अध्याय 1 Study Material : प्रेमचंद द्वारा लिखित उपन्यास कर्मभूमि का सारांश : शिक्षा का महत्व कर्मभूमि भाग – 1 | Summary of the Novel Karmabhoomi
प्रेमचंद का संक्षिप्त परिचय (Brief Introduction of Premchand)
प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव है। प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को हुआ था। 8 अक्टूबर 1936 को उनका देहांत हो गया। प्रेमचंद हिन्दी व उर्दू के सर्वाधिक लोकप्रिय उपन्यासकार व कहानीकार थे। प्रेमचंद जी ने कर्मभूमि, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, गबन, गोदान आदि कई उपन्यास व कहानियाँ लिखी हैं। अपने समय की सरस्वती, माधुरी, मर्यादा, चाँद, सुधा आदि कई प्रमुख पत्रिकाओं में लिखा है। 1906 से 1936 तक लिखा गया प्रेमचंद का साहित्य सामाजिक दस्तावेज है। जिनके मुख्य विषय अनमेल विवाह, पराधीनता, लगान, छूआछूत, जाति भेद, विधवा विवाह आदि हुआ करते थे। परिणाम स्वरूप यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अपने साहित्य में समाज का दर्पण दिखाने में प्रेमचंद जी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
विद्यालय के प्रति समान्य विचार? (Common thoughts about the school?)
वर्तमान में शिक्षा प्राप्त करने के लिए दो प्रकार के विद्यालय उपलब्ध हैं। एक वह विद्यालय है जहाँ कहा जाता है कि शिक्षा का स्तर अच्छा है क्योंकि वह अंग्रेजी माध्यम विद्यालय की श्रेणी में आते हैं। अंग्रेजी माध्यम स्कूलों (प्राइवेट स्कूल) की फीस इतनी है कि वहाँ सिर्फ अमीर घरों के बच्चे ही शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं। दूसरी ओर वह विद्यालय है जहाँ मध्यम व निम्न श्रेणी के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने जाते हैं जिसे सरकारी स्कूल कहते हैं। प्राइवेट स्कूल के मुकाबले सरकारी स्कूल की फीस बहुत कम है। लोगों की मान्यता यह भी है कि सरकारी स्कूल में शिक्षा का स्तर कम है इसलिए अमीर घरों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने नहीं जाते हैं।
लोगों के मत भिन्न हो सकते हैं और मत भिन्न होने के अनेक कारण भी हो सकते हैं, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि शिक्षा के स्तर को सुधारने का प्रयास लगातार चल रहा है। शहरों के मुकाबले गाँवो की गति धीमी अवश्य है। वर्तमान में भारत में शिक्षा की क्या स्थिति है इसका पता अपने आस-पास के महौल, न्यूज़ चैनल, अखबार आदि के माध्यम से आप लगा सकते हैं।
1947 से पूर्व प्रेमचंद जी के दौर में शिक्षा कि स्थिति कैसी रही होगी इसका अंदाज़ा उनके द्वारा लिखे उपन्यास कर्मभूमि को पढ़कर लगाया जा सकता है। साहित्य समाज का दर्पण है परिणाम स्वरूप साहित्य का विषय समाज से लिया जाता है साथ ही साहित्यकार समाज के विषय में अपनी कल्पना की मिलावट अवश्य करता है उसी प्रकार प्रेमचंद जी ने भी की है। स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि उपन्यास को इतिहास न मानकर साहित्यकार द्वारा लिखी रचना मानी जाए।
कर्मभूमि अध्याय – 1 का सारांश (Summary of Karmabhoomi Chapter – 1)
कर्मभूमि के पहले अध्याय में प्रेमचंद जी ने स्कूल में वसूली जा रही फीस का चित्रण किया है। मालगुज़ारी से ज्यादा सख़्ती फ़ीस वसूलने में की जाती है। जिस दिन फीस लेने का दिन तय किया जाता है उसी दिन फीस देना अवश्यक होता है। फीस न देने पर जुर्माना देना पड़ता है। यदि दूसरी तारीख़ को फीस देनी पड़े तो फ़ीस दुगनी भी कर दी जाती है। ऐसा न करने पर नाट कट जाता है। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फ़ीस कहाँ से आयेगी चाहे जहाँ से लाओ, क़र्ज लो, गहने गिरो रखो, लोटा-थाली बेचो, आदि लेकिन फ़ीस हर सूरत में देनी पड़ेगी।
उपन्यास में रूपये हासिल करने के अन्य तरीके भी बताए गए हैं जिसे लेखक ने इस प्रकार व्यक्त किया है जैसे – “देर हो जाने पर जुर्माना, न आइये तो जुर्माना, सबक़ याद न हो तो जुर्माना शिक्षालय क्या है, जुर्मानयलय है। यही हमारी पश्चिमी शिक्षा का आदर्श है, जिसकी तारीफ़ों के पुल बाँधे जाते हैं”।
अध्याय में फीस जमा करने का दिन है परिणाम स्वरूप अध्यापक फीस जमा कर रहें हैं। मार्च का महीना होने के कारण अप्रैल, मई, और जून की फ़ीस भी जमा की जा रही है। अध्यापक ने जब अमरकान्त नाम पुकारा तो पता चला अमरकान्त कक्षा में मौजूद नहीं है। सलीम अमरकान्त का मित्र है जो कवि भी है। सलीम पढ़ने में अमरकान्त की सहायता लेता है और अमरकान्त सलीम की ग़ज़लें सुनता है परिणाम स्वरूप दोनों में मित्रता हो गई।
सलीम बाहर आया तो देखा अमरकान्त पेड़ की आड़ में खड़ा है। सलीम ने अमरकान्त को पुकारा और कहा चलो फ़ीस जमा करो पंडितजी (अध्यापक) पुकार रहें हैं। अमरकान्त 20 साल का हो गया था लेकिन दुबले-पतले होने के कारण चौदह-पन्द्रह का लगता था। सलीम अमरकान्त को देखकर समझ गया की अमरकान्त रो रहा था लेकिन सलीम द्वारा पूछने पर इस बात से मना कर दिया कि वह रो रहा था। सलीम समझ गया की अमरकान्त क्यों रो रहा है परिणाम स्वरूप सलीम ने कहा फ़ीस मैं भर देता हूँ साथ ही दोस्त होकर अपनी परेशानी ना बताने पर अमरकान्त से नराज़ भी हुआ। अमरकान्त को यह सहायता बोझ लगी परिणाम स्वरूप उसने कहा आज पंडितजी मान नहीं जायेंगे? सलीम ने उत्तर दिया यह उनके हाथ में नहीं है। सलीम ने अमरकान्त का मन ना होते हुए भी अपली गज़ल सुनाई जिस पर अमरकान्त ने तारीफ़ भी की।
शाम को जब दोनों मित्र घर जाने लगे तो अमरकान्त ने कहा – “तुमने आज मुझपर जो एहसान किया है…” इतनी बात सुनकर आगे बोलने से सलीम ने अमरकान्त को रोक दिया। रात में जलसे में आने के बारे में विचार-विमर्श करके दोनों में सहमति हुई उसके बाद दोनों अपने-अपने घर चले गए। यही पर कर्मभूमि का पहला अध्याय समाप्त हो गया।
कर्मभूमि उपन्यास किताब खरीदने के लिए क्लिक करें।
निष्कर्ष (Conclusion)
कर्मभूमि के पहले अध्याय में ही प्रेमचंद जी ने शिक्षा का स्वरूप दिखाने का प्रयास किया है जिसमे यथार्थ के साथ कल्पना का भी मिश्रण है।
कर्मभूमि उपन्यास विधा की श्रेणी में आता है और कर्मभूमि उपन्यास गद्य कोश में शामिल किया जाता है।
कर्मभूमि का अर्थ कर्मक्षेत्र है।
कर्मभूमि प्रेमचंद का राजनितिक उपन्यास है जो सर्वप्रथम 1932 में प्रकाशित हुआ था।
कर्मभूमि का नायक अमरकांत है जो तत्कालीन मध्यवर्ग का प्रतिनिधि है।
कर्मभूमि के प्रत्येक अध्याय
- UGC Net JRF Hindi : चन्द्रदेव से मेरी बातें कहानी का घटना व संवाद | Incident And Dialogue From The Story Chandradev Se Meree Baten
- UGC Net JRF Hindi : राजा निरबंसिया कहानी घटना संवाद व सारांश | Raja Nirbansiya Story Incident Dialogue And Summary
- Study Material : हिन्दी व्याकरण वर्ण-विचार | Hindi Grammar Character Ideas
- UGC Net JRF Hindi : दुनिया का सबसे अनमोल घटना व संवाद | Incident And Dialogue Duniya Ka Sabase Anamol Ratan
- UGC Net JRF Hindi : दुलाईवाली कहानी घटना व संवाद | Dialogue and Incident Of Story Dulaiwali