंकि जीभ को दो बार स्पर्श करता है। ताड़जनात व्यंजन भी कहते हैं क्योंकि जीभ पर मूर्धा के मारने से उत्पन्न होता है।
5) लुंठित या प्रकंपित व्यंजन – जिह्वा के लुढ़कने एवं कंपन के कारण इसे लुंठित या प्रकंपित व्यंजन कहा जाता है। इसमें केवल ‘र’ व्यंजन सम्मिलित है।
6) पार्श्विक व्यंजन – सांस जिह्वा के दोनों पाश्-र्व से निकलने के कारण, यह पाश्विक व्यंजन कहलाता है। इसमें केवल ‘ल’ वर्ण सम्मिलित किया गया है।
7) अर्धस्वर या अन्त:स्थ या ईषत् स्पर्श्य व्यंजन – इनके उच्चारण में मुख में क्रमश: जीभ, ताल तथा ओठों का स्पर्श कम होता है। इसलिए इनको ईषत् व्यंजन कहते हैं। इसमें दो वर्ण (व्यंजन) ‘य’ और ‘व’ को सम्मिलित किया गया है।
संधि नियम के अनुसार “ई का य्” एव “उ का व्” हो जाता है।
8) अल्पप्राण एवं महाप्राण व्यंजन – जिन व्यंजनो के उच्चारण में साँस की मात्रा कम लगानी पड़े। उन्हें अल्पप्राण कहते हैं। इसके अंतर्गत वर्ग के दूसरे एवं चौथे व्यंजनों को छोड़कर शेष सभी व्यंजन अल्पप्राण हैं। अर्थात वर्ग का पहला, तीसरा एवं पांचवाँ व्यंजन सम्मिलित किया गया है।
एवं दूसरा तथा चौथा व्यंजन महाप्राण व्यंजन कहलता है। इसके अतरिक्त-
य, व, र, ल अल्पप्राण हैं।
श, स, ष, ह यह महाप्राण हैं।
ड़ अल्पप्राण तथा ढ़ महाप्राण है।
9) घोष एवं अघोष व्यजंन – जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा गले से निकलने से स्वरतंन्त्रियों में कंपन पैदा होता है। उन व्यंजनों को घोष व्यंजन कहा जाता है। जिनके उच्चारण में कंपन न हो उन्हें अघोष व्यंजन कहा जाता है।
वर्ग के तीसरे, चौथे एवं पाँचवें व्यंजन एवं य,व,र,ल, तथा घोष व्यंजन हैं।
पहले एवं दूसरे व्यंजन एवं विसर्ग (:) के साथ समस्त स्वर घोष वर्ण कहलाते हैं।
10) नासिक्य व्यंजन— इनके उच्चारण में हवा नाक से निकलती है— इसके
उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण—
1 कोमल तालव्य (कंठ्य व्यंजन) – क वर्ग – क, ख, ग, घ, ड़
2) काकल्य या अलिजिह्वीय – इसके अन्तर्गत ह एवं विसर्ग (:) आता है।
3) ओष्ठ्य व्यंजन- प वर्ग – प, फ, ब, भ, म आते हैं।
4) दन्तय व्यंजन – जिनका उच्चारण स्थान दाँत होता है, जैसे – त वर्ग – त, थ, द, ध, न हैं।
5) दन्तोष्ठ्य – फ, व
6) तालव्य व्यंजन— च वर्ग आता है- च, छ, ज, झ, ञ एवं य, श भी आता है।
7) मूर्धन्य व्यंजन— इसके अन्तर्गत ट वर्ग आता है – ट, ठ, ड, ढ, ण् एवं ड़ एवं ढ़ आता है। एवं इसके अलावा र तथा ष।
संयुक्ताक्षर ध्वनियाँ
संयुक्त अक्षर – स्वर एवं व्यंजन अर्थात वर्ण। एक अपूर्ण (स्वररहित एवं एक पूर्ण (स्वरसहित) व्यंजनों के आपस संयुक्त जुडने या नजदीक आने की विधि से उत्पन्न ध्वनियाँ संयुक्ताक्षर कहलाती हैं।
संयुक्ताक्षर एवं द्दित्व व्यंजन में अंतर— इसमें दो समान ध्वनियाँ (व्यंजन) आपस में एक संयुक्त अवस्था को उत्पत्ति देते हैं अर्थात् इसमें एक स्वररहित तथा दूसरा स्वर सहित समान व्यंजन जुडता है। जबकि संयुक्ताक्षर में दोनों असमान स्वररहित एवं स्वरसहित व्यंजन आपस में जुड़ते हैं।
संयुक्ताक्षर (उदाहरण)— “अच्छा” उपयुक्त उदाहरण में द नों व्यंजन असमान हैं।
द्दित्व व्यंजन (उदाहरण) – “सच्चा” उपयुक्त उदाहरण दोनों व्यंजन समान हैं।
संयुक्त व्यंजन –
क्ष = क् + ष
त्र = त् + र
ज्ञ = ज + ञ
श्र = क् + ष है।
निष्कर्ष (conclusion)
व्यंजन ध्वनियों का निर्माण विधि
1) प्रयत्न के आधार पर- घोष एवं अघोष, अल्पप्राण एवं महाप्राण, स्पर्श, अन्तस्थ एव ऊष्म ध्वनियाँ,अनुनासिक, निरनुनासिक, प्रकंपन, संघर्षी एवं उच्क्षेप तथा ईषत् ध्वनियाँ।
2) उच्चारण स्थान के आधार पर- कंठ, तालु, मूर्धा, ओष्ठ इत्यादि।
UGC NET JRF Hindi : पूछे जाने वाले संवाद और तथ्य
UGC NET JRF Hindi का सम्पूर्ण पाठ्यक्रम
Net JRF इकाई 5 हिन्दी कविता
Net JRF इकाई-6 हिन्दी उपन्यास
Net JRF इकाई-7 हिन्दी कहानी
Net JRF इकाई-8 हिन्दी नाटक
Net JRF ईकाई 9 – हिन्दी निबन्ध
Net JRF इकाई 10 अन्य गद्य विधाएँ
- Study Material : हिन्दी व्याकरण वर्ण-विचार | Hindi Grammar Character Ideas
- UGC Net JRF Hindi : दुनिया का सबसे अनमोल घटना व संवाद | Incident And Dialogue Duniya Ka Sabase Anamol Ratan
- UGC Net JRF Hindi : दुलाईवाली कहानी घटना व संवाद | Dialogue and Incident Of Story Dulaiwali
- UGC Net JRF Hindi : चीफ की दावत घटना व संवाद | Dialogue and Incident Cheeph Kee Davat
- UGC Net JRF Hindi : कोसी का घटवार घटना व संवाद | Kosi’s Ghatwar Incident And Dialogue